For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने कहाँ विलुप्त हो गए बचपन के एहसास

हमसे बहुत दूर हो गए ममता भरे हाथ।

        

जिस प्यार के तले सीखा था जीने का अंदाज

अकेला छोड़ उड़ गए सुनहरे परवाज़

        

अपने जज़्बातों का मुकाम पाने को

बेताब है अपना नया घरौदा बनाने को

       

क्या पता किससे मिले, बिछड़े किसी से

कौन कहेगा तू रहना खुशी से,

        

जमाने की हाफा-दाफी ने भुला दिया-

अपनों के प्यार की दौलत को

ऊंचा उठने के मनोरथ ने मिटा दिया-

हो जैसे रौनक को

        

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।

 

कल्पना ममिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित 

             

                  

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on August 6, 2014 at 10:52pm

आ० लक्ष्मण सर ,बहुत आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on August 6, 2014 at 10:52pm

आ० सर, बहुत आभार /सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 1:26am

ज़िन्दग़ी के भावुक क्षणों को आपने साग्रह शब्द दिये हैं आदरणीया.

सादर बधाई..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2014 at 9:39am

बचपन के जज्बातों को लेकर रची सुंदर भाव रचना के लिए बधाई आद कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 31, 2014 at 10:20pm

हार्दिक आभार भाई आमोद जी ////सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 31, 2014 at 10:19pm

आ०श्री गोपाल नारायण सर हार्दिक शुक्रिया /सादर

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 9:06pm

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।

 

आदरणीय कल्पना दीदी ... बहुत बढ़िया ... भाव से ओत-प्रोत ... क्या कहूँ... सब कम है ... 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2014 at 1:55pm

महनीया

आपकी कविता का भाव पक्ष पर्याप्त सबल है i  बधाई हो i

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 1:41pm

आ0 हरिवल्ल्भ सर बहुत आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 1:36pm

आदरनिया कुंती दी हार्दिक आभार /सादर ...........................दी आप इस फोटो में बहुत सुंदर लग रहीं है सर के साथ ////////////////

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service