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गीत,दिग्पाल छ्न्द-सतविन्द्र

गीत

मापनी :2212 122 2212 122
-------

मुझको सता रही हैं,यादें सभी तुम्हारी
दिलकश अदा तुम्हारी,मोहक हँसी तुम्हारी

चुपचाप पास आना,आकर मुझे सताना
वो पास बैठ जाना, हर बात को बताना
कब भूल पा रहा हूँ,वो दिल्लगी तुम्हारी
दिलकश.....


मैं भूलता जहां को,नजदीक तुम अगर थे
इस प्रेम की डगर पर,ऐ जान हमसफ़र थे
महसूस कर रहा हूँ,हर साँस भी तुम्हारी
दिलकश.....

नज़रें करें शरारत,अच्छी मुझे लगी थी
जब देख मुस्कुराई,इक आस सी जगी थी
उस आस को बढ़ाती,हर बात भी तुम्हारी
दिलकश...

कटता नहीं समय अब,होता विरह कठिन है
दिल तो दुखी हुआ अब,महबूब नेह बिन है
दिल में तुम्हीं बसे जब,हो बन्दगी तुम्हारी
दिलकश.....


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 5:41pm
प्रयास पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक आभार वन्दनीया कांता रॉय दीदी।सादर नमन!
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:51pm
मुझको सता रही हैं,यादें सभी तुम्हारी
दिलकश अदा तुम्हारी,मोहक हँसी तुम्हारी
----- वाह ! क्या सुंदर शब्दों की माला पिरोया है आपने आदरणीय सतविन्द्र जी। बधाई प्रेषित है।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 4, 2016 at 1:11pm
सादर आभार आदरणीय सुरेश फौजी भाई साहब।आपने रचना को समय दे सराहना की,मुझे ऊर्जा मिली।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 3, 2016 at 8:17pm
आदरणीय सतविंदर भाई जी,सुन्दर छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 2, 2016 at 4:33pm
अनुमोदन और सराहना के लिए सादर आभार आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर।छ्न्द के दूसरे नाम से अवगत कराने के लिए भी आभार।सादर नमन।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2016 at 8:53pm

आ० सतविंदर जी , बहुत बढ़िया निभाया , इस छंद को मृदु गति छंद भी कहते हैं , सादर .

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