वह सात दिन लगातार चलते हुए आखिर अपने घर तक पहुँच ही गयी।लेकिन अपने घास पूस के टपरे में कदम रखने से पहले ही उसकी हिम्मत जबाब दे गयी और वह धम्म में जमीन पर ऐसी गिरी की लाख कोशिशों के बाद भी उठ ना सकी।आज ही के दिन उसके घर वालो ने उसे गैरों के हवाले किया था।पूरे रस्ते वह कितना रोई ।उस जैसी कई थी उस गाड़ी में ,श्यामा भी।
"बस कर गौरा!मत रो.., जब अपनों ने ही अपना नहीं समझा तो किस की जान को रो रही हो।"
"तू बता श्यामा!क्या ये अन्याय नहीं है?जिस उम्र में हमें उन की,अपने घर की, सबसे ज्यादा…
Added by Rahila on September 3, 2016 at 9:35am — 21 Comments
212 22 12 22 12
टूटती सारी हदें सड़कों पे अब ।
लुट रहीं हैं इज्जतें सड़को पे अब ।।
ऐ मुसाफिर देख जंगल राज ये ।
फिर खड़ी है जहमतें सड़कों पे अब ।।
हैं बहुत दागी यहां की खाकियां ।
बिक रही है हरकतें सड़को पे अब ।।
हो चुके हैं राज में गुंडे बहुत ।
लग रहीं हैं महफ़िलें सड़कों पे अब ।।
दिख रही इंसानियत की बेबसी ।
हर तरह की सोहबतें सड़कों पे अब ।।
बाप जिन्दा लाश बनकर रह गया ।
मिट गयीं सब अस्मतें सड़को पे अब ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on September 3, 2016 at 5:30am — 4 Comments
"आप लोगों को आने में थोड़ी देर हो गयी, इनका ब्लड प्रेशर इतना कम हो चुका है कि आप लोग... किसी भी तरह की घटना के लिये तैयार रहें|" डॉक्टर के शब्द हल्के से उसके कान में पड़े, लेकिन वह तो इससे पहले ही समझ चुका था, कि मृत्यु उसके बहुत निकट है|
हस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए उसने इशारे से अपनी पत्नी और दोनों बेटों को बुलाया| उन तीनों का हृदय आने वाले समय की आशंका से बहुत तेज़ी से धड़क रहा था| वह उन्हें देखकर मुस्कुरा दिया| बड़े बेटे ने कहा, "पिताजी, आपको कुछ नहीं होगा, आप ठीक हो…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 2, 2016 at 11:30pm — 9 Comments
तन्हा रह जाता है ....
कल की तरह
ये आज भी गुजर जाएगा
स्मृतियों की कोठरी में
फिर कुछ और पल समेट जाएगा
हर कल के साथ
अपने अस्तित्व की शिला से
अपने अमिट होने का
दम्भ को पुष्ट करता रहेगा
हर कल का सूरज
अस्त्तित्वहीन होकर
किसी कल के गर्भ में
लुप्त हो जाएगा
क्या है जीवन
वो
जो गुजर गया
या वो
जो आज है
या फिर वो
जो आने वाले
काल के गर्भ में
सांसें ले रहा है
हर रोज़
इक मैं जन्म लेता…
Added by Sushil Sarna on September 2, 2016 at 9:05pm — 6 Comments
दिल में ठहरा कोई ख्वाब सा रह गया
मैं उसे उम्रभर चाहता रह गया,
उसके जैसा कोई भी दिखा ही नहीं
जिसकी तसवीर मैं देखता रह गया,
शाम होते ही वो याद आने लगा
फिर उसे रातभर सोचता रह गया,
मुझसे मिलने वो आया बहुत दूर से
मैं शहर में उसे ढूंढता रह गया,
उसके बारे में अब याद कुछ भी नहीं
हां मगर याद उसका पता रह गया,
थी वो तकदीर शायद किसी और की
मैं दुआ में जिसे मांगता रह गया।।
.
