Added by shashi bansal goyal on September 13, 2016 at 5:18pm — 4 Comments
चाँद की शक्ल में आ जाओ सहर होने तक,
ईद हो जाये मेरी आठ पहर होने तक.
तुमको आवाज़ भी देती तो बताओ…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
ढलक गया .... (क्षणिकाएं )
१.
बंद था
एक लम्हा
पलकों की मुट्ठी में
सह न सका
दस्तक
याद की
और
ढलक गया
हौले से
.... ... ... ... ... ...
२.
था
एक ख़्वाब
जो
हकीकत से पहले
जाने कब
हकीकत में
ख्वाब हो गया
.... .... .... .... .... ....
३.
वो
ज़िदंगी का
बीता कल था
जिया मरके
जिसमें
वो सुहाना पल था
वो पल
सुख का
रूह से
बतियाता रहा
मारने के बाद…
Added by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 4:39pm — 12 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 13, 2016 at 4:17pm — 7 Comments
‘बेटा जो नयी वैकेंसी निकली थी, तुमने फार्म डाल दिया ?’- पिता के चेहरे पर खुशी थी . उनके हाथ में एक मोबाईल था .
‘नहीं पापा, मैं कोई फॉर्म नहीं डालूँगा . आपके कहने पर पहले कितने फार्म भर चुका हूँ , कितने इक्जाम दिए, पर कोई नतीजा निकला ?’
‘बेटा तकदीर को कोई नहीं जानता --------?’
‘बेकार की बाते हैं पापा, नौकरी किस्मत से नहीं योग्यता से मिलती है एक्स्ट्रा आर्डिनरी बच्चों को नौकरी की कमी नहीं , पर जो बच्चे सामान्य हैं वे क्या करें, सरकार के पास उनके लिए कोई व्यवस्था…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2016 at 3:30pm — 5 Comments
कलावती देवी को प्राइमरी शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुए चौदह पन्द्रह वर्ष बीत चुके थे | पति का देहांत हो गया था और वह अपने बेटे के साथ रहती थीं | अकेलेपन और अवहेलना ने उनको चिड़ाचिड़ा बना दिया था | कान से कम सुनाई देता था इस लिए खुद भी तेज आवाज में बोलती थीं, ऐसा कि पूरा मोहल्ला सुनता | बाहर बैठ कर अखबार और अध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना यही उनकी दिनचर्या थी | सास-बहू का जैसे सांप छछूंदर सा बैर था, ना तो बहू उनका ख्याल रखती ना ही वह बहू पर तंज कसने का कोई मौका छोड़तीं | बहू उनका खाना निकाल कर रख…
ContinueAdded by Meena Pathak on September 13, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 13, 2016 at 3:00pm — 10 Comments
बह्र-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,
मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।
गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1
----
अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2
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जा रहेगें मंजिलों तक जख़्म वाले पांव भी,
यार बस अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3
----
इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
----
नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ…
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 13, 2016 at 1:00pm — 11 Comments
Added by मनोज अहसास on September 13, 2016 at 10:37am — 7 Comments
प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज
वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |
वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश
परदेशी हम देश में, लगता है परदेश |
लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग
हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद |
संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |
बना कर लोकतंत्र को,…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 7:30am — 27 Comments
सौंधी सौंधी मिट्टी महके
चीं-चीं चिड़िया अम्बर चहके ।
बाँह भरे हैं जब धरा गगन
बरगद पीपल जब हुये मगन
गांव बने तब एक निराला
देख जिसे ईश्वर भी बहके ।
ऊँची कोठी एक न दिखते
पगडंडी पर कोल न लिखते
है अमराई ताल तलैया,
गोता खातीं जिसमें अहके ।
शोर शराबा जहां नही है
बतरावनि ही एक सही है
चाचा-चाची भइया-भाभी
केवल नातेदारी गमके ।
सुन-सुन कर यह गाथा
झूका रहे नवाचर माथा
चाहे कहे…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 12, 2016 at 10:00pm — 4 Comments
Added by Nita Kasar on September 12, 2016 at 9:30pm — 4 Comments
तुम मुझे मिल जाओगे ...
