For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

ग़ज़ल.....अब आजमा लें दर्द को

इस्लाह के लिए विशेषकर काफ़िए को लेकर मन में शंकायें हैं 

2122       2122       2122       212

​क्यों नहीं अपनी रगों से हम निकालें दर्द को

है ग़मों की इन्तहां अब आजमा लें दर्द को

बात पहले प्यार से फिर भी नहीं जो मानता 

गेंद की तरहा हवा में फिर उछालें दर्द को

गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की 

हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को

नफरतों के राज में क्या रीत…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:36pm — 12 Comments

बह्र नई सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं- ग़ज़ल

2222 2222 2222 222

-----------------------------------------------------------------

आपकी नज़रें ताज़ा ताज़ा, फूल कमल ही लगती हैं।

बह्र नयी सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं।।



चाह रहे हैं छू लें लेकिन, रुसवाई से हम डर जाते।

जबकी मुस्का कर मिलती हैं, आप सरल ही लगती हैं।।



इसकी प्यास कई सदियों की, है मन का पंछी व्याकुल।

आप स्रोत सब मदिराओं की, असली तरल ही लगती हैं।।



जितने रूप धरा के सुन्दर, सारे हैं फीके फीके।

आपकी फ़ोटो कॉपी सारे, आप… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:00pm — 4 Comments

सीखना होगा

खुशियों में , गम के साये में
जीना सीखना होगा

प्यार में , नफरत के साये में

संभल कर खुद को ही चलना  होगा

इज़हार ख़ुशी का न गम की नुमाईश
एक साथ दोनों को पीना होगा

भ्रम बनकर सतायेंगी गर यह
इस चक्र से निकल कर आगे बढ़ना होगा

जीवन को समझकर बढ़ना होगा
सोच कर हर कदम रखना होगा |

मौलिक एवं अप्रकाशित



Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 5:30pm — 3 Comments

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

कुछ भी तो नहीं बदला

नसीम-ऐ-सहर

आज भी मेरे अहसासों को

कुरेद जाती है

मेरी पलकों पे

तेरी नमनाक नज़रों की

नमी छोड़ जाती है

कहाँ बदलता है कुछ

किसी के जाने से

बस दर्द मिलता है

गुजरे हुए लम्हात की मरकदों पे

यादों के चराग़ जलाने में

और लगता है वक्त

लम्हा लम्हा मिली

अनगिनित खराशों को

ज़िस्म-ऐ-ज़हन से मिटाने में

अपनी ज़फा से तुमने

वफ़ा के पैरहन को

तार तार कर दिया

आरज़ू के हर अब्र…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 1:55pm — 6 Comments

चिर-दिनों तक तुम हो मेरी

चिर-दिनों तक तुम हो मेरी,

युगों युगों तक रहूँ तुम्हारा|

इक दूजे से अलग नही हम,

जनम-जनम तक साथ हमारा|



जितनी मर्जी उतना रुठो,

जितना मन हो रहो बेखबर,

तुम्हे मनाऊँ चिर-जीवन तक,

बिछड़न तुमसे नही गँवारा|



आस मेरी तुम साँस मेरी तुम,

तुम ही मेरे दिल की धड़कन,

अब तो सबकुछ तुम ही मेरी,

नजरों को बस तुम्ही नजारा|



तुमको चाहूँ तुम्हे सराहूँ,

तेरे ही बारे मे सोचूँ,

उस जीवन को भूल गया हूँ,

जो कुछ तेरे बिना… Continue

Added by आशीष यादव on June 2, 2016 at 11:21am — 6 Comments

भूखी रचनाएँ और वेक अप कॉल (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

क़ुरैशी साहब की रचनाएँ संभाग से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं, लेकिन दूसरे साथी लेखकों की प्रकाशित रचनाओं, संग्रहों और उनको मिलने वाले छोटे-बड़े सम्मानों से वे बहुत विचलित रहा करते थे। प्रकाशन की भूख उन्हें बहुत सताया करती थी, पर क्या करें न तो आर्थिक स्थिति अच्छी थी और न ही कोई सहारा। बहुत से सम्पादकों से मधुर संबंध होने के बावजूद जब कभी उनकी रचनाएँ अस्वीकृत हो जातीं, तो उनकी नींद हराम हो जाती थी। इस बार तो एक पत्रिका के संपादक…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 6:00am — 16 Comments

सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको

बहर -1222 1222 1212 2222

सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको

खुले जब आँख लूँ जब नाम पास पाऊ मैं तुमको

तेरी जब गोद में रखकर के सर गजल मैं पढता था

मेरा अरमान है इक बार फिर सुनाऊ मैं तुमको

गये जब से अकेला छोड़ हम तभी से रोते हैं

नहीं हसरत मेरी रोऊँ नहीं रुलाऊ मैं तुमको

भटकता दर-ब-दर हूँ फिर रहा कहाँ हो बोलो ना

सहा क्या क्या गवायाँ क्या मिलो गिनाऊ मैं तुमको

सहा जाता न अब हमसे विरह भरा मेरा जीवन

मेरी बाहें खुली आओ गले लगाऊ मैं…

Continue

Added by maharshi tripathi on June 1, 2016 at 11:10pm — No Comments

मुलाकातें....

