For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पागल या बदनसीब (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

व्यस्त मुख्य सड़क पर भारी वाहनों की आवा-जाही के बीच साइकिलों पर सवार विद्यालयीन छात्रायें बातचीत करती हुईं अपने विद्यालय की ओर जा रही थीं। उसी दिशा में जा रहे स्कूटर पर सवार एक शिक्षक ने अपने वाहन की गति धीमी करके दो छात्राओं को समझाने की कोशिश करते हुए कहा-"भारी ट्रक आ-जा रहे हैं, बातें करते हुए साइकल मत चलाईये!" - इतना कहा ही था कि पीछे से एक कार ने शिक्षक के स्कूटर को यूं टक्कर मारी कि वह उछलकर गिर पड़ा और वाहन दूसरी ओर बहक गया।

दोनों छात्राओं में से एक ने पीछे मुड़ कर देखा और सहेली से कहा-"गिरा ... पागल, हमें सिखाने चला था!"

घटना के चश्मदीद गवाह एक ग्रामीण राहगीर ने शिक्षक को सहारा देकर उठाया और कहा-"पागल तो भैया आजकल की पीढ़ी है!"

"नहीं भाई, पागल तो मैं ही हूँ! वाहन चलाते समय मुझे उनसे कुछ नहीं कहना चाहिए था! समय के साथ चलने में वे अभ्यस्त हैं, हम नहीं!"

छात्रायें काफी आगे निकल चुकीं थीं और कार भी!

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 575

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 4, 2016 at 8:04pm
आपके अनुमोदन से मेरा यह प्रयास सफल हुआ। मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 4, 2016 at 8:03pm
आपको यह प्रस्तुति पसंद आई, बहुत प्रसन्नता हुई। मेरी रचना पर पहली बार टिप्पणी कर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया अलका चांगा जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 3:04pm
बहुत बढ़िया कथ्य उभरकर आया है आपकी लघुकथा में आदरणीय शहजाद जी।बधाई प्रेषित है।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 3, 2016 at 6:04pm

शानदार लघुकथा ,बहुत खूब आदरणीय

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 3, 2016 at 5:05pm
सदैव हार्दिक स्वागत है आपकी मार्गदर्शक टिप्पणियों का मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी साहब व जनाब समर कबीर साहब। अपने विचारों से अवगत कराने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 4:56pm

छात्रायें काफी आगे निकल चुकीं थीं और कार भी    --  सच है भाई जी अब तो और काफी आगे निकलचुकी होंगी , मुँह बान्धे हुये , आतंकवादियों जैसे । लेकिन ये भी सच है कि वो मानते नहीं किसी की , ऐसों को समय ही सिखायेगा ।

आपकी कथा अच्छी लगी , आदरनीय , इसी बहाने मैभी अपने विचार रख दिया । आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on September 2, 2016 at 3:42pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,बहुत अच्छा सबक़ दे रही है आपकी लघुकथा,इस शानदार प्रतुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service