# अतुल…
ContinueAdded by atul kushwah on September 2, 2016 at 6:00pm — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 2, 2016 at 4:29pm — 4 Comments
किश्तियों का छोड़ चप्पू
रौंदते पगडंडियों को
पत्थरों की नोक से
घायल करें उगता सवेरा
आग में लिपटे हुए हैं
पाखियों के आज डैने
करगसों के हाथ में हैं
लपलपाती लालटेनें
कोठरी में बंद बैठी
ख्वाहिशों की आज मन्नत
फाड़ कर बुक्का कहीं पे
रो रही है देख जन्नत
जुगनुओं की अस्थियों को
ढो रहा काला अँधेरा
घाटियों की धमनियों से
रिस रहा है लाल पानी
जिस्म में छाले पड़े हैं
कोढ़…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 2, 2016 at 10:30am — 25 Comments
22 22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
ज्यूँ तालों में रुका हुआ पानी, गंदा तो है ही
राजनीति में नीति नहीं तब वो धंधा तो है ही
अब भाषा की मर्यादा छोड़ें, गाली भी दे लें
अगर विरोधों मे फँस जायें तो दंगा तो है ही
दिखे केसरी, हरा न दीखे. तो फिर कानूनों में
घुसा हुआ कोई बन्दा निश्चित अंधा तो है ही
डरो नहीं ऐ भारतवासी पाप करम करने में
मैल तुम्हारे धोने को अब माँ गंगा तो है ही
सारे झूठे , हाथों में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 9:30am — 18 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 2, 2016 at 1:45am — 7 Comments
ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )
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मफऊल-फ़ाइलातुन -मफऊल-फ़ाइलातुन
आग़ाज़े इश्क़ कर के अंजाम तक न पहुंचे ।
कूचे में सिर्फ पहुंचे हम बाम तक न पहुंचे ।
फ़ेहरिस्त आशिक़ों की देखी उन्होंने लेकिन
हैरत है वह हमारे ही नाम तक न पहुंचे ।
उसको ही यह ज़माना भूला हुआ कहेगा
जो सुब्ह निकले लेकिन घर शाम तक न पहुंचे ।
बद किस्मती हमारी देखो ज़माने वालो
बाज़ी भी जीत कर हम इनआम तक न…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 1, 2016 at 10:17pm — 12 Comments
2122 2122 212
इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।
हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।
क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।
साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।
ऐ खवातीनों सुनों मेरा कहा।
क्यूँ जलाती हो दिखा अँगड़ाइयाँ।।
चाहता हूं डूबना आगोश में।
ऐ समंदर तू दिखा गहराइयाँ।।
दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?
रात भर बजती रही शहनाइयाँ।।
तुम गये तो जिंदगी तारीक है।
हो गयी दुश्मन सी अब रानाइयाँ।।
दूर…
ContinueAdded by डॉ पवन मिश्र on September 1, 2016 at 9:54pm — 6 Comments
रिश्तों के सीनों में ......