ये सृष्टि
इतनी बड़ी भी नहीं
कि तुम मेरी दृष्टि की
दृश्यता से
ओझल हो जाओ
असंख्य मकरंदों की महक भी
तुम्हारी महक को
नहीं मिटा सकती
तुम मेरी स्मृति की
गहन कंदरा में
किसी कस्तूरी गन्ध से समाये हो
सच कहती हूँ
तुम मेरे रूहानी अहसासों की
हदों को तोड़ न पाओगे
क्यूँ असंभव को
संभव बनाने का
प्रयास करते हो
अपने अस्तित्व का
मेरे अस्तित्व से
इंकार…
Added by Sushil Sarna on September 12, 2016 at 4:58pm — 4 Comments
सवेरे सवेरे.....
आज आटा गूंधते समय
अचानक उठ आये
छोटी उंगली के दर्द ने
याद दिलाया है मुझे
सुबह गुस्से में जो कांच का
गिलास जमीन पर फेंका था तुमने
उसी काँच के गिलास को
उठाते वक्त चुभा था
काँच के गिलास का वह टुकड़ा,मेरी उँगली में
लाल खून भी अब तो
झलकने लगा है उंगली में
सोच रही हूँ
अब कैसे गूंधूंगी आटा
फिर बायें हाथ से ही
समेटने लगी हूँ
उस आधे गुंधे हुये आटे को
तुम्हें क्या मालूम
हर हाल मे ही
सहना…
Added by Abha saxena Doonwi on September 12, 2016 at 3:10pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 12, 2016 at 12:00am — 14 Comments
ग़ज़ल
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(मफऊल -फाइलात -मफ़ाईल -फाइलुन )
सबको पता है तुझको मेरे दिल ख़बर कहाँ ।
वह डालते हैं सब पे करम की नज़र कहाँ ।
जैसे ही सामना हुआ मेरे हबीब से
बदली में छुप गया है न जाने क़मर कहाँ ।
हातिम की बात हर कोई करता तो है मगर
आता है उसके जैसा नज़र अब बशर कहाँ ।
खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ
जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 11, 2016 at 8:11pm — 12 Comments
शिद्दत की प्यास-----
‘बेटा ----‘
वृद्ध-बीमार पिता ने पुकारा
कोई उत्तर नहीं आया
‘बेटा श्रवण -----‘
पिता ने फिर पुकारा
फिर कोई उत्तर नहीं आया
‘बहू ------ ‘
वृद्ध ने विकल्प तलाशना चाहा
कोई हलचल नहीं हुयी
वृद्ध ने एक और प्रयास करना चाहा
पर खुश्क गले से
नहीं निकल पायी आवाज
उसने कोशिश की स्वयं उठने की
बूढ़े पांवों में नहीं थी
शरीर का बोझ उठाने की ताकत
वह लड़खड़ा कर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 11, 2016 at 3:46pm — 5 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 11, 2016 at 12:30pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
एक दिन है शादमानी की लहर का जागना
रोज़ ही फिर देखना है चश्मे तर का जागना
देख लो तुम भी मुहब्बत के असर का जागना
चन्द लम्हे नींद के फिर रात भर का जागना
चाँद जागा आसमाँ पर, खूब देखे हैं मगर
अब फराहम हो ज़मीं पर भी क़मर का जागना
बाखबर तो नींद में गाफ़िल मिले हैं चार सू
पर उमीदें दे गया है बेखबर का जागना
सो गये वो एक उखड़ी सांस ले कर , छोड़ कर
और हमको दे गये हैं उम्र भर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 10:07am — 4 Comments
बह्र ~ 1222-1222-122
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
मतला ...
नहीं ये आँख में आंसू ख़ुशी के
ये आंसू हैं किसी मुफलिस दुखी के
ग़ज़ल कैसे लिखूं मैं लिख न पाती,
नहीं है लफ्ज़ मिलते शायरी के.
नहीं आदत है हमको तीरगी की ,
जियें कैसे बता बिन रौशनी के.
बहुत ग़मगीन हैं दिल की फिज़ायें,
किसे किस्से सुनाएँ बेबसी के.
कहे हमने नहीं अल्फाज दिल के,
गुजर ही जायेंगे दिन जिन्दगी के.
अगर “आभा…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 11, 2016 at 8:30am — 2 Comments
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