इस्लाह के लिए विशेषकर काफ़िए को लेकर मन में शंकायें हैं
2122 2122 2122 212
है ग़मों की इन्तहां अब आजमा लें दर्द को
बात पहले प्यार से फिर भी नहीं जो मानता
गेंद की तरहा हवा में फिर उछालें दर्द को
गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की
हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को
नफरतों के राज में क्या रीत…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:36pm — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:00pm — 4 Comments
खुशियों में , गम के साये में
जीना सीखना होगा
प्यार में , नफरत के साये में
संभल कर खुद को ही चलना होगा
इज़हार ख़ुशी का न गम की नुमाईश
एक साथ दोनों को पीना होगा
भ्रम बनकर सतायेंगी गर यह
इस चक्र से निकल कर आगे बढ़ना होगा
जीवन को समझकर बढ़ना होगा
सोच कर हर कदम रखना होगा |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 5:30pm — 3 Comments
दिल-ऐ-बिस्मिल में ...
कुछ भी तो नहीं बदला
नसीम-ऐ-सहर
आज भी मेरे अहसासों को
कुरेद जाती है
मेरी पलकों पे
तेरी नमनाक नज़रों की
नमी छोड़ जाती है
कहाँ बदलता है कुछ
किसी के जाने से
बस दर्द मिलता है
गुजरे हुए लम्हात की मरकदों पे
यादों के चराग़ जलाने में
और लगता है वक्त
लम्हा लम्हा मिली
अनगिनित खराशों को
ज़िस्म-ऐ-ज़हन से मिटाने में
अपनी ज़फा से तुमने
वफ़ा के पैरहन को
तार तार कर दिया
आरज़ू के हर अब्र…
Added by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 1:55pm — 6 Comments
Added by आशीष यादव on June 2, 2016 at 11:21am — 6 Comments
क़ुरैशी साहब की रचनाएँ संभाग से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं, लेकिन दूसरे साथी लेखकों की प्रकाशित रचनाओं, संग्रहों और उनको मिलने वाले छोटे-बड़े सम्मानों से वे बहुत विचलित रहा करते थे। प्रकाशन की भूख उन्हें बहुत सताया करती थी, पर क्या करें न तो आर्थिक स्थिति अच्छी थी और न ही कोई सहारा। बहुत से सम्पादकों से मधुर संबंध होने के बावजूद जब कभी उनकी रचनाएँ अस्वीकृत हो जातीं, तो उनकी नींद हराम हो जाती थी। इस बार तो एक पत्रिका के संपादक…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 6:00am — 16 Comments
बहर -1222 1222 1212 2222
सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको
खुले जब आँख लूँ जब नाम पास पाऊ मैं तुमको
तेरी जब गोद में रखकर के सर गजल मैं पढता था
मेरा अरमान है इक बार फिर सुनाऊ मैं तुमको
गये जब से अकेला छोड़ हम तभी से रोते हैं
नहीं हसरत मेरी रोऊँ नहीं रुलाऊ मैं तुमको
भटकता दर-ब-दर हूँ फिर रहा कहाँ हो बोलो ना
सहा क्या क्या गवायाँ क्या मिलो गिनाऊ मैं तुमको
सहा जाता न अब हमसे विरह भरा मेरा जीवन
मेरी बाहें खुली आओ गले लगाऊ मैं…
Added by maharshi tripathi on June 1, 2016 at 11:10pm — No Comments
(22 22 22)
छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी रातें
.
छोटे छोटे लम्हे
जीवन की सौगातें
.
भीगा भीगा मौसम
गुन गुन करती रातें
.
दिल में आग लगायें
रिमझिम सी बरसातें
.
तेरे मेरे सपने
दिल से दिल की बातें
.
आंसू आंसू शिकवा
आंसू आंसू बातें
.
याद रही खामोशी
भूले न मुलाकातें
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 1:30pm — 4 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 1, 2016 at 1:26pm — 12 Comments
पिछले कई दिनों से घर में एक अजीब सी हलचल थीI कभी नन्हे दीपू को डॉक्टर के पास ले जाया जाता तो कभी डॉक्टर उसे देखने घर आ जाताI दीपू स्कूल भी नहीं जा रहा थाI घर के सभी सदस्यों के चेहरों से ख़ुशी अचानक गायब हो गई थीI घर की नौकरानी इस सब को चुपचाप देखती रहतीI कई बार उसने पूछना भी चाहा किन्तु दबंग स्वाभाव मालकिन से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुईI आज जब फिर दीपू को डॉक्टर के पास ले वापिस घर लाया गया तो मालकिन की आँखों में आँसू थेI रसोई घर के सामने से गुज़र रही मालकिन से नौकरानी ने हिम्मत जुटा कर पूछ…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on June 1, 2016 at 12:51pm — 17 Comments
स्तावित खुशियाँ
प्रस्तावित है कुछ खुशियाँ
कुछ सपनों का अनुबंध
दीवारों ने कब देखी है
नील गगन की क्यारी
सोच रही है तन्हाई
कब जायेगी लाचारी
हिम्मत के जब पाँव बढ़े
दानों का हुआ प्रबंध
अरमानों की किस्मत में
क्यों होता कहर जरूरी
समझोते की भठ्ठी में
करता है मौन मजूरी
स्वीकारा प्रतिक्षण ऋतू ने
परिवर्तन से सम्बन्ध
बजते बजते सरगम की
सब टूट…
Added by asha deshmukh on June 1, 2016 at 11:00am — 6 Comments
घर के मुख्य द्वार पर खाली प्लेट हाथ में लिए मालकिन को काम वाली बाई सन्नो ने आश्चर्य से देखते हुए पूछा:
"सब्ज़ी आज फिर सड़ गई थी क्या?"