(22 22 22)

छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी रातें

.

छोटे छोटे लम्हे
जीवन की सौगातें

.

भीगा भीगा मौसम
गुन गुन करती रातें

.

दिल में आग लगायें
रिमझिम सी बरसातें

.

तेरे मेरे सपने

दिल से दिल की बातें

.

आंसू आंसू शिकवा
आंसू आंसू बातें

.

याद रही खामोशी
भूले न मुलाकातें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 1:30pm — 4 Comments

एक और प्रयास/सुरेश कुमार ' कल्याण '

करके याद हमें अब दिल जलाते हैं वो,

बेवफाई का मातम अब मनाते हैं वो।



हमारे बीते हुए लम्हों को याद कर,

अब अपना पल पल बिताते हैं वो।



जाहिर हो जाता है उनके चेहरे पे गम,

खुशी के लम्हे भी गम में बिताते हैं वो।



खुश नजर आने की कोशिश करते हैं मगर,

दिवानगी में दुःख की बात कह जाते हैं वो।



हमें तरस आता है उनकी हालत पर,

पर हमारे सामने आने से कतराते हैं वो।



रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए,

फिर भी हमारी यादों में खो जाते…

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 1, 2016 at 1:26pm — 12 Comments


प्रधान संपादक
अपनी अपनी भूख (लघुकथा)

पिछले कई दिनों से घर में एक अजीब सी हलचल थीI कभी नन्हे दीपू को डॉक्टर के पास ले जाया जाता तो कभी डॉक्टर उसे देखने घर आ जाताI दीपू स्कूल भी नहीं जा रहा थाI घर के सभी सदस्यों के चेहरों से ख़ुशी अचानक गायब हो गई थीI घर की नौकरानी इस सब को चुपचाप देखती रहतीI कई बार उसने पूछना भी चाहा  किन्तु दबंग स्वाभाव मालकिन से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुईI आज जब फिर दीपू को डॉक्टर के पास ले वापिस घर लाया गया तो मालकिन की आँखों में आँसू थेI रसोई घर के सामने से गुज़र रही मालकिन से नौकरानी ने हिम्मत जुटा कर पूछ…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on June 1, 2016 at 12:51pm — 17 Comments

प्रस्तावित है कुछ खुशियाँ - गीत

स्तावित खुशियाँ

प्रस्तावित है कुछ खुशियाँ

कुछ सपनों का अनुबंध

दीवारों ने कब देखी है

नील गगन की क्यारी

सोच रही है तन्हाई

कब जायेगी लाचारी

हिम्मत के जब पाँव बढ़े

दानों का हुआ प्रबंध

अरमानों की किस्मत में

क्यों होता कहर जरूरी

समझोते की भठ्ठी में

करता है मौन मजूरी

स्वीकारा प्रतिक्षण ऋतू ने

परिवर्तन से सम्बन्ध

बजते बजते सरगम की

सब टूट…

Continue

Added by asha deshmukh on June 1, 2016 at 11:00am — 6 Comments

सत्ता, धर्म और राजनीति (लघुकथा)

घर के मुख्य द्वार पर खाली प्लेट हाथ में लिए मालकिन को काम वाली बाई सन्नो ने आश्चर्य से देखते हुए पूछा:

"सब्ज़ी आज फिर सड़ गई थी क्या?"

"नहीं, पड़ोसी के घर से प्रसाद आया था, हम नहीं खाते उनके धर्म का प्रसाद, सो उस भूखे भिखारी को दे दिया"- मालकिन ने सन्नो से कहा।

सन्नो ने खिड़की से झांककर देखा कि वह भिखारी उसकी प्लेट में परोसा गया वह प्रसाद ज़ल्दी-ज़ल्दी खाने लगा था और कुछ निवाले पास खड़ी मरियल सी कुतिया के पास फेंकता जा रहा था।

"क्यों बाबा कौन से धर्म के हो तुम?" सन्नो ने…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2016 at 6:00pm — 13 Comments

कविता (माँ)

