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December 2016 Blog Posts (132)

सपने -- डॉo विजय शंकर

सपने देखने में
कुछ नहीं जाता है ,
टूट जाएँ तो कुछ
रह भी नहीं जाता है।
इसलिए सपने देखें नहीं ,
हमेशा दूसरों को दिखाएं ,
सुन्दर , लुभावने , बड़े-बड़े ,
पूरे हों तो वाह , .. न हों ,
आपका कुछ नहीं जाता है ,
लेकिन इलेक्शन अकसर
इसी फार्मूले पे जीता जाता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 28, 2016 at 10:55am — 10 Comments

बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22



लाख कोशिश करो ज़माने से

राज छिपता नही छिपाने से।।



सिर्फ कहने से कुछ नही होता

रिश्ता होता है बस निभाने से।।



हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर

पीठ मैदान में दिखाने से।।



हाथ माँ का अगर तेरे सर हो

तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।



मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में

हौसला यार टूट जाने से।।



जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी

क्या मिले आइना दिखाने से।।



तेरा घर भी इन्ही में है आबाद

बाज आ बस्तियां जलाने… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments

गीत – सवेरा तू है लाती....

आहिस्ता – आहिस्ता, पास तू आने लगी,

बाहों मे आकर, दिल मे समाने लगी,

छूकर मुझको, सपना दिखाने लगी,

नींदों मे आकर, तू अब सताने लगी.

सवेरा तू है लाती, तू ही लाती रात है,

मेरे दिल को जो धड़कादे , तुझमे वही बात है....(2)



1} देदूं मैं…

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Added by M Vijish kumar on December 28, 2016 at 8:30am — 8 Comments

जज़्बात (नज़्म)

मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं

और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।



ना जाने नम सी आँखें रहती हैं

और दर्द की पीर आँखें सहती हैं

देखकर बेवफाई यह रोती है

तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।



रात की अँधियारी में कभी रोती हैं

कभी काँधे पे सर रख सोती हैं

अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं

सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।



दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं

आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं

सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की

हर…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 8:30pm — 6 Comments


प्रधान संपादक
अधूरी कथा के पात्र (लघुकथा) .

अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI

“रुक जा ओये!” एक…
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Added by योगराज प्रभाकर on December 27, 2016 at 10:00am — 10 Comments

आँधियाँ ( लघु-कविता ) - डॉo विजय शंकर

ये कुदरत है ,
रुख , दाब हवा का संतुलन
बिगाड़िये मत , बना रहने दीजिये।
आँधियाँ किसी के बुलाये ,
लाये से , नहीं आतीं ,
और आ जाएँ तो
किसी के भगाये से नहीं जातीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 27, 2016 at 6:06am — 12 Comments

ग़ज़ल- ख़त मेरा दिल से लगाकर देखिये

2122 2122 212



चाँद को महफ़िल में आकर देखिये ।

इक ग़ज़ल मेरी सुनाकर देखिये ।।



गर मिटानी हैं जिगर की ख्वाहिशें ।

इस तरह मत छुप छुपाकर देखिये ।।



ये रक़ीबों का नगर है मान लें ।

इक रपट मेरी लिखाकर देखिये ।।



हुस्न पर पर्दा मुनासिब है नहीं ।

बज़्म में चिलमन उठाकर देखिये ।।



क्यों फ़िदा हैं लोग शायद कुछ तो है ।

आइने में हुस्न जाकर देखिये ।।



हैं हवाएँ गर्म कुछ् बेचैन मन ।

तिश्नगी थोड़ी बुझा कर देखिये ।।



आप… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:16am — 4 Comments

नया साल

आएगा नया साल

खिलेंगे नये फूल

उगेगा नया सूरज

फैलेगी नयी रौशनी

छंटेगा अँधेरा

सजेगी महफ़िल

गायेंगी वादियाँ

बजेंगी चूड़ियाँ

झूमेगा आसमाँ

नाचेगी धरती

उड़ेगा आँचल

हँसेगा बादल

सच होंगे सपने

मिलेंगी ख़ुशियाँ

मुड़ेंगी राहें

आएगी मंज़िल

मगर...

सिर्फ औरों के लिए

मेरे लिए

तो अब भी वही साल है

कई सालों बाद भी

सड़न और सीलन से युक्त

दुर्गन्ध से भरा हुआ

तड़पता

उदास

बीमार

और बोझिल…

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Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कोई प्रेम-कथा उतरी है (ग़ज़ल) - मिथिलेश वामनकर

2122 – 1122 – 1122  - 22

 

केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है  

या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है

 

इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में

जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है

 

ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम

जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है

 

मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे   

तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है

 

पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा

तब कहीं जाके हृदय में भी…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments

