For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर -सपने क्या क्या बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में

मात्रिक बहर 22/22/22/22/22/22/22/2 

क्या क्या सपनें बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में
क़िस्मत ने कुछ और लिखा था लेकिन अपने हाथों में.
.
कैसे कैसे खेल थे जिन में बचपन उलझा रहता था
मोटे मोटे आँसू थे उन सच्ची झूठी मातों में.
.
कितने प्यारे दिन थे जब हम खोए खोए रहते थे 
लड़ते भिड़ते प्यार जताते खट्टी मीठी बातों में.

एक ये मौसम, ख़ुश्क हवा ने दिल में डेरा डाला है
एक वो ऋत थी, साथ तुम्हारे भीगे थे बरसातों में.
.
एक समय तो ख़्वाबों में भी साथ तुम्हारा होता था
लेकिन आवारा से फ़िरते हैं अब तन्हा रातों में.
.
थोड़े इसके थोड़े उसके लेकिन ख़ुद के कुछ भी नहीं
धीरे धीरे रोज़ ख़ज़ाना लुटता है खैरातों में.

इन साँसों में समा गयी है गीली मेहंदी की ख़ुशबू
वक़्ते रुख्सत हाथ था उनका “नूर” हमारे हाथों में
.
निलेश "नूर"

मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2015 at 10:27pm

शुक्रिया. आ. राजेश कुमारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2015 at 10:27pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2015 at 10:27pm

शुक्रिया आ. डॉ गोपाल नारायण जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2015 at 10:08pm

वाह्ह्ह वाह्ह नीलेश जी,क्या गज़ब की ग़ज़ल लिखी है हर शेर पर दिल से दाद लीजिये | 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 1, 2015 at 2:18pm

आदरणीय नूर जी ..हमेशा की तरह शानदार ग़ज़ल ..हर शेर उम्दा है ..लेकिन आख़िरी शेर की जो खुसबू है कमाल की है उसी शेर पर मेरा भी साथ इस ग़ज़ल ले छूटा है ...ढेर सारी बधाई के साथ सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 11:41am

आ० नूर जी

मैं आपको कई बार कोहेनूर कह चुका हूँ . आज भी वही दुहराता हूँ . क्य्या मुकम्मिल शायरी है .हृदय से आभार .

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:42pm

शुक्रिया आ. वीनस जी ..
आपकी दाद पा कर गद्गद हूँ  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:41pm

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

Comment by वीनस केसरी on May 31, 2015 at 12:23pm

कामयाब ग़ज़ल है भाई जी

एक एक शेर पर ढेरो दाद

Comment by shree suneel on May 31, 2015 at 2:19am
क्या क्या सपनें बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में
क़िस्मत ने कुछ और लिखा था लेकिन अपने हाथों में."... सहीही बात!
आदरणीय निलेश जी, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.
"कितने प्यारे दिन थे जब हम खोए खोए रहते थे
लड़ते भिड़ते प्यार जताते खट्टी मीठी बातों में."... याद आ गये वो दिन
बहुत बढि़या.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के।लिए सादर"
11 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर"
12 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
14 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आपका टिप्पणी व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। एक निवेदन है कि — काम की कोई मानता…"
44 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है।  ग़ज़ल 2122 1212 22 .. इश्क क्या…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service