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ग़ज़ल - बदलना भी ज़रूरी है सदा अच्छा नही रहता

1222-1222-1222-1222
ग़ज़ल
बदलना भी ज़रूरी है सदा अच्छा नही रहता
खुदा से प्यार करते हो तो फिर पर्दा नही रहता

हमारे सामने देखो बना अफसर से वो माली
दिनों का फेर है साहिब सदा पैसा नहीं रहता

बने गद्दारहै जो घूमें करें हैं देश से धोखा
उन्हें फिर मौत मिलती है निशां उनका नहीं रहता

जमीं तिड्की हलक प्यासे तडपते है परिंदे भी
लगाये पेड़ जो होते तो फिर सूखा नही रहता

ये नफरत की हैं दीवारें इन्हें तुम तोड़ दो वरना
निशाना तुम पे भी होगा कोई बच्चा नहीं रहता

उठो भारत के लोगों तुम जरा इतिहास को देखो
सदा सच का यहाँ डंका कोई झूठा नहीं रहता


मुनीश 'तन्हा'..नादौन
988289247

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 29, 2016 at 8:48am

आदरनीय मुनीष भाई , गज़ल अच्छी हुई है , बधाइयाँ स्वीकार करें ! कुछ कमिया बताई गईं हैं ख्याल कीजियेगा । मुझे एक मिसरा बेबहर भी लग रहा है ---
बने गद्दा/ रहै जो घू/ में करें हैं दे/  श से धोखा    ---  तीसरा रुक्न देखियेगा

Comment by Samar kabeer on May 26, 2016 at 12:14pm
जनाब मुनीश तन्हा साहिब आदाब,ग़ज़ल और समय चाहती है, इस प्रस्तुति के लिये बधाई ।
जनाब बशर भारतीय जी दरुस्त फरमा रहे हैं ।
Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 10:37am
बने गद्दारहै जो घूमें करें हैं देश से धोखा
उन्हें फिर मौत मिलती है निशां उनका नहीं रहता
अच्छा शे'र जनाब तनहा साहब
कुछ बातें ज़रूर कहना चाहूँगा १. मतले के मिसरैन में रब्त समझ नहीं आ रहा है
२. पाँचवे शे'र में मफ़हूम साफ नहीं हैं।

गलती मेरी भी हो सकती जनाब कृपया अन्यथा न लें

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