एक पुरुष करता है
अपनी स्त्री से बहुत प्यार.
उसने डाल दी है
उसके पांवों में बेड़ियाँ.
वह उसे खोना नहीं चाहता.
स्त्री भी करती है
उससे बेपनाह मुहब्बत.
वह भी उसे खोना नहीं चाहती.
पर वह नहीं डाल पाती है
उसके पैरों में बेड़ियाँ.
बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.
नीरज कुमार नीर ..
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on June 22, 2014 at 3:00pm — 15 Comments
(१)
पिसते हरदम ही रहे , मन में पाले टीस
तुझको भी मौका मिला, तू भी ले अब पीस
तू भी ले अब पीस , बना कर खा ले रोटी
हम चालों के बीच , सदा चौसर की गोटी
पूछ रहा विश्वास , कहाँ बदला है मौसम
घुन गेहूँ के साथ , रहे हैं पिसते हरदम ||
(२)
बिल्ली है सम्मुख खड़ी , घंटी बाँधे कौन
एक अदद इस प्रश्न पर , सारे चूहे मौन
सारे चूहे मौन , घंटियाँ शंख बजाते
मजबूरी में नित्य , आरती सारे …
Added by अरुण कुमार निगम on June 22, 2014 at 3:00pm — 6 Comments
इन्द्र्देव ने भेज दिया है
धरती को पैगाम।
बूँदों से है लिखी इबारत।
बदलेगी जन-जन की किस्मत।
मानसून इस बार करेगा
सबके मन की पूरी हसरत।
भर चौमासा घन बरसेंगे
झूम झूम अविराम।
हरषेगा खेतों में हँसिया।
अन्न बीज रोपेगा हरिया।
उड़ जाएगी निकल नीड़ से,
बेबस हो महँगाई…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on June 22, 2014 at 2:42pm — 12 Comments
क्यों घूंघट में है सच?
क्योंकि तुमने प्रयास नहीं किया
कभी इस और ध्यान नहीं दिया.
उलझे रहे जीवन के उहापोह में
परायों के दोष अपनों के मोह में.
अगर तुमने हिम्मत दिखाई होती
कभी अपनी अंतरात्मा जगाई होती.
देखा होता उठाकर तुमने घूंघट,
ख़ुशी भरा होता आँगन खचाखच.
डॉ.विजय प्रकाश शर्मा.
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 22, 2014 at 10:00am — 14 Comments
“देखो नेहा वो अभी भी घूर रहा है” झूमू ने नेहा का हाथ पकड़े-पकड़े हर की पौढ़ी पर गंगा में डुबकी लगाते हुए कहा|”बहुत बेशर्म है अभी भी बैठा है इसको पता नहीं किस से पाला पड़ा है, इसका मजनू पना अभी उतारते हैं शोर मचाकर” उसको थप्पड़ दिखाती हुई नेहा आस पास के लोगों को उकसाने लगी|
इसी बीच में न जाने कब झूमू का हाथ छूट गया और वो तीव्र बहाव में बहने लगी|छपाक!!!!! आवाज आई और कुछ ही देर में वो युवक झूमू को बचाकर बाहर निकाल लाया|
थोड़ी दूर खड़ा एक पुलिस वाला भी आ गया और “बोला इन साहब का…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 22, 2014 at 8:30am — 40 Comments
Added by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 7:15am — 25 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 6:27am — 12 Comments
वज्न ~ 1222 1222 122
शिकायत है, नही कुछ भी जियादा
मुहब्बत है, नही कुछ भी जियादा
करे वह वार मुझ पे पीठ पीछे
अदावत है, नही कुछ भी जियादा
.
बदलते रंग क्यों गिरगिट के जैसे
ये आदत है, नही कुछ भी…
Added by वेदिका on June 22, 2014 at 1:30am — 14 Comments
जाने कहाँ गईं ?
