चाहा है तुमने मुझे हर रंग में, हर रूप में ।
साथ दिया है तुमने हर छाँव में, हर धूप में ।
सोचती हूँ लेकिन कभी यूँ ही बैठकर , ..
जब जिंदगी की गोधूली बेला आएगी,
चेहरे पर झुर्रियां और बालो में सफ़ेदी छायेगी,
जब मेरे अधर न होंगे गुलाबों जैसे,
आँखें न होंगी गहरी झील जैसी ,
क्या तुम तब भी इन आँखों में खो जाओगे?
क्या अधरों पर प्रेम चिन्ह दे पाओगे ?
क्या कई दिनों से उलझी जुल्फों को सुलझा पाओगे ?
सोचती हूँ बस यूँ ही…
Added by Mala Jha on May 2, 2015 at 9:30am — 5 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
याद हम को तभी ख़ुदा आया
जब कोई सख्त मरहला आया
.
उम्र भर सोचते रहे तुझ को
अब कहीं जा के सोचना आया
.
और करता भी क्या उसे रखकर
साथ ख़त ही के, दिल बहा आया.
.
डूबने कब दिया अनाओं ने
तर्क करते ही डूबना आया.
.
चाहता था सँवरना ताजमहल
मैं वहाँ आईना लगा आया.
.
तू उफ़क़ अपना देख ले आकर
मैं तेरा आसमां झुका आया.
.
सोचता है अगरचे कब्र में है
‘नूर’ दुनिया में ख़्वाह-मख़ाह…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 8:00am — 25 Comments
1222/1222/1222/1222
मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2015 at 11:30pm — 48 Comments
" राहुल अभी आकर सोफे पर बैठा ही था कि उसके पापा भीतर से बाहर आये I
" बड़ी देर कर दी बेटा आने में आज !! सब ठीक है न !! "
" पापा आप चाहते थे न कि मैं शादी कर लूँ , मैं इस लड़की से शादी करना चाहता हूँ " उसने अपने मोबाइल में उसका फोटो दिखाते हुए कहा I
" ये साँवली सी साधारण लड़की !! कहाँ तुम , कहाँ ये !! कहाँ मिली तुम्हे ये ? और ये इसके साथ कौन है ? " एक साथ ढेरो सवाल पूछ लिए उसके पिता ने I
" पापा ,इसका साँवला और साधारणपन भले ही दुनियावी खूबसूरती के मापदंड पर खरा न उतरे ,पर…
Added by meena pandey on May 1, 2015 at 11:30pm — 15 Comments
"माननीय न्यायाधीश महोदय, मेरे बाहर जाने का फायदा उठा कर, मेरे छोटे भाई ने घर के बीच की दीवार बनाते समय मेरी तरफ छः इंच ज्यादा खींच ली, और मेरे भाग पर कब्ज़ा कर लिया|"
"नहीं आदरणीय महोदय, जो स्थान मैनें लिया, उस पर मेरा ही अधिकार है|"
"यह दीवार कब बनायी गयी?" न्यायाधीश महोदय ने पूछा
"एक माह पूर्व हमारे पिताजी की मृत्यु के कुछ दिनों के…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 1, 2015 at 9:30pm — 10 Comments
-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?
'मौलिक व अप्रकाशित' @मनन
Added by Manan Kumar singh on May 1, 2015 at 8:30pm — 12 Comments
आवश्यकता नहीं ‘खबर’ अब
है मनोरंजन
ओढ़ चुनरिया गाँव गाँव
कूल्हे मटकाती
चिंता चिंतन झोंक भाड़ में
मन बहलाती
शर्त मगर
नाचेगी बैरन
बस तब तक ही
पैरों पर जब तक सिक्कों की
है खन खन खन
कुशल अदाकारों के
जैसी रंग बदलती
मौसम जैसा हो वैसे ही
रोती हँसती
धता बताती घोषित कर
कठहुज्जत जिसको
निमिष मात्रा मे ही
करती उसका…
ContinueAdded by seema agrawal on May 1, 2015 at 8:00pm — 9 Comments
“हैलो! क्या चल रहा है ?”
“सर! अभी प्रमुख नेताओं का भाषण बाकी है, लगता है लम्बा चलेगा । भीड़ भी काफी है।“
"ओके!"
“हैलो! , सर ! मंच के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक पेड़ है, उस पर एक आदमी फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है।“
“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”
मौलिक व अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 7:02pm — 20 Comments
एक सर्प ने समझ मूषिका
ज्यों पकड़ा एक छछुंदर को
उसी समय एक मोर झपट
कर दिया चोंच उस विषधर को |
फिर मोर भी हुआ धराशायी
घायल जो किया व्याध-शर ने
पर व्याध निकट जैसे पहुँचा
डस लिया व्याध को फणधर ने |
शेष रही बस छद्म-सुन्दरी
सृष्टि-रूप धर जीवन-थल पर
और सभी अंधे हो-होकर
नियति-भक्ष बन गए परस्पर |
(मौलिक व अप्रकाशित)
-- संतलाल करुण
Added by Santlal Karun on May 1, 2015 at 6:00pm — 10 Comments
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
****************************
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 8 Comments
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
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किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 19 Comments
वो ज़माना ही कुछ और था
हौसलों और उम्मीदों का दौर था !