"नहीं, पड़ोसी के घर से प्रसाद आया था, हम नहीं खाते उनके धर्म का प्रसाद, सो उस भूखे भिखारी को दे दिया"- मालकिन ने सन्नो से कहा।
सन्नो ने खिड़की से झांककर देखा कि वह भिखारी उसकी प्लेट में परोसा गया वह प्रसाद ज़ल्दी-ज़ल्दी खाने लगा था और कुछ निवाले पास खड़ी मरियल सी कुतिया के पास फेंकता जा रहा था।
"क्यों बाबा कौन से धर्म के हो तुम?" सन्नो ने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2016 at 6:00pm — 13 Comments
हे माँ तेरे चरणों की मैं धूल कहाँ से लाऊंगा,
रग रग में तू बसी हुई मैं भूल कहाँ से पाऊंगा।
तिनका तिनका बड़ा हुआ मैं ममता की इन छाँव में,
बात बात पर मुझे सिखाती किताब कहाँ से लाऊंगा।।
सबसे लड़ती मेरी खातिर गली मोहल्ले गांव में,
अब सब बन गए मेरे दुश्मन कैसे मैं बच पाउँगा
याद है एक दिन तूने मुझको यही पाठ सिखलाया था,
भाव सरल और मधुर वचन का सच्चा पाठ पढ़ाया था।।
दीन दुःखी की सेवा कर फिर जग में नाम कमाया था,
बनकर तेरे जैसा मैं अब कुछ…
Added by NEERAJ KHARE on May 31, 2016 at 9:00am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
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खो गया है अक्स असली ढूँढता है आईना।
होंठ पर मुस्कान नकली देखता है आईना।।
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इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।
किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।।
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हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
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बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
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मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 30, 2016 at 11:30pm — 8 Comments
212 2112 2112 222
प्यार में तुम मेरे ऐवों को दिखाया न करो|
आईना बन के कभी सामने आया न करो|
फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखें हैं,
हर किसी को कभी अब दोस्त बनाया न करो|
जाग उठाते हैं मेरे मन में सवालात कई,
हर किसी दर पे कभी सर को झुकाया न करो|
जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में,
ऐसे सपने कभी आँखों में सजाया न करो|
एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर,
ज़ख्म अपने कभी अपनों को दिखाया…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:30pm — 10 Comments
बादल सा पल फिसल गया
Added by amita tiwari on May 30, 2016 at 10:30pm — 4 Comments
हरे वृक्षों के बीच खडा एक ठूँठ।
खुद पर शर्मिन्दा, पछताता हुआ
अपनी दुर्दशा पर अश्रु बहाता हुआ।
पूछता था उस अनन्त सत्य से
द्रवित, व्यथित और भग्न हृदय से।
अपराध क्या था दुष्कर्म किया था क्या
मेरे भाग में यही दुर्दिन लिखा था क्या?
जो आज अपनों के बीच मैं अपना भी नही
उनके लिए हरापन सच, मेरे लिए सपना भी नही।
हरे कोमल पात उन्हें ढाँप रहे छतरी बनकर
कोई त्रास नहीं ,जो सूरज आज गया फिर आग उगलकर।
अपनी बाँह फैलाए वे जी रहे…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on May 30, 2016 at 4:37pm — 5 Comments
२१२२/२१२२/२१२१२
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ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,
जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.
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काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,
लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े.
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एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2016 at 7:47pm — 19 Comments
Added by Samar kabeer on May 29, 2016 at 3:00pm — 24 Comments
1222 1222 122
जो भारी ही रहा, बैठा हुआ है
उड़ा वो ही जो कुछ हल्का हुआ है
ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे
यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?
ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर
ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है
फटेगा एक दिन बादल के जैसे
जो आँसू आपने रोका हुआ है
बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको
जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है
न जाने कौन धोखे बाज निकले
सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 29, 2016 at 9:30am — 18 Comments
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