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( ग़ज़ल ) दुश्मनी ही, मोल लें क्या ( गिरिराज भन्डारी )

2122          2122  

दस्तो बाज़ू खोल  लें क्या

फिर परों को तोल लें क्या

 

शब्दों  में धोखे  बहुत  हैं

मौन में  ही बोल  लें क्या

 

दोस्त के  क़ाबिल नहीं वो

दुश्मनी ही,  मोल लें क्या

 

और  कितना  हम  लुटेंगे

हाथ  में  कश्कोल लें क्या ------ कश्कोल - भिक्षापात्र

 

दिल हमारा ,साफ  है  तो

रंग, कुछ भी घोल लें क्या

 

नीम है , हर  बात उनकी

हम ही मीठा ,बोल लें क्या

 

ठीक है, प्यारी  बहुत  हो 

अब बजाने ,ढोल लें  क्या  

*************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2014 at 12:42pm

छोटी बह्र ..बड़ा असर ..वाह वाह और वाह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 6:53pm

आदरणीय सत्य नारायण भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by Satyanarayan Singh on May 23, 2014 at 5:35pm

शानदार एवं उम्दा गज़ल कही है आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

दिल हमारा ,साफ  है  तो

रंग, कुछ भी घोल लें क्या.................. बहुत खूब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 1:37pm

आदरणीय नीरज नीर भाई , आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 1:37pm

आदरणीय तिलक राज भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया मेरे लिये तमगे के समान है , आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 1:35pm

आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया  से आनंदित हूँ , उत्साहित हूँ , आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 1:33pm

आदरणीय अरुण भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Neeraj Neer on May 15, 2014 at 8:55am

बहुत  ही बेहतरीन ग़ज़ल .. बहुत बहुत बधाई..

Comment by Tilak Raj Kapoor on May 15, 2014 at 8:24am

बस यही तो ग़ज़ल है। खूबसूरती से दिल की दिल की बात।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2014 at 1:24am

अहा ! वाह वाह !
छोटे बह्र में बड़ी ग़ज़ल.. .
बहुत खूब आदरणीय गिरिराजजी.
सादर

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