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शिद्दत की प्यास-----

‘बेटा ----‘

वृद्ध-बीमार पिता ने पुकारा

कोई उत्तर नहीं आया  

‘बेटा श्रवण -----‘

पिता ने फिर पुकारा

फिर कोई उत्तर नहीं आया

‘बहू ------ ‘

वृद्ध ने विकल्प तलाशना चाहा

कोई हलचल नहीं हुयी

वृद्ध ने एक और प्रयास करना चाहा

पर खुश्क गले से

नहीं निकल पायी आवाज 

उसने कोशिश की स्वयं उठने की

बूढ़े पांवों में नहीं थी

शरीर का बोझ उठाने की ताकत   

वह लड़खड़ा कर गिरा

कोई बर्तन टूटा,  फ़ैल गया पानी

अचानक दरवाजा खुला

बहू ने प्रवेश किया

‘क्या बाबू जी---?रायता फैला दिया

तंग आ गयी मैं सफाई करते-करते 

पर नहीं आते आप

अपनी हरकतों से बाज ?’

तभी वहां प्रकट हुआ

श्रवण कुमार , आँखें मलता हुआ

‘क्या हुआ डार्लिंग ?’

‘बाबू जी ने फिर जग तोड़ दिया

और क्या ?

‘ओह डैड ! कितनी बार कहा 

आवाज दे दिया करो

जगा लिया करो पर ---‘

अचानक बहू ने घबरा कर कहा -

‘अरे ---- यह बुड्ढा उठता क्यों नहीं ?’

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on September 13, 2016 at 10:05am
बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई । सादर ,
Comment by Sushil Sarna on September 12, 2016 at 7:13pm

आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब एक यथार्थ को आपने बड़ी ही मार्मिकता से प्रस्तुत किया है। ज़हन में उभरे चन्द शब्द इसी सन्दर्भ में :

उम्र की 
उम्रदराज़ चौखट को 
ये दर्द भी सहने पड़ते हैं 
न ज़िन्दगी साथ देती है 
न मौत हाथ देती है ,
एक बर्तन से टूट जाते हैं 
दर्द बिखरे 
खुद ही उठाने पड़ते हैं 
मजबूर हैं 
कांधों के लिए 
वरना 
शमशानों सी इस दुनिया में 
अपने ज़िस्म 
चिताओं पे 
खुद ही जलाने पड़ते हैं

बहरहाल इस मार्मिक प्रस्तुति के लिए दिल बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by Samar kabeer on September 12, 2016 at 3:09pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,कमाल की कविता लिखी आपने,तारीफ़ के लिये अल्फ़ाज़ नहीं हैं मेरे पास,ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कोई चलचित्र सामने हो ,इस शानदार कविता के लिये दिल की गहराइयों से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 12, 2016 at 2:57pm
बुज़ुर्ग तो उठ गया अपनी अंतिम भूमिका इस दुनियावी मंच पर निभाकर।ऐसे हालात में आवाज़ सिर्फ़ ऊपर वाले तक ही पहुँच पाती है। बेटे-बहू शर्म से पानी-पानी हों या न हों, प्रदूषित संस्कृति ज़रूर होती है पानी-पानी। ...बेहतरीन भाव पूर्ण संदेश वाहक प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 12, 2016 at 5:48am
समय हो गया। कष्ट सहने का समय पूरा हो गया। जग दूसरा आ जाएगा। कहानी प्रेरक है। बधाई , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी ,

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