आसमां के सितारे भी पास नज़र आते थे!
हर हद से गुज़र जाने का दौर था!!
माना कि मुफलिसी भरी थी वो ज़िन्दगी!
उस ज़िन्दगी में जीने का, मज़ा ही कुछ और था!!
नींद आती नही महलों के नर्म गद्दों पर!
झोपडी के चीथड़ों पर सोने का, मज़ा ही कुछ और था!!
न जाने क्यों हर वो शख़्स ख़फ़ा ख़फ़ा सा नज़र आता है!
मुस्कुराकर कर जिनसे गले लग जाने का,मज़ा ही कुछ और था!!
अब तो दिल की बातें दिल…
Added by Mala Jha on May 1, 2015 at 11:56am — 14 Comments
11212 11212 11212 11212
******************************************
नई ताब दे नई सोच दे जो पुरानी है वो निकाल दे
रहे रौशनी बड़ी देर तक वो दिया तू अब यहाँ बाल दे
***
है तमस भरी कि हवस भरी नहीं कट रही ये जो रात है
तू ही चाँद है तू ही सूर्य भी मेरी रात अब तो उजाल दे
***
जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं
मेरे पाँव भी हुए नग्न हैं मेरी राह अब तू बुहार दे
***
न तो पीर दे न चुभन ही दे मेरे पाँव में ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments
सडक एक नदी है।
बस स्टैण्ड एक घाट।
इस नदी मे आदमी बहते हैं। सुबह से शाम तक। शाम से सुबह तक। रात के वक्त यह धीरे धीरे बहती है। और देर रात गये लगभग रुकी रुकी बहती है। पर सुबह से यह अपनी रवानी पे रहती है। चिलकती धूप और भरी बरसात मे भी बहती रहती है । भले यह धीरे धीरे बहे। पर बहती अनवरत रहती है।
सडक एक नदी है इस नदी मे इन्सान बहते हैं। सुबह से शाम बहते हैं। जैसा कि अभी बह रहे हैं।
बहुत से लोग अपने घरों से इस नदी मे कूद जाते हैं। और बहते हुये पार उतर जाते हैं। कुछ लोग…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 1, 2015 at 10:27am — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
अगर दिल साफ है, आ सामने, कह मुद्दआ क्या है
खुला दर है तो फिर तू खिड़कियों से झाँकता क्या है
यहाँ तू थाम के बैठा है क्यूँ अजदाद के क़िस्से
बढ़ आगे छीन ले हक़ , गिड़गिड़ा के मांगता क्या है
अगर भीगे बदन के शेर पे इर्शाद कहते हो
तो फिर बारिश में मै भी भीग जाऊँ तो बुरा क्या है
जो पुरसिश को छिपाये हाथ आयें हैं उन्हें कह दो
मुझे निश्तर न समझाये , कहे ना उस्तरा क्या है
दुआयें जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 10:00am — 22 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 9:42am — 14 Comments
सत्यांजलि
धन्य धन्य हे मात तू, धन्य हुआ यह पूत।
असहायों की मदद कर, यश-धन मिला अकूत।।1
क्षितिज द्वार पर नित्य ही, कुमकुम करे विचार।
स्वर्ण किरण के जाल में, क्यों फॅसता संसार।।2
उपकारी बन कर फलें, ज्यों दिनकर का तेज।
दिन भर तप कर दे रहा, रात्रि सुखद की सेज।।3
धर्म कार्य जन हित रहे, चींटी तक रख ध्यान।
मात्र द्वेष निज दम्भ रख, ज्ञानी भी शैतान।।4
जनहित मन्तर धर्म का, स्वार्थी पगे अधर्म।
सच्चा सेवक त्यागमय,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2015 at 9:30pm — 8 Comments
मदर्स दे आने वाला है बस एक दिन के लिए
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माँ क्यों चुप हो कुछ बोलो तो ?
अपने मन की पीड़ा को
मेरे आगे खोलो तो
माँ तुम क्यों चुप हो ?
कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन
तुमने अपने को…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on April 30, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे
तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे
रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे
लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे
गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे
पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे…
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 5:30pm — 22 Comments
सैलाब
मानव-प्रसंगों के गहरे कठिन फ़लसफ़े
अब न कोई सवाल
न जवाब
कहीं कुछ नहीं
"कुछ नहीं" की अजीब
यह मौन मनोदशा
अपार सर दर्द
ठोस, पत्थर के टुकड़े-सा
हृदय-सम्बन्ध सतही न होंगे, सत्य ही होंगे
वरना वीरान अन्तस्तल-गुहा में
दिन-प्रतिदिन पल-पल पल छिन
गहन-गम्भीर घावों से न रिसते रहते
दलदली ज़िन्दगी के अकुलाते
अर्थ अनर्थ
कुछ हुआ कि झपकते ही पलक
विश्व-दृश्य…
ContinueAdded by vijay nikore on April 30, 2015 at 11:10am — 14 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
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2011
2010
1999
1970
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