तरही ग़ज़ल

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा



दौर-ए-जवानी के हमको रंगीन ज़माने याद आये

महफ़िल में यारों से वो साग़र टकराने याद आये



तन्हाई में भूले बिसरे सब अफ़साने याद आये

जिनमें ग़म की रातें गुज़रीं, वो मैख़ाने याद आये



दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था

ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये



इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी

दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये



सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब… Continue

Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments

ग़ज़ल ;उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

प्यार की धुन को बजाता जायगा

राज़  जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  

दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा

दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर

खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में

मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा

प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 25, 2016 at 8:00pm — 14 Comments

एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना

सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू

फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा

खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ



जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा

सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा

फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम

मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा



हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है

भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा

रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे

तब बहुत झूठ सी लगती है… Continue

Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments

नंगे लोग (लघुकथा)

फ़रीद भाई स्वयं अपने व अपने घर के छोटे-छोटे ज़रूरी काम ख़ुद कर लेते हैं लेकिन पता नहीं ऊपर वाले ने उनमें कौन सी दिमाग़ी कमी या बीमारी पैदा कर दी कि विक्षिप्त व्यक्ति जैसा जीवन जी रहे हैं। थोड़ी देर पहले ही किशन ने देखा था कि फ़रीद भाई ख़ुशी से झूमते हुए अपने व्यवसायी भाई के घर की ओर जा रहे थे। किसी भले नाई ने इस बार भी उनकी हेअर कटिंग और सेविंग मुफ़्त में कर दी थी। बड़े ही साफ़-सुथरे लग रहे थे। लेकिन अब यह क्या ! ये क्यूँ यहाँ अपनी हाफ़-पैंट की बेल्ट पकड़े हुए आधे नंगे से दौड़ रहे हैं? किशन… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 25, 2016 at 8:54am — No Comments

आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये

आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये

जलियाँ वाला याद आया तोपों के निशाने याद आये

हर और तबाही बरपा थी जुल्म ढहाया जाता था

हुस्न के हाथों आशिक के ख़्वाब मिटाने याद आये

अपने  पीछे दौड़ रहे उस बालक को जब देखा तो 

तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये

फूटी कौड़ी भी ना दूँगा जब भी कोई कहता है

कौरव-पांडव वाले तब ही सब अफ़साने याद आये…

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Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on December 25, 2016 at 12:00am — 3 Comments

50 अशआर के साथ मेरी जिंदगी की सबसे लम्बी ग़ज़ल ।

2122 2122 212



तू न मेरा हो सका तो क्या हुआ ।

हो गया है फिर जुदा तो क्या हुआ ।।



हम सफ़र था जिंदगी का वो मिरे ।

बस यहीं तक चल सका तो क्या हुआ।।



मैकदों की वो फ़िजा भी खो गई ।

वक्त पर वो चल दिया तो क्या हुआ ।।



फिर यकीं का खून कर के वह गयी ।

दर्द दिल का कह लिया तो क्या हुआ।।



सुर्ख लब पे रात भर जो हुस्न था ।

तिश्नगी में बह गया तो क्या हुआ ।।



डर गया इंसान अपनी मौत से ।

खो गया वो हौसला तो क्या हुआ ।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 24, 2016 at 10:30pm — 6 Comments

सोचने के लिये बाध्य

 गाँव में था

एक भवानी का चौतरा

कच्ची माटी का बना   

जिसके पार्श्व में लहराता था ताल

जिसके किनारे था एक देवी विग्रह

छोटा सा

 

चबूतरे को फोड़कर बीच से

निकला था कभी एक वट वृक्ष  

जो विशाल था अब इतना

कि आच्छादित करता था

पूरे चबूतरे को

साथ ही देवी विग्रह को भी

अपने प्रशस्त पत्तों की

घनीभूत छाया से

और लटकते थे

इसकी शाखाओं से अरुणिम फल

 

फूटते थे

शत-शत प्राप-जड़…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2016 at 10:00pm — 7 Comments

फूल और माली (कविता)

एक दिन माली रूठ गया

फूल यह जान दुःखी हुआ

सूरज की तपिश भी तेज थी

बिन पानी के फूल सूख गया

ज़मीन पर गिर मिट्टी पर पड़ा

जोत रहा था बाट माली की

सोच रहा था क्या हो गया

मेरा माली क्यों रूठ गया ।

इतने में कोई पास आया

देख उसको मुरझाया फूल हरकाया

बोला माली से बाबा क्या ऐसी बात हुई

आपकी राह देखते देखते देखो

कई कलियाँ भी मुर्झा गयीं ।

माली ने प्यार से उसे उठाया

गिरे हुए फूल को फिर सहलाया

फूल और माली की प्रीत निराली

सूरज बोला मैं… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments

कौवे(लघु कथा)

ताला भुइयां की बेटी आज घर वापस आ गयी है।विधायक लालू भुइयां अपने घर के छोटे-मोटे कामों के लिए उसे सात साल पहले दिल्ली ले गया था।उसके माँ-बाप को बोला था कि उधर रहेगी,सेवा-टहल करेगी।चार पैसे भी मिल जायेंगे।कुछ पढ़-लिख भी जायेगी।ताला ने पत्नी की तरफ देखा था।उसने मौन सहमति दी थी और