For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog (216)

एक अवांछित सफर कोरोना के साथ

होम-क्वारंटाइन में मैं चेतन और अवचेतन के बीच झूल रहा था I मेरा बड़ा बेटा रमेश रंजन (कुशी) दिन भर ऑक्सीमीटर से मेरा ऑक्सीजन-लेवल और पल्स-रेट चेक करता रहा I चार बजे सायं तक ऑक्सीजन लेवल 91 हो गया I बहुत कम नहीं था पर बेटा चिंता में पड़ गया I उसने सीधे अपने मामा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें हम ‘कुँवर  जी’ कहते हैं, उन्हें फोन लगाया I कठिन क्षणों में कुँवर  जी और उनका परिवार ही हमेंशा हमारा संकटमोचक रहा  है और यही बड़ा विश्वास हमें और हमारे बच्चों को दुविधा की स्थिति में उनके पास ले जाता है…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 29, 2021 at 6:30am — No Comments

सबसे बड़े डॉक्टर (लघुकथा): डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

नर्स ने कोविड मरीज को ऑक्सीमीटर से चेक किया I उसका ऑक्सीजन लेवल 85 और पल्स रेट 60 था I पिछले बारह घंटे से वह ऑक्सीजन पर थाI

‘दादा, कोई तकलीफ ?’- नर्स ने पूछा I

‘हाँ, सूखी खाँसी आती है I गला सूखता है I’- मरीज ने दुर्बल स्वर में कहा I

‘खाँसी जाने में अभी महीना भर लगेगा I साँस लेने में तो कोई परेशानी नहीं है?

‘नहीं, ऑक्सीजन लगने से आराम है I’

‘पर दादा, यह मास्क केवल खाना खाने और पानी पीने के समय ही हटाना I मैंने पानी में ओ.आर.एस. मिला दिया है I धीरे-धीरे उसे…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 28, 2021 at 4:30pm — 5 Comments

गीत (रोला छंद पर आधारित )

मेरा सीमित प्यार तुम्हे आयाम चाहिए

सीता बनना कठिन पर तुम्हे राम चाहिए
बाबुल का घर छोड़
आत्म अनुमति से आई
नर के दृढ भुजपाश
में सदा तृप्ति समाई
अब गंगोदक छोड़ तुम्हे क्यों जाम चाहिये …
Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2020 at 2:55pm — 4 Comments

गीत (सरसी छंद में )

तू मेरी साँसों का परिमल,  मैं तेरा  उच्छ्वास I

 

बन उपवन भौरे गुंजन सब

देते है अवसाद I

तृप्ति मुझे मिल जाती है यदि

थोड़ा मिले प्रसाद I

अनुभव के पन्नों में बिखरा, रागायित इतिहास I

 

जाने कहाँ तिरोहित हैं सब

मान और सम्मान I

घुल जाता है तेरे सम्मुख

पुरुषोचित अभिमान I

अग्नि-खंड यह बन जाता है, मुग्ध प्रणय का दास I

 

उल्काओं को धूल बनाने

की है तुममें शक्ति I

वही शक्ति…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2020 at 7:50pm — 3 Comments

टिड्डियाँ चीन नहीं जायेंगी

टिड्डियाँ   

चीन नहीं जायेंगी

वह आयेंगी 

तो सिर्फ भारत

क्योंकि वह जानती हैं

कि चीन में

बौद्ध धर्म आडंबर में है

और भारत में

आचरण है, संस्कार है

यहाँ अहिंसा  

परम धर्म है

यहाँ आजादी है  

अभिव्यक्ति की

भ्रमण की, निवास की

व्यवसाय की. समुदाय की

जो चीन में नहीं है

वे जानती हैं

चीन यदि जायेंगी

तो बच नहीं पाएंगी 

आहार पाने की कोशिश में

आहार बन…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2020 at 4:59pm — 4 Comments

