Added by Dr T R Sukul on May 17, 2016 at 11:00pm — 10 Comments
बस स्टैंड पर बस से उतरते ही सुखिया का चेहरा खिल उठा। पिताजी टैक्सी वाले से बात करने लगे, तो उसने टोकते हुए कहा- "नहीं बापू, हम पैदल ही चलेंगे, हम शहर घूमते हुए चलेंगे, सामान भी कोई ज़्यादा नहीं है न!"
" न बेटा, टैक्सी वाले ने बताया है कि मानस भवन तो बहुत दूर है! शहर बाद में घुमा देंगे!"-
पिताजी ने कहा।
फिर दोनों टैक्सी पर सवार हो गए। जैसे ही टैक्सी ने रफ़्तार पकड़ी, सुखिया पहले तो सपनों में खो गया, फिर गाड़ियों की आवाज़ों और होर्न के शोरगुल ने उसे बेचैन कर दिया। पिताजी ने उसे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 17, 2016 at 10:00pm — 16 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 17, 2016 at 6:58pm — 11 Comments
Added by kanta roy on May 17, 2016 at 4:57pm — 8 Comments
Added by Rahila on May 17, 2016 at 3:53pm — 13 Comments
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 12:42pm — 14 Comments
212 – 212 – 212 – 212 ग़ज़ल
किस तरह आप से मैं कहूं प्यार है
जिक्र से ही हुआ दिल जो गुलज़ार है
आपका साथ है और क्या चाहिए
आप ही का बना दिल तलबगार है
जान लो तुम मुहब्बत तो है इक बला
इस से बचना बड़ा ही तो दुशवार है
रोग उसको अचानक ही समझो लगा
अब बना घूमता वो तो अख़बार है
जब हकीकत समझ आई तो देर थी
जो हुआ सो हुआ अब तो इकरार है
हुस्न ने लूट लाखों लिए सोच कर
हो गया इक नया जख्म सरकार है
मुनीश…
ContinueAdded by munish tanha on May 17, 2016 at 10:30am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 17, 2016 at 10:20am — 14 Comments
२१२२ १२१२ २२/112
गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये
सारा पानी शराब हो जाये
उसके वालिद को देख इश्क मेरा
हड्डी वाला कबाब हो जाये
क्या जरूरत है खोलने की लब
जब नजर से जबाब हो जाये
मेरी नजरों के रुख पे पड़ते ही
हाथ उसका नकाब हो जाये
साथ उनके गुजारे जो लम्हे
लिख सकूँ तो किताब हो जाये
साक़िया बात कल की कल होगी
आज का तो हिसाब हो जाये
आज जीभर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 9:30am — 20 Comments
चल तौल तराजू रिश्तों को
कुछ अपने पराये नातो को ...
एक तरफ चढा ले माँ को ही
सबसे प्यारा ये रिश्ता है
कचरों के डिब्बों में फिर क्यों
शिशुओं को फेंका जाता है
चल ...........
एक तरफ भाई और बंधू ले
फिर जर जमीन पर क्यों झगड़े है
पैसा धन दौलत पर से क्यों
सर अपनों के काटे जाते है
चल .........
एक तरफ जीवन साथी ले
ये जनम जनम का नाता है
तो तलाक फिर क्यों होते है
संग रहकर भी दुश्मन बनते है
चल…
Added by babita choubey shakti on May 16, 2016 at 10:00pm — 3 Comments
महाकाल दर लगो सिहस्थ है जनमन रहो हर्षाय
उज्जैनी नगरी देखो आज दुल्हनिया सी रही सुहाय
पितृ मिलन खो रेवा आई महाकाल रहे हर्षाय
शिप्रा रानी चरण पखारे., मिलन अनोखा रही कराय
एक और से गोरा रानी, लेय बलैेया नजर उतार
दूजी और गणराज हर्ष के, बहनी को है रहे निहार
कुम्भ मिलन खो सभी देवता सज धज आये खेवनहार
मित्र सुदामा राह तकत है, मित्र मिलन की प्यास जगाये
सांदीपनी घर मनमोहन आये शिक्षा रही यही पे पाय...
