For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमीर खुसरो की काव्य रचना का हिन्दी-कविता मे भावानुवाद

        अमीर खुसरो की रचना

 

जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।

कि ताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।

शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।

सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।

किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
चूँ शम्आ सोजाँ, चूँ जर्रा हैराँ, हमेशा गिरियाँ ब इश्के आँ माह।

न नींद नैंना, न अंग चैना, न आप आये न भेजे पतियाँ।।
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो।

सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ।।

या दुराय राखो समेत साजन जो करने पाऊँ दो बोल-बतियाँ। 

 

 

                  भावानुवाद  

 

 

मुझे देख न हिकारत से तबाही पर सुजान धना

चुरा तू न नजरे मुझसे मधुर बातें सनम न बना  

 

इस कदर चूर-चूर हुआ विरह से यह वपुष मेरा

नहीं देती मधुर तू क्यों मुझे सजनि परिरम्भ घना

 

विरह की रात की मानिंद हैं लम्बे चिकुर तेरे

बड़े छोटे मिलन के पल यहाँ जीना तमाम मना

 

कटे कैसे सखी विकट यह जो काली अमा रैना        

जब तक नही निरख लेता वह मुख-मयंक अभ्र छना

   

वह विलोचन मदिर अवलोक जादू सा  नशा छाया

हुयी मेरी यह दशा  काम ने जो लहक बाण हना

 

बताये कौन जाकर अब  दशा जो है दिवाने की   

जला उर वर्तिका सा लोम-प्रतिलोम सब ज्योतिकना

 

नहा जल-इश्क में आभास यायावर लिये मन में  

पड़े कल न तन में पाती न आवे नीद ही नयना    

 

 फरेब किया  चढ़ा जादू  तड़पता मीन सा हूँ मैं   

छिपा लूं मै सकल पीड़ा मिलन हो अगर प्रीति-सना

 

पिया से बोल दो बोलूँ  अगर संयोग हो पाये  

छिपा लूं फिर उसे सबसे हृदय का यह वितान तना

 (मौलिक व् अप्रकाशित)

 

 

 

 

 

 

Views: 1906

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 20, 2015 at 12:00am

आदरणीय! saurabh pandey जी सर जी आपसे मै पूर्णतया सहमत हूँ मेरा शब्दज्ञान ही मुलायम है! :-):-)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 19, 2015 at 11:47pm

भइया कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरीजी, कठिन शब्द नहीं होते बल्कि हमारा शब्द-ज्ञान मुलायम होता है.

वैेसे आपका सुझाव रोचक है.

:-))

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 19, 2015 at 11:40pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपके अथक परिश्रम को नमन!! भावानुवाद पर बधाईयां! पर आ० इतने कठिन हिंदी के शब्द आपने प्रयोग किये है कि मेरे जैसे नवाभ्यासी के लिए तो दोनों रचनाये एक प्रकार से बराबर ही हो जा रहीं है! कृपया कठिन शब्दों के अर्थ भी साथ में दिया करें!!सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 19, 2015 at 9:13pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी

आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ  . सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2015 at 11:27am

आ० डॉ० गोपाल जी,आपकी इस  प्रस्तुति पर पँहुचने में देर हुई क्षमा चाहती हूँ बस ये कहना चाहूँगी कि हिंदी साहित्य की हर विधा पर प्रयास करने एवं श्रम करने के आपके जज्बे को नमन करती हूँ वैसे आपकी हर रचना से मैं शुरू से ही प्रभावित हुई हूँ और सबसे ज्यादा उस वक़्त जब आपने मेरी पुस्तक काव्य्कलश की अद्दभुत समीक्षा की थी उसे जो भी पढता है आपके लेखन कौशल्य का सम्मान करता है ,वही बात इस रचना को लेकर कहूँगी आपके उसी जज्बे को सलाम करुँगी ,खाने में भी जब हम भी कोई नई डिश बनाते हैं तो एक दो बार तो जरूर गड़बड़ होती ही है ,,इस रचना पर आ० सौरभ जी ने और गिरिराज जी ने बहुत सी बातें स्पष्ट कर दी हैं सो दुहराने की आवश्यकता नहीं हैं फिर भी मेहनत और प्रयास की द्रष्टि से बधाई के हक़दार तो आप हैं ही सादर| 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 9:17pm

आदरणीय सौरभ जी

आपने अपनी बातो से निशब्द कर दिया और गुमनाम जी  भी निशब्द ही हुए होंगे . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 9:02pm

आ० विजय सर !