मसीहा

अधूरा था

मेरा ज्ञान

सर्वभक्षी के बारे में

मै जानता था

केवल अग्नि है सर्व भक्षी



मगर

सब कुछ खाते थे वे

सांप, झींगुर,कीट –पतंग

यहाँ तक कि चमगादड़ भी

असली सर्वभक्षी तो ये थे

इन्हें पता था

प्रकृति लेती है बदला

पर उन्हें भरोसा था

कि वे बदल देंगे

अपने ज्ञान-विज्ञान से

विनाश की दशा और गति

पर जब हुआ

विनाश का तांडव्

फिर कोई न बचा पाया

और न कोइ…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 22, 2020 at 1:30pm — 2 Comments

दूरियां

जब नहीं था

समय

तब तुम घूमती थी

और मंडराती थी

हमारे इर्द-गिर्द

करती थी परिक्रमा

और मैं देता था झिडक  

 

अब मैं

हूँ घर पर मुसलसल

साथ तुम भी हो

व्यस्तता भी अब नहीं कोई   

कितु मेरे पास तुम आती नहीं

परिक्रमा तो दूर की है बात

ढंग से मुसक्याती नहीं    

 

 

नहीं होता

यकीं इस बदलाव पर  

नहीं आ सकतीं

किसी बहकावे में तुम

और फिर अफवाह की भी बात क्या…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 10, 2020 at 1:51pm — 2 Comments

बिसासी सुजान(उपन्यास का एक अंश ) :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

हिन्दी की रीतिमुक्त धारा के शीर्षस्थ  कवि थे i उनकी प्रेमिका थी सुजान. जो दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह 'रंगीले' के दरबार में तवायफ थी i इनके मार्मिक प्रेम की अनूठी दास्तान पर आधारित है-उपन्यास 'बिसासी सुजान ' i पेश है उसका एक अंश ----घनानन्द

[48]

          

       जून का महीना I शुक्ल पक्ष की नवमी I दिन का अंतिम प्रहर I सूर्यास्त का समय I  यमुना नदी का काली घाट I घाट पर सन्नाटा I चंद्रमा की किरणें यमुना की लहरों से खेलती हुयी I हल्की आनंददायक हवा I आनंद…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 10, 2020 at 11:43am — 1 Comment

देश की संस्कृति

संस्कृति देश की है प्राचीनतम,

यह कथा गल्प अथवा कहानी नहीं

है ये अविराम थोड़ा लचीली भी है

पर पयस है महज स्वच्छ पानी नहीं

यह पली है सहनशीलता धैर्य में 

ऐसी उद्दाम कोइ रवानी नहीं

हैं उदात्त हम तो ग्रहणशील भी

और अध्यात्म की कोई सानी नही  

    

दूर भौतिक चमक से रहे हम सदा

ऐसी धरती कहीं और धानी नही

दे  गए पूर्वज जो हमें सौंपकर

वैसी अन्यत्र जग में निशानी नहीं

वन्दे मातरम् I     {मौलिक व…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 9, 2020 at 8:30am — 2 Comments

फिर क्रोध में राम

अभी जरा मैं धनुष सजा लूं  फिर आता हूँ  

विष से थोड़े विशिख बुझा लूं फिर आता हूँ I

 

सोने की लंका बनती है तो  बन जाने दो

रावण का डंका घहराता है  घहराने  दो

धर्म शास्त्र खंडित होते हैं  मत घबराओ  

छा रहा यज्ञ का धूम मलिन तो  छाने दो

 

लेकिन हो रहा सतीत्व हरण यदि नारी का

लूटा  जाता है सर्वस्व किसी  सुकुमारी का

तो अग्निबाण  मेरा अणु-बम सा फूटेगा

मैं प्रत्यंचा खींच धनुष की अब आता हूँ I

 

 

राक्षस था…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2019 at 8:30pm — 9 Comments

प्यार

 फूलो की

वादियों से गुजरते हुए

तमाम खिली रौनकों के बीच  

हठात वह

मन को खींच लेता है

एक अदना सा फूल

 

जिसके आगे

हो जाते है

आसमान  के सितारे फीके

नीरस लगते है

प्रकृति  के सारे उपादान

  

बेचैन मन को

तब निखिल ब्रह्मांड में

यदि  कुछ भाता है

तो सिर्फ वही

अदना सा फूल

 

बन जाता है जब

अपनी सहजता और सादगी में

साधारण सा वह

अपने  ही…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 11, 2019 at 2:05pm — 3 Comments

नेता (लघुकथा )

 आपने कभी आत्मा की आवाज सुनी  है ?’‘- बाबा ने पूछा I

‘कौन आत्मा  ? ‘

‘वही जो हर मनुष्य के अंतर में रहती है  I ‘

‘बाबा मैं  नेता हूँ , मुझे आत्मा-अंतरात्मा से क्या ?