ब्रह्म बिष्णु नारद संग, राधे संग श्याम सरकार
सियाराम…
Added by babita choubey shakti on May 16, 2016 at 9:30pm — 4 Comments
ग़ज़ल (गुलशन के लिए )
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2122 --2122 --212
जो चुने तिनके नशेमन के लिए ।
जल गए वह रात गुलशन के लिए ।
ख़ार मुरझाते नहीं गुल की तरह
क्यों नहीं चाहूँ मैं दामन के लिए ।
उनको ही शायर समझता है जहाँ
जिन के ईमां बिक गए धन के लिए ।
रास्ते तन्हा कभी कटते नहीं
लाज़मी साथी है जीवन के लिए ।
क्या पता कब दिल पे कर जाए असर
मैं वफ़ा रखता हूँ दुश्मन के लिए…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 16, 2016 at 9:28pm — 6 Comments
आवारगी – ( लघुकथा ) -
मुंबई जाने वाली एक्सप्रेस गाडी में टिकट चैक करने पर टी सी गोस्वामी जी को दो लडके बारह तेरह साल की उम्र के बिना टिकट मिले!
"कहां जा रहे हो"!
"शहर"!
"कौनसे शहर"!
"मालूम नहीं, जहां तक गाडी लेजाय"!
"टिकट क्यों नहीं लिया"!
"साब टिकट के पैसे नहीं थे!तीन दिन से कुछ खाया भी नहीं है!गॉव में सूखा और अकाल है!भुखमरी फ़ैली है!सोचा था शहर जाकर कहीं ढावा या होटल में वर्तन धोने का काम कर लेंगे तो रोटी तो मिलती रहेगी"!
"अब बिना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 16, 2016 at 7:06pm — 16 Comments
ग़ज़ल2122-1212-22
अब तो चेहरा गुलाब लगता है
ना पढ़ी वो किताब लगता है
दर से तेरे खुदा असर पाया
रात दिन अब सबाब लगता है
जब से डूबी है सोहनी इसमें
मुझको कातिल चिनाब लगता है
खुश वो दिखता बहुत है अब सबको
जख्म गहरा जनाब लगता है
प्यार के नाम पर करे झगड़ा
सोच के ही इताब लगता है
मुनीश 'तन्हा'....नादौन...9882892447
मौलिक व अप्रकाशित
Added by munish tanha on May 16, 2016 at 6:04pm — 2 Comments
फ़रेबी रात …
छोडिये साहिब !
ये तो बेवक्त
बेवजह ही
ज़मीं खराब करते हैं
आप अपनी अंगुली के पोर
इनसे क्यूं खराब करते हैं
ज़माने के दर्द हैं
क्योँ अपनी रातें
हमारी तन्हाई पे खराब करते हैं
ज़माने की निगाह में
ये नमकीन पानी के अलावा
कुछ भी नहीं
रात की कहानी
ये भोर में गुनगुनायेंगे
आंसू हैं,निर्बल हैं
कुछ दूर तक
आरिजों पे फिसलकर
खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे
हमारे दर्द हैं
हमें ही उठा लेने दीजिये…
Added by Sushil Sarna on May 16, 2016 at 4:31pm — 6 Comments
2122 1212 22
बेअसर हो गईं दवाएँ क्यूँ
काम आईं नहीं दुआएँ क्यूँ
हम ग़लत फ़हमियों में आएँ क्यूँ
दोस्त है वो तो आज़माएँ क्यूँ
आँख तक आँसुओं को लाएँ क्यूँ
ज़ब्त की एहमियत गिराएँ क्यूँ
साँस दर साँस एक ही सरगम
दूसरा गीत गुनगुनाएँ क्यूँ
जिसके सीने में दिल हो पत्थर का
उसकी चौखट पे गिडगिडाएँ क्यूँ
वक्त आने पे जान जाएगा
इश्क़ क्या है उसे बताएँ क्यूँ
हो गईं क्या समाअतें कमज़ोर
कोई सुनता नहीं सदाएँ…
Added by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 12:00am — 12 Comments
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 15, 2016 at 9:57pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
हो बड़े मगरूर अपनी जीत मेरी हार में
हम लुटा देते हैं हस्ती प्रेम के व्यापार में
भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है
वांच ली सारी किताबें क्या रखा है सार में
गीत बैठे तक रहे हैं झनझनाहट तार की
क्या जुगलबंदी हुई है राग सुर औ प्यार में
बाँध कर सिर पे कफ़न हैं चल पड़े कुछ…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 15, 2016 at 7:00pm — 6 Comments
Added by kanta roy on May 15, 2016 at 11:39am — 9 Comments
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