Added by AVINASH S BAGDE on June 22, 2014 at 12:30am — 9 Comments
लग कर छाती से हुए, बडे और बलवान
निज जननी के सामने, ठाडे सीना तान
ठाडे सीना तान , लाज आये ना उनको
बेशर्मी ली लाद , न भाये अपने मन को
आहत है माँ खूब, दुखी रातों में जगकर
चूसे मां का खून , पले जो छाती लगकर ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on June 21, 2014 at 11:13pm — 17 Comments
तू मेरी मोहब्बत है,तू मेरी इबादत है।
कैसे मैं तुझसे कहूँ,मुझे तेरी ज़रुरत है।
हरदम मैं लूँ नाम तेरा,चाहे शाम हो या सवेरा,
ये तुझको भी है मालूम, मुझे तेरी आदत है।
पाने को न कुछ पाया,जो तुझको नहीं पाया,
फिर चाहे जहाँ भर की,मेरे पास ये दौलत है।
ये साँस भी छिन जाये,जो पास न तू आये,
आकर आगोश में ले ले,बस इतनी हसरत है।
तुझसे ज़िंदगानी मेरी,तुझसे ही कहानी मेरी,
तेरे बिन जीना कैसा,कह दे,मरने की इज़ाज़त है।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक…
Added by Savitri Rathore on June 21, 2014 at 8:36pm — 6 Comments
कभी का मर चुका हूँ मैं महज साँसें ही चलती है
मेरी पथरा गयी आँखें मगर फिर भी बरसती हैं
के अक्सर खींच लाती है मुझे लहरों की ये मस्ती
मगर मँझधार में लाकर ये लहरें क्यों मचलती हैं
बहुत है दूर वो मुझसे नहीं आना कभी उसको
मगर दीदार को आँखें न जाने क्यों तरसती हैं
कहीं गुमनाम हो जाऊँ ये शहरा छोड कर मैं भी
मगर दुनियाँ तेरे जैसी तेरे जैसी ही बस्ती हैं
मेरा ये बावफा होना किसी को रास ना आया
सभी की आदतें आपस में…
Added by umesh katara on June 21, 2014 at 7:00pm — 4 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on June 21, 2014 at 1:13pm — 3 Comments
आपगा सरस्वती
मंत्र है प्रमाण इस भारत मही में कभी
वाणी की प्रतीक देवि आपगा यशस्विनी I
बहती थी मंद -मंद सींचती थी छंद -छंद
बोलती थी कल , कल -कंठ से मनस्विनी I
स्नान करते थे आर्य, पान करते थे वारि
ध्यान धरती थी यह धारिणी तपस्विनी I
आज यदि होती वह , मेरे पाप धोती वह
ज्ञान बीज बोती, मेरी मातः पयस्विनी I
(मौलिक और अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 21, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
1222 1222 122
कोई खामोश, मेरा हम ज़बाँ है
बड़ी चुप सी ,मेरी हर दास्ताँ है
कोई अब साथ आये या न आये
अकेलेपन से मेरा कारवाँ है
कहीं है आदमी में उस्तवारी
कहीं हर शख़्स लगता नातवाँ है
ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक
तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है
यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती
यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है
दिया बाती कहीं से खोज लाओ
उजाला चंद पल का मेहमाँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 21, 2014 at 10:36am — 23 Comments
2122 2122 2122 212
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एक भी उम्मीद उन से तुम न पालो दोस्तो
रास्ता इन बीहड़ों में खुद बना लो दोस्तो
***
बंद दरवाजे जो दस्तक से नहीं खुलते कभी
इंतजारी से तो अच्छा तोड़ डालो दोस्तो
***
फुसफुसाहट नफरतों की तेज फिर होने लगी
प्यार का परचम दुबारा तुम उठा लो दोस्तो
***
होश में तो कह रहे थे ‘साथ हम तेरे खड़े’
गिर रहा मदहोशियों में अब सॅभालो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2014 at 9:30am — 18 Comments
अंतःकरण की शुद्धि
सुबह में , शाम में,
वर्षा और घाम में,
जीवन के साम-दाम में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
देवता के पूजन में ,
मन्त्रों के गुंजन में,
सज्जन और दुर्जन में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
राग-वैराग्य में,
स्वार्थ और त्याग में ,
जीवन सौभाग्य में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
दुःख में क्लेश में
किसी भी वेश में ,
दुर्भाग्य और भाग्य में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा …
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 20, 2014 at 8:08pm — 15 Comments
कुछ ही मिनट पहले विदेश में जन्मे अपने पौत्र की तस्वीरें इंटरनेट पर देख रहे दंपति को खुशी से झूमते देखकर कोने में बैठा घर का नौकर भी अपने बेटे के कद काठ के बारे कयास लगा रहा था जिसे वह कुछ साल पहले गांव छोड़कर नौकरी के लिए शहर आ गया था।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on June 20, 2014 at 10:30am — 11 Comments
चलो एक वृक्ष लगाएं
करें पुण्य का काम
जो दे हम सब को
जीवन भर आराम
चलो एक वृक्ष लगाएं |
धरती माँ का गहना है ये
है ये उनका रूप श्रृंगार
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा
देता हमको जीवन दान
चलो एक वृक्ष लगाएं |
बरगद, पीपल, नीम, पाकड़
तुलसी, अक्षय, पारिजात
ये सब है उपहार प्रकृति का
मिला है सबको एक समान
चलो एक वृक्ष लगाएं |
जल का संग्रह करना है अब
सोच लें गर हम सब इक बार
वर्षा जल संचित कर के हम…
Added by Meena Pathak on June 20, 2014 at 8:30am — 13 Comments
कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है
यहाँ जो दिखता है वो दोस्तों होता नहीं है
जो कुछ पाया ज़माने की नज़र में था हमेशा
गंवाया जो उसे इस दुनिया ने देखा नहीं है
गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने
दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है
मुझे मालूम है इक दिन जुदा होना है सबको
मगर ऐसे भी कोई दूर तो जाता नहीं है
मुहब्बत के सफ़र में हमसफ़र जितने थे मेरे
कोई भी साथ थोड़ी दूर चल पाया नहीं…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2014 at 12:37am — 10 Comments
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