For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक तरही ग़ज़ल - होली है हुलासों की // --सौरभ

221 1222   221 1222

चुपचाप अगर तुमसे अरमान जता दूँ तो !
कितना हूँ ज़रूरी मैं, अहसास करा दूँ तो !
 
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो
 
ये होंठ बदन बाहें रुख़सार बसंती हैं..
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो ..?
 
तुम आँख दिखाओ पर होली है हुलासों की
मेरा है असर तुम पर.. ये शोर मचा दूँ तो !
 
इक चोर नज़र उसकी उलझी है दुपट्टे में
उस मीन पियासी को कुछ बूँद पिला दूँ तो !
 
जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे
बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो !!
 
मौसम के इशारे मैं, हाँ ! खूब समझता हूँ
हर ढंग निभाऊँगा, कुछ फ़र्ज़ निभा दूँ तो..
***********
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1091

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2015 at 9:13am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Chhaya Shukla on March 28, 2015 at 9:03am

बेमिसाल ! बेमिसाल ! बेमिसाल
आदरणीय शब्द शब्द अर्थ पूर्ण
और गायन क्षमता की प्रचुरता है आपकी गजल में
इसे कई बार पढ़ी |
हार्दिक बधाई आपकी लेखनी को नमन !

Comment by Neeraj Neer on March 1, 2015 at 11:34am

वाह वाह क्या खूब... बहुत सुंदर और इसके क्या कहने इक चोर नज़र उसकी उलझी है दुपट्टे में
उस मीन पियासी को कुछ बूँद पिला दूँ तो !... बहुत खूब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 28, 2015 at 7:49am

आदरणीय सौरभ भाई , क्या रूमानी ग़ज़ल कही इस बार , एक एक शे र पढ़ता गया और मेरी उम्र कम होती गई , आपने फिर मुझे पुराने दिनो मे पहुँचा दिया । आपकी कहन का तो कहूँ ही क्या , बस एक पाठशाला है मेरे लिये ॥ ढेर सारी बधाइयाँ गज़ल के लिये , होली की शुभ कामनाओं के साथ स्वीकार करें ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 27, 2015 at 1:49pm

आदरणीय  सौरभ जी 'शृंगार'  टाइप अशुद्धि की क्षमा चाहता हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 27, 2015 at 1:45pm

आ० सौरभ जी

आपकी इस परीजमाल गजल का नख से लेकर शिख तक अवलोकन टीप कर्ताओ ने किये और  उसके हुस्न की तारीफ भी की i ऐसी शृंगारिक रचना जो आसन्न होली में गुदगुदी  दे आपकी कलम से निस्सृत हुयी  i रचना सोलह शृंगार से परिपूर्ण है i  इसमें तो कोई संदेह नहीं मुझे आपकी भाव-दशा पर अभिमान होता है  i आपकी गजल हर मैंने में गजल है i जब सभी बंद उद्धरणीय  है तो निदर्शन या बानगी  क्या दूं -------- है  रंग  यहाँ  बिखरा क्या गर्द अबीरो  की  

                               कर संयम मैं मन का यह मांग सजा दूं तो ----------- सादर  i

                               

Comment by khursheed khairadi on February 27, 2015 at 9:20am

तुम आँख दिखाओ पर होली है हुलासों की
मेरा है असर तुम पर.. ये शोर मचा दूँ तो !
 
इक चोर नज़र उसकी उलझी है दुपट्टे में
उस मीन पियासी को कुछ बूँद पिला दूँ तो !
 
जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे
बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो !! 
 आदरणीय सौरभ सर ,बेहतरीन और शालीन -अल्हड़ ग़ज़ल पर ढेरों दाद कबूल फरमावें |मंच को आपने फागुनी रंग से रंग दिया है |ख़ूब सराबोर किया ,,,,हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सर |सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 11:02pm
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो ॥
होली का आगमन शुभ हो, रचना हेतु बधाई हो, आने वाली होली शुभ हो।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2015 at 10:33pm

तुम आँख दिखाओ पर होली है हुलासों की
मेरा है असर तुम पर.. ये शोर मचा दूँ तो !

प्रणाम स्वीकार करें आदरणीय ! एक एक शेर सबक है हम जैसे नवागंतुको के लिए ! आप इसी प्रकार हमें अपनी कलम की रोशनी में रक्खें !

Comment by Samar kabeer on February 26, 2015 at 10:18pm

जनाब सौरभ पाँडे जी,आदाब,इन्तिहाई ख़ूबसूरत ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,एक एक शैर मोतियों से जड़ा है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service