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ग़ज़ल-जन-जन में' मैं सद्भाव का संचार करूंगा।-रामबली गुप्ता

वह्र-2212 2212 221 122

जन-जन में' मैं सद्भाव का संचार करूँगा।
सबके दिलों पे प्यार से अधिकार करूँगा।।

नित द्वेष औ' दुर्भाव को कर दूर हृदय से।
मैं प्यार से झंकृत दिलों के तार करूँगा।।

जातीयता औ' धर्म के हर भेद मिटा मैं।
सबसे सदा समभाव का व्यवहार करूँगा।।

निज राष्ट्र के रक्षार्थ रण में शीश खुशी से।
बलिदान क्या इक बार मैं सौ बार करूँगा।।

प्रति पग अहिंसा-प्रेम औ' सन्मार्ग पे चल कर।
मैं विश्व में सुख-शांति का विस्तार करूँगा।।

मां भारती की आन के रक्षार्थ समर में।
मैं काल बन के शत्रु का संहार करूँगा।।

स्वाधीनता-सम्मान के कीमत पे' कभी भी।
जीना न मैं जग मे 'बली' स्वीकार करूँगा।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 8:47pm
आपका बहुत बहुत आभार आद0 सौरभ सर। औ और पे को लेकर काफी सशंकित हो गया था। अनुस्वार वाली टंकण त्रुटि को अभी सुधार करता हूँ। पुनः आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2016 at 8:33pm

भाई रामबली गुप्ता जी, आप अनुस्वार और चन्द्रविन्दु के भेद को मेटने पर क्यों तुल गये हैं ? यह तो लापरवाही है भाई. करूँगा को करूंगा लिखना किसी तौर पर सचेत अभ्यासकर्मियों को शोभा नहीं देता.  

रचनाकर्म के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2016 at 8:23pm

//खडी बोली हिन्दी में औ, पे का प्रयोग नहीं होता //

यह उक्ति कहाँ से उद्धृत की गयी है ? दूसरे, खड़ी बोली का वह कौन-सा स्वरूप है जिसमें इसके प्रति आग्रह है ? छान्दसिक रचनाओं में तत्सम शब्दों के प्रति एक आग्रह अवश्य होता है, जो एक मान्यता के वशीभूत ही है, न कि किसी विधान के धरातल पर स्थापित सत्य. अन्यथा, हिन्दी भाषा का जो प्रचलित स्वरूप सर्वमान्य हुआ है, उसमें सहयोगी भाषाओं के शब्द उदारता से स्वीकार्य होते हैं. 
न हम आज सितारेहिन्द साहब का अनुसरण कर रहे हैं न लल्लू लाल जी का. बल्कि भारतेन्दु के बताये मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं जिसे महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने तार्किकता के खाद-पानी से पोषित-पल्ल्वित किया है. 

सादर

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:07pm
वाह आदरणीय श्री रामबली गुप्ता जी बहुत ही सुन्दर देशभक्ति के मोती पिरोए हैं आपने सुन्दर रचना में। बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 3:17pm
आद0 समर भाई जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका हृदय से आभार
Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 3:16pm
ग़ज़ल पसंद करने एवं बहुमूल्य सुझाव हेतु हृदय से आभार आद0 गोपाल नारायन जी। सादर
Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 3:14pm
आद0 भाई बृजेश कुमार जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका हृदय से आभार
Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:50pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बहुत उम्दा जज़्बाती ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2016 at 8:40pm

आ० राम बली जी - आपकी हिन्दी गजल बड़ी मोहक है . आपसे एक उम्मीद मैं  और करता हूँ कि खडी  बोली हिन्दी में औ, पे का प्रयोग नहीं होता ,अगर इस पर आपने अधिकार कर लिया तो फिर तो बल्ले बल्ले .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 8:24pm

बहुत ही सुंदर अनुपम अनुकरणीय ग़ज़ल आदरणीय 

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