बहिष्कार
“क्यों री आंनद की अम्मा ?अपनी देवरानी को शादी में नहीं बुलाईं क्या ?”निमन्त्रण पत्र पकड़ते हुए भोली की अम्मा यानि मायादेवी ने पूछा
“आपकी भी तो जेठानी लगती हैं |आपहि कौन उन्हें रामायण में बुलाई रहीं !” बिंदियादेवी ने मुँह बनाते हुए कहा
“हमार कौन सगी है,ऊपर से काम ही ऐसा करी हैं कि उन्हें बिरादरी से बहिरिया देना चाहिए |अपनी लड़की ही काबू में नहीं |पता नहीं कहाँ से मुँह काला कर आई |”
“हाँ दीदी ,सुना है चौका बाज़ार में बदरी बनिया के बेटे का काम था |जात-बिरादरी…
ContinueAdded by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:14am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 1, 2015 at 11:00am — 21 Comments
सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू
इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू
मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू
जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू
मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर
टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू
दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश'…
Added by दिनेश कुमार on March 1, 2015 at 1:00am — 12 Comments
२११--२११/२११--२११/२११ २
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
अच्छाई को ढाल बुराई की मत…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 12:30am — 10 Comments
Added by Samar kabeer on February 28, 2015 at 10:03pm — 12 Comments
लोग(समीक्षार्थ गज़ल प्रयास )
मन के कितने छोटे लोग
रहते क्या-क्या ओटे लोग
गंद डालकर चिल्लाते हैं
जितने भी हैं खोटे लोग
मन की नंगाई ना छोड़ें
लड़ते पहन लंगोटे लोग
टोटे वालों को खोटा बोलें
जो हैं मन के खोटे लोग
नाक़ाबिल परवान चढ़ रहे
तब्दीले-सूरत में कोटे लोग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by somesh kumar on February 28, 2015 at 9:35pm — 9 Comments
दिवस तीस औ पक्ष दो, छह रितु बारह मास।
होली उत्सव को सभी, बता रहे हैं खास।१।
आता समता को लिए, होली का त्यौहार।
सारे जग को बांटता, नेह भरा उपहार ।२।
खुशियाँ खूब उलीचता, फाल्गुन पूनम रात।
ख़ुशी साल भर ना खले, यही सोच मन…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on February 28, 2015 at 8:54pm — 23 Comments
(१)
"मुई मई जान लेने आ गई"। मनफूला ने पंखा झलते हुए कहा। सुबह के दस बज रहे थे और दस बजे से ही गर्म हवा बहनी शुरू हो गई थी। गर्मी ने इस बार पिछले सत्ताईस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था। उनकी बहू राधा आँवले के चूर्ण को छोटी छोटी शीशियों में भर रही थी। उसका ब्लाउज पसीने से पूरी तरह भीग चुका था। उनका बेटा श्रीराम बाहर कुएँ से पानी खींचकर नहाने जा रहा था। घर के आँगन में दीवार से सटकर खड़ी एक पुरानी साइकिल श्रीराम का इंतजार कर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 28, 2015 at 6:30pm — 16 Comments
221 1222 221 1222
चिलमन को ज़रा ऊपर , नज़रों से उठा दूँ तो
पर्दों की हक़ीक़त क्या , दुनिया को बता दूँ तो
ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है
कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो
ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी
उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो
नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी
वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो
राहे वफा में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 28, 2015 at 3:44pm — 27 Comments
मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु ) कुल वर्ण 22
चेतन-जंगम के उर में अविराम सुधा सरसावत है
रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल पीर बढ़ावत है
बालक वृद्ध युवा सबके यह अंतस हूक जगावत है
पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है
सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु ) कुल वर्ण 23
मरोर उठी वपु में जब से यह लक्षण भेद बताय गयी
सयान सबै सनकारि उठे तब भावज भी समुझाय गयी
हुयी अब बावरि वात अनंग अनीक अली नियराय गयी
मथै…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 1:00pm — 27 Comments
छन्न पकैया, छन्न पकैया, बाबा देवर लागें
फागुन रुप धरे मतवाला,भाव सुहाने जागे ॥
छन्न पकैया, छन्न पकैया, राधा है शरमीली
अस्सी गज का लहँगा पहने,चोली रंग रँगीली ॥
छन्न पकैया, छन्न पकैया, आम्र सुनहरे बौरे
केसर के नव पल्लव उगते, घूमें लोलुप भौरे ॥
छन्न पकैया, छन्न पकैया,पिक बयनी हरषाए
कुहू-कुहू करती रहती वो, सबके मन को भाए ॥
छन्न पकैया, छन्न पकैया, गेंदा चम्पा महके
शीतल मंद सुगंध हवा में, प्रेमी जोड़ा बहके…
Added by kalpna mishra bajpai on February 28, 2015 at 10:30am — 14 Comments
बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है |
तुमको सब कुछ सौंप दिया , जो मेरा है सो तेरा है ||
मुक्त हुआ , कुछ फिक्र नहीं |
तू सच है, केवल जिक्र नहीं |
मैं चाहे जहाँ रहूँ लेकिन, तेरे नयन ह्रदय का डेरा है |
बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||
मैं सोता, तू जगती है |
धीरज रोज , परखती है |
है बन्द आँख में ख्वाब तेरा, भले नींद ने घेरा है |
बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है…
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 28, 2015 at 9:00am — 8 Comments
221-1222-221-1222
पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.
इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.
क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.
तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 27, 2015 at 11:00pm — 28 Comments
छाई रंगों की मधुर फुहार
रंगीली आई होली
सखी री आई होली
अंग सजन के रंग लगाऊँ
मन ही मन में खूब लजाऊँ
फगुनिया चलती बयार
सखी री आई होली
नेह में डूबी पवन बावरी
मन मंदिर में पी छवि सांवरी
नथुनिया की होठों से रार
सखी री आई होली
शाम सिंदूरी अति हर्षाये
अखियों से मदिरा छलकाए
चंदनियाँ करे मनुहार
सखी री आई होली
चम्पा चमेली गजरे में महके
दर्पण देख के मनवा…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 27, 2015 at 8:00am — 18 Comments
मैं एक कवि हूँ
मुझे प्रेम है
पहाडों से
नदी से
सागर में उठती हुयी लहरों से
गिरते हुये झरनों से
सुन्दर सुन्दर फूलों
की महक से
मीठी मीठी
पंछियों की चहक से
मैं एक कवि हूँ
मुझे प्रेम है
बंजड हुये उस पेड से
जिसने कभी छाया दी थी
फल दिये
मुझे प्रेम है
उन तेज नुकीले काँटे से
जिसने खुद को सुखाकर
फूल को खिलाया
मुझे जितना सुख से प्रेम है
उतना ही प्रेम दुख से है
तुम कहती हो
मैं…
Added by umesh katara on February 27, 2015 at 7:30am — 18 Comments
नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
केवल कागजों में छपी हैं यह कागज़ी बातें
सच्चाई मगर.. कुछ और बयां कर जाती है
चीखें दबी -दबी सी ,साँसे घुटी. घुटी सी
पथराई आँखें बदहवास सी नज़र आती है
रुदन को गुप्त रख स्मित बरसाती है
निशब्द सी धडकनें डरकर रह जाती है
जज्बात उसके सदा सहमें से लगते हैं
घरोंदे में छुपकर वह जीवन बिताती है
सिंदूर में रंग कर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 27, 2015 at 1:00am — 18 Comments
कितना कम चाहिए
नून, तेल, गुड के अलावा
फिर भी मिल नही पाता
मुंह बाये आ खड़ी होती है
लाचारी सी हारी-बीमारी
डागदर-दवाई में चुक जाती है
जतन से जोड़ी रकम
जबकि हमारी इच्छाएं है कितनी कम...
कितना कम चाहिए
रोटी और कपड़े के अलावा
फिर भी मिल नही पाता
आ धमकता वन-करमचारी
थाने का सिपाही
या अदालत का सम्मन
और हम बेमन
फंसते जाते इतना
कि छूटते इनसे बीत जाती उमर
दीखती न मुक्ति की कोई डगर.....
(मौलिक…
ContinueAdded by anwar suhail on February 26, 2015 at 10:08pm — 8 Comments
बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |
बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत
जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |
जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |
पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |
सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |
बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले…
Added by maharshi tripathi on February 26, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
२१२२ २१२२
नीम सी कोई दवा हूँ
आदमी मैं काम का हूँ
भाग से मैं हूँ बुरा पर
शख्स लेकिन मैं भला हूँ
दो घडी रूकता ना कोई
मैं सड़क का हादसा हूँ
स्वार्थ भर को ही जरूरत
क्या मैं कोई देवता हूँ
ढूँढता हूँ अपनी मंजिल
ख़त कोई पर बेपता हूँ
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on February 26, 2015 at 6:16pm — 13 Comments
221 1222 221 1222
चुपचाप अगर तुमसे अरमान जता दूँ तो !
कितना हूँ ज़रूरी मैं, अहसास करा दूँ तो !
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो
ये होंठ बदन बाहें…
Added by Saurabh Pandey on February 26, 2015 at 6:00pm — 16 Comments
2025
2024
2023
2022
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2020
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