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आ बैठ कंठ शारद,हम ध्यान हैं लगाते
वाणी बने सही यह,कर जोरि कर मनाते
सुर साधना करें माँ,नत हो तुझे बुलाएँ
हों शब्द भाव ऐसे,सबको सदा सुहाएँ।

बोलें सदा सही हम,हर झूठ से बचाओ
हो पुण्य कर्म सारे,हर पाप से बचाओ
हैं मंद बुद्धि प्राणी,अब आप ही सँभालो
वाणी हमें गले से,हँसके जरा लगालो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 5:28pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,प्रयास के भावों की सराहना के लिए हार्दिक आभार।
दिग्पाल छ्न्द की मापनी:2212 122 2212 122 है।यह मात्रिक छ्न्द है।पांचवी,आठवीं,सत्रहवीं और बीसवीं मात्रा अनिवार्य रूप से लघु ही रहरी है।शायद यह ग़ज़ल में कोई बह्र भी हो।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:20am

आदरनीय सतविन्द्र भाई , छंद शिल्प का ज्ञान मुझे नही है , भाव पूर्ण प्रार्थना के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 3, 2016 at 3:48pm
अनुमोदन एवं सराहना करने के लिए सादर हार्दिक आभार जनाब समर कबीर जी।सादर नमन
Comment by Samar kabeer on September 3, 2016 at 1:37pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,अच्छे लगे आपके छन्द,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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