For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिग्पाल छ्न्द(वियोग शृंगार रसः)/ मृदुगति छ्न्द

दिग्पाल छ्न्द(मात्रिक छ्न्द)/ मृदुगति छ्न्द

मापनी:2212 122 2212 122
(वियोग श्रृंगार रस)

हाँ, प्रेम है तुम्हीं से,मनमीत मान लो तुम
चाहत हमें तुम्हीं से, ये बात जान लो तुम
क्यों छोड़ चल दिए हो,मँझधार में मुझे तुम
मुख मोड़ चल दिये हो, तज धार में मुझे तुम।

मुश्किल हुआ विरह अब,ये पल बिता न पाऊँ
साथी बिना तुम्हारे, किस ओर पग बढ़ाऊँ
जो होंठ पर टिका है, इक नाम है तुम्हारा
अब याद ही तुम्हारी, प्रीतम मुझे सहारा।

ये प्रेम का रतन ही, मुझको सुहा रहा है
सुन्दर चमक लिए जो, मन को लुभा रहा है
प्रीतम नहीं तुम्हारा, यों साथ संग मेरे
पर प्रेम का रहेगा, हर हाथ संग मेरे।

तुम साथ ही रहो ये, चाहत नहीं हमारी
हाँ प्यार हो तुम्हारा, दुनिया वहीं हमारी
अब याद ही तुम्हारी, जब एक है सहारा
ये भी जुदा अगर हो, होगा नहीं गवारा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 5:22pm
श्रद्धेय सौरभ सर सादर नमन!आपने इस प्रयास पर उपस्थित होकर महत्वपूर्ण जानकारी साँझा की उसके लिए सादर आत्मीय आभार।श्रद्धेय सर आपने इस प्रयास का जो परिमार्जन किया है,मुझे वह सर्वथा उचित प्रतीत हुआ।भावों के सम्प्रेषण में जहां मैं पूरी तरह सफल नहीं हो पाया था,आपके परिमार्जन से यह उन सब भावों को उभार रही है।श्रद्धेय आपके द्वारा परिमार्जित इस रचना को मैं साभार संशोधन के लिए निवेदित कर रहा हूँ।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 5:18pm
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी मेरे प्रयास आपको तोषकारी लग रहे हैं यह अनुभव मेरे लिए भी सुखद है।आपने प्रयास को समय देकर प्रोत्साहित किया,बहुत बहुत आभार आपका।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 5:16pm
आदरणीय समर कबीर जी प्रयास पर उपस्थित होकर हौंसलाफ़ज़ाई करने के लिए तहे दिल आभार।सादर नमन

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 4:06pm

आदरणीय सतविन्दर जी, आपके पयास प्रसन्नता होती है. इस प्रस्तुति केलिए भी हार्दिक शुभकामनाएँ ..

दिग्पाल छ्न्द वस्तुतः ऐसा मात्रिक छन्द है जिसका पाँचवीं, आठवीं, सत्रहवीं और बीसवीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है. अन्य गुरु मात्राएँ या वर्ण वाचिक परम्परा के गुरु होते हैं जहाँ शब्दकलों के हिसाब से दो लघु समवेत उच्चारित हों तो गुरु का आभास देते हैं. जैसे ’कमल’ शब्द में ’मल’ दो लघु होने के बावज़ूद उच्चारण के अनुसार गुरुवत आचरण करता है. ऐसा हर मात्रिक छन्द में नहीं होता लेकिन गीतिका और हरिगीतिका इस तरह के छन्दों के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं. 

कुछ स्थानों पर शब्दों को सुधार कर प्रयोग करने से रचना की संप्रेषणीयता तो बढ़ेगी ही, गेयता भी बढ़ी लगेगी. भाव और शब्द आपही के हैं, लेकिन थोड़ा बदलाव के साथ पुनर्प्रस्तुत कर रहा हूँ - 

यथा, 

हाँ, प्रेम है तुम्हीं से,मनमीत मान लो तुम 
चाहत हमें तुम्हीं से, ये बात जान लो तुम 
क्यों छोड़ चल दिए हो,मँझधार में मुझे तुम

मुख मोड़ चल दिये हो, तज धार में मुझे तुम 

 
मुश्किल हुआ विरह अब,ये पल बिता न पाऊँ
साथी बिना तुम्हारे, किस ओर पग बढ़ाऊँ 
जो होंठ पर टिका है, इक नाम है तुम्हारा
अब याद ही तुम्हारी, प्रीतम मुझे सहारा

ये प्रेम का रतन ही, मुझको सुहा रहा है
सुन्दर चमक लिए जो, मन को लुभा रहा है
प्रीतम नहीं तुम्हारा, यों साथ संग मेरे
पर प्रेम का रहेगा, हर हाथ संग मेरे

तुम साथ ही रहो ये, चाहत नहीं हमारी 

हाँ प्यार हो तुम्हारा, दुनिया वहीं  हमारी 

अब याद ही तुम्हारी, जब एक है सहारा
ये भी जुदा अगर हो, होगा नहीं गवारा

 

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 12:11pm

आदरनीय सतविन्द्र भाई , भाव पूर्न प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by pratibha pande on September 5, 2016 at 8:23pm

  छंदों पर खूब प्रयास चल रहा है आपका और हर  प्रयास  पहले से ज़्यादा , 'वाह'  होता जा रहा है ... बधाई और शुभ कामनाएँ आपको 

Comment by Samar kabeer on September 4, 2016 at 6:14pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,बहुत सुंदर प्रस्तुति है, दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 4, 2016 at 1:08pm
अनुमोदन एवं सराहना के लिए सादर हार्दिकआभार आदरणीय सुशील सरना जी।सादर नमन
Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 1:03pm

ये प्रेम का रतन ही,मुझको सुहा रहा है
सुन्दर चमक लिए ये,मन को बहा रहा है
प्रीतम नहीं तुम्हारा,अब साथ संग मेरे
पर प्रेम का रहेगा,बस हाथ संग मेरे

बहुत सुंदर प्रस्तुति। .... प्रेमवियोग रस की इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविन्द्र जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service