(मौलिक/अप्रकाशित )

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 4, 2019 at 11:47am — 8 Comments

दो पल (बह्र-ए-मीर)

22 22 22 22 22 22 22 2   

 -चॉंदी-सोने  से  दो  पल  हैं,  प्रिय देखॅूं या बात करूं  ।

या बांहों  में चाँद खिलाकर  जगमग सारी रात करूं II

                         

आज असंयम को  बहलाऊॅं –‘मेरा पुण्य तुझे मिल जाये ।

जब मैं शांत,  अशांत हृदय का पागल झंझावात करूं I।

 

                         

गजरे का आडंबर तोडूँ , कुंतल शशि -मुख पर छा जाये I   

मैं कर से उलझन सुलझाऊॅ, प्रेम -प्रकंपित गात करूं …

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2019 at 12:30pm — 3 Comments

दु:स्वप्न (लघुकथा )

‘सीते ---- ?’

‘कौन --- स्वामी ?’

‘नही मैं अभाग्य हूँ I’

‘ तो मुझसे क्या चाहती हो ?’

‘मैं कुछ चाहती नहीं , मैं तो तुम्हे सावधान करने आयी हूँ I ‘

‘किस बात के लिए ?’

‘तुम्हारा राम से बिछोह होगा I…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 19, 2019 at 2:00pm — 6 Comments

उपाय(लघुकथा)

‘क्या कहा कालेज की ओर से ट्रिप में जा रही हो I साथ में लडके भी होंगे ?’- माँ ने पूछा I

‘हां होंगे, तो क्या ?  आजकल बहुतेरे उपाय हैं I आपकी नाक नहीं कटेगीI ‘

 (मौलिक / अप्रकाशित )

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 12, 2019 at 4:00pm — 4 Comments

चाय

‘अरे बहू ---‘
‘क्यों गला फाड़ रहे हैं , क्या है ?
‘अरे वो अपने शर्मा जी आये हैं , जरा चाय बना देना, बेटा I’
दस मिनट बाद बूढ़े ससुर ने फिर आवाज दी, ‘अरे बहू -----अभी तक चाय नही आयी ?’
अगले दस मिनट बाद ससुर ने फिर पुकारा .’अरे बहू---?’
शर्मा जी उठ खड़े हुए और हाथ जोड़ कर बोले ,’भाई साहब, चाय रहने दीजिये, मैं जरा जल्दी में हूँ I चाय फिर कभी –‘

(मौलिक/अप्रकाशित )

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2019 at 8:41pm — 9 Comments

प्रवृत्ति (लघुकथा )

‘दीदी, आप अपनी लहरों में नाचती हैं I कल-कल करती हैं I इतना आनंदित रहती हैं, कैसे ?’ -पोखर ने नदी से पूछा I

‘अपनी आगे बढ़ने की प्रवृत्ति के कारण’- नदी ने उछलकर कहा I

.

 (मौलिक/अप्रकाशित )

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 20, 2019 at 3:00pm — 4 Comments

दशा (लघुकथा )

‘छी: कितने गंदे, कुत्सित और बदबूदार हो तुम I तुम्हें देखकर घिन आती है I’ नदी ने मुंह बनाते हुए नाले से कहा I

‘बुरा न मानना दीदी आजकल तुम्हारी दशा भी मुझसे अच्छी नहीं है I’ नाले ने मुस्कराते हए जवाब दिया I

(मौलिक ?अप्रकाशित )

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2019 at 10:30am — 14 Comments

उपेक्षा (लघुकथा )

 प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा  तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”

“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”

“हां दीदी ?”

“पर क्यों ?”

“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2019 at 9:27pm — 16 Comments

Monthly Archives

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
23 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
24 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
28 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
35 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service