कितनी सीलन है
रिश्तों की इन क़बाओं में
सिसकियाँ
अपने दर्द के साथ
बेनूर बियाबाँ में
कहकहों के लिबासों में
रक़्स करती हैं
न जाने
कितने समझौतों के पैबंदों से
सांसें अपने तन को सजाये
जीने की
नाकाम कोशिश करती हैं
ये कैसी लहद है
जहां रिश्ते
ज़िस्म के साथ
ज़मीदोज़ होकर भी
धुंआ धुंआ होती ज़िन्दगी के साथ
अपने ज़िन्दा होने का
अहसास…
Added by Sushil Sarna on September 1, 2016 at 9:30pm — 10 Comments
212 22 12 22122
शूलियों पर चढ़ चुकी सम्वेदनायें ।
बाप के कन्धों पे बेटे छटपटाएं ।।
लाश अपनों की उठाये फिर रहा है ।
दे रही सरकार कैसी यातनाएं ।।
है यही किस्मत में बस विषपान कर लें ।
दर्द की गहराइयां कैसे छुपाएँ ।।
सिर्फ खामोशी का हक अदने को हासिल ।
डूबती हैं रोज मानव चेतनाएं ।।
हम गरीबों का खुदा कोई कहाँ है ।
मुफलिसी पर हुक्मरां भी मुस्कुराएं।।
वो करेंगे जुर्म का अब फैसला क्या ।
जो नचाते सैफई में…
Added by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:30pm — 6 Comments
सूनापन
एक ख़ला है, ख़ामोशी है,
जिधर देखो उदासी है,
समय सिफ़र हो गया,
आंसू निडर हो गए,
घेरे हैं लोग,पर कोई साथ नहीं,
सर पर किसी का हाथ नहीं,
शाम खाली गिलास सा,
टेबल पर औंधे मुंह पड़ा है,
मन में चिंता दीमक की तरह,
मन को खाये जा रही है,
दिल की गली ऐसी सूनी है,
मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,
शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,
पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,
कब तक और कहाँ तक
इस सूनेपन, इस अकेलेपन का
बोझ…
Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 1, 2016 at 6:30pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 1, 2016 at 5:30pm — 7 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 1, 2016 at 5:01pm — 6 Comments
Added by Ravi Shukla on September 1, 2016 at 12:21pm — 9 Comments
मई जून का महीना आग बरसाता हुआ सूरज ऊपर से सामर्थ्य से ज्यादा भरी हुई खचाखच बस, पसीने से बेहाल लोग रास्ता भी ऐसा कहीं छाया या हवा का नाम निशान नहीं बस भी मानों रेंगती हुई चल रही हो| एक को गोदी में एक को बगल में बिठाए बच्चों को लेकर रेवती सवारियों के बीच में भिंची हुई बैठी थी| मुन्नी ने पानी माँगा तो रेवती ने बैग से गिलास निकाल कर पैरों के पास रक्खे हुए केंपर से बर्फ मिला ठंडा ठंडा पानी दोनों बच्चों को पिला दिया |पानी देखकर न जाने कितने अपने होंठों को जीभ से गीला करने…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 1, 2016 at 12:17pm — 14 Comments
221 1222 221 1222
तू यार बसा मन में दिलदार बसा मन में
हद छोड़ हुआ अनहद विस्तार सजा मन में
आकाश सितारों में जग ढूँढ रहा तुझको
तू मेघप्रिया बनकर है कौंध रहा मन में
झंकार रही पायल स्वर वेणु प्रवाहित है
आभास हृदय करता है रास रचा मन में
तू कृष्ण हुआ प्रियतम वृषभानु कुमारी मैं
तन काँप उठा मेरा अभिसार हुआ मन मे
आवेश भरा विद्युत है धार प्रखर उसकी
आलोक स्वतः बिखरा जब तार छुआ मन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2016 at 8:00pm — 10 Comments
राजू ! हाँ यही तो नाम था उस बच्चे का जिससे मैं मिली थी कुछ वर्षो पहले । अक्सर उसे अख़बार बाँटते हुए देखा था । बारह -तेरह वर्ष का बच्चा । गाड़ियों के पीछे भागता , सिग्नल होने पर गाड़ियों के कांच से अखवार ख़रीदने की गुहार करता । उसके साथ एक बच्ची शायद उसीकी बहन थी । कई बार सोचती थी रुक कर उससे बात करूँ । मासूम सा चहरा ,अपनी बहन का हाथ थामकर ही सड़क पार करता था ।
एक दिन उसी रास्ते से गुज़र रही थी पर वो लड़का नहीं दिखा । उसकी बहन के हाथों में अखबार थे । गाड़ी से उतर कर मैंने उसको अपने पास बुलाया ।…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 30, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
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