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दिल से जाती नहीं ........इंतज़ार

बेचारा ...बेबस... लाचार दिल
आँखों से कितनी दूर है
जो बस गए हैं सपने
उन्हें सच समझने को मजबूर है
आँखों की कहानी अपनी है
जो देखा बस वोही खीर पकनी है
छल फ़रेब की चाल रोज़ बदलनी है
क्या करे दिल की दुनियाँ का
वहाँ तो सिर्फ़ दिल की ही दाल गलनी है
हाँ ....बंद आंखें दिल को देखती हैं
मगर आँखों को
बंद आँखों से देखने पर भरोसा ही नहीं
क्यूंकि वो जानती हैं कि दिल मजबूर है
और सच्चाई सपनों से कितनी दूर है
यूँ हर किसी का दिल आँखों से दूर है
बेबस... बेचारा....दिल... मजबूर है

***********************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on June 3, 2015 at 5:38pm

बंद आँखों से देखने पर भरोसा ही नहीं
क्यूंकि वो जानती हैं कि दिल मजबूर है ,,,,,,,बहुत बढ़िया आ. Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी |

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 3, 2015 at 10:28am

आदरणीय Saurabh Pandey जी हार्दिक अभिनंदन एवं आभार ...सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2015 at 1:28pm

कोमल सी बहुत खूब प्रस्तुति हुई है !

शुभ-शुभ

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:10am

आदरणीय narendrasinh chauhan जी हार्दिक धन्यवाद ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:10am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी पसन्दगी के लिये धन्यवाद ....सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:09am

आदरणीय Samar kabeer जी हार्दिक आभार ...सादर 

Comment by narendrasinh chauhan on June 1, 2015 at 3:26pm

 खूब सुन्दर रचना

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 11:57am

अच्छी रचना है आदरणीय .

Comment by Samar kabeer on June 1, 2015 at 11:08am
जनाब मोहन सेठी 'इंतज़ार' जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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