हे माँ तेरे चरणों की मैं धूल कहाँ से लाऊंगा,

रग रग में तू बसी हुई मैं भूल कहाँ से पाऊंगा।



तिनका तिनका बड़ा हुआ मैं ममता की इन छाँव में,

बात बात पर मुझे सिखाती किताब कहाँ से लाऊंगा।।



सबसे लड़ती मेरी खातिर गली मोहल्ले गांव में,

अब सब बन गए मेरे दुश्मन कैसे मैं बच पाउँगा



याद है एक दिन तूने मुझको यही पाठ सिखलाया था,

भाव सरल और मधुर वचन का सच्चा पाठ पढ़ाया था।।



दीन दुःखी की सेवा कर फिर जग में नाम कमाया था,

बनकर तेरे जैसा मैं अब कुछ…

Continue

Added by NEERAJ KHARE on May 31, 2016 at 9:00am — 5 Comments

पूछता है आइना-ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

खो गया है अक्स असली ढूँढता है आईना।

होंठ पर मुस्कान नकली देखता है आईना।।

.

इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।

किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।।

.

हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।

क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।

.

बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।

भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।

.

मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।

बिक गयी माता…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 30, 2016 at 11:30pm — 8 Comments

आईना बन के कभी सामने आया न करो - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

212 2112 2112 222

प्यार में तुम मेरे ऐवों को दिखाया न करो|

आईना बन के कभी सामने आया न करो|

 

फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखें हैं,

हर किसी को कभी अब दोस्त बनाया न करो|

 

जाग उठाते हैं मेरे मन में सवालात कई,

हर किसी दर पे कभी सर को झुकाया न करो|

 जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में,

ऐसे सपने कभी आँखों में सजाया न करो|

 

एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर,

ज़ख्म अपने कभी अपनों को दिखाया…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:30pm — 10 Comments

तीर लगता आज सूना

बादल सा पल फिसल गया  

बिन बरसे ही निकल गया 
जाने गया किस व्यथित तीरे 
चुपके चुपके धीरे  धीरे 
धरा धरी सी अवाक रह गयी 
विरहनी सी निर्वाक  रह गयी 
बदरा जाने क्या कह  गया 
अश्रू ठहरा फिर बह गया  
उर्मिला की  इक आस सी 
अमावस में उजास सी 
गले सा कुछ रुद्ध गया 
दिया जला और बुझ गया 
कागा भी  कगराये तो क्या 
पलक…
Continue

Added by amita tiwari on May 30, 2016 at 10:30pm — 4 Comments

ब्रह्म सार

हरे वृक्षों के बीच खडा एक ठूँठ।

खुद पर शर्मिन्दा, पछताता हुआ

अपनी दुर्दशा पर अश्रु बहाता हुआ।

पूछता था उस अनन्त सत्य से

द्रवित, व्यथित और भग्न हृदय से।

अपराध क्या था दुष्कर्म किया था क्या

मेरे भाग में यही दुर्दिन लिखा था क्या?

जो आज अपनों के बीच मैं अपना भी नही

उनके लिए हरापन सच, मेरे लिए सपना भी नही।

हरे कोमल पात उन्हें ढाँप रहे छतरी बनकर

कोई त्रास नहीं ,जो सूरज आज गया फिर आग उगलकर।

अपनी बाँह फैलाए वे जी रहे…

Continue

Added by Tanuja Upreti on May 30, 2016 at 4:37pm — 5 Comments

ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल-नूर

२१२२/२१२२/२१२१२ 

.



ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,

जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.

.

काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,

लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े. 

.

एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2016 at 7:47pm — 19 Comments

तज़मीन

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



"तज़मीन बर ग़ज़ल हज़रत सय्यद रफ़ीक़ अहमद "क़मर" उज्जैनी साहिब"



ख़ज़ाँ देखी कभी मौसम सुहाना हमने देखा है

अँधेरा हमने देखा है,उजाला हमने देखा है

फ़सुर्दा गुल कली का मुस्कुराना हमने देखा है

"ग़मों की रात ख़ुशियों का सवेरा हमने देखा है

हमें देखो कि हर रंग-ए-ज़माना हमने देखा है"



_____



वो मंज़र जब कि माँओं से जुदा होने लगे बच्चे

वो दिन भी याद है जब फूल से मुर्झा गये चहरे

लहू से सुर्ख़ थे दरिया,गली,बाज़ार और… Continue

Added by Samar kabeer on May 29, 2016 at 3:00pm — 24 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222   122 

जो भारी ही रहा, बैठा हुआ है

उड़ा वो ही जो कुछ हल्का हुआ है

 

ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे

यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?

 

ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर

ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है

 

फटेगा एक दिन बादल के जैसे

जो आँसू आपने रोका हुआ है

 

बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको

जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है

 

न जाने कौन धोखे बाज निकले

सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 29, 2016 at 9:30am — 18 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
6 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service