आपका कथन बिलकुल सही है .  भावानुवाद सचमुच आसान नहीं है . मैंने शुरुआत एक कठिंन  रचना से  की  और फिर कविता और गजल के बीच कन्फ्यूज हो गया  इ आशा हाँ भविष्य में कुछ और बेहतर कर सकूंगा  इ सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 8:55pm

आ० हरिप्रकाश जी

आपके शब्दों से राहत  महसूस हुयी   . कम से कम श्रम को मान्यता मिली इ पर इस रचना से मैं  भी संतुष्ट नहीं  हूँ  . अनुवाद इससे बेहतर हो सकता था यदि मैं कविता के बाद उसे गजल में न  ढालता  .सादर  .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 8:55pm

भाई गुमनामजी,
यह मंच ’सीखने-सिखाने’ की परम्परा का वाहक है. आप ग़ज़ल विधा के मूलभूत विन्दुओं को जानते हैं. आदरणीय गोपाल नारायनजी की इस प्रस्तुति पर आपसे सापेक्ष सुझाव की अपेक्षा थी. उसके स्थान पर आप द्वारा की गयी प्रशंसा जुगुप्साकारी व्यंग्य की तरह प्रतीत हुई है.
आप मेरी मनोदशा को समझने का प्रयास कीजियेगा.
सादर भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 8:54pm

//आपका प्रोत्साहन पाकर हैरान हूँ  .इस गजल से मई  भी संतुष्ट नहीं न इ पर आपका प्यार स्वीकार //

आदरणीय गोपाल नारायनजी,
भाई गुमनाम जी, जो कि स्वयं ग़ज़ल के गंभीर अभ्यासी हैं, की ’प्रशंसा’ पर आपकी स्पष्टता आपके समृद्ध मनस और नीर-क्षीर विवेक का परिचायक है. आपकी इसी प्रखरता का सदा से मैं हृदयतल से सम्मान करता रहा हूँ. यही कारण है कि आपसे हमारी अपेक्षाएँ भी सदा से बड़ी रही हैं. आप विशद अनुभवी हैं, आदरणीय. विद्वान हैं. गहन अध्ययन है आपका. इन विन्दुओं के आलोक में कहूँ तो आपका कोई प्रयास भले ही नयी विधा या नये साहित्यिक क्षेत्र में क्यों न हो, आपकी गरिमामय उपस्थिति की अपेक्षा रहती है.
यथार्थ यही है, आदरणीय, हमसभी इस मंच की पैदाइश हैं. अधिक दिन नहीं हुए, हमसभी की साहित्यिक भाषा तोतली थी. किन्तु इस मंच पर आपसी सान्निध्य और अपने सतत अभ्यास से हम सुधीपाठकों की अपेक्षाओं पर निरंतरता के साथ सहजता से उतरते आ रहे हैं. किन्तु हमारे सीखने का क्रम अनवरत है.
हम किसी नये विधान पर कोई नया रचनाकार्य करें, हमारी असहज कोशिश नये हस्ताक्षरों के समकक्ष होती हुई भी, उस तौर पर कत्तई नहीं ली जायेगी. इसका कारण यह है कि हम अन्य क्षेत्रों में एकदम नये हैं ही नहीं. इस भाव को सदा ध्यान में रखना हमारी विवशता भी है और यही हमारी गरिमा भी है. यही कारण है, आदरणीय, कि मेरी पिछली टिप्पणी इतनी क्लिष्ट एवं कर्कश थी.
सादर क्षमा प्रार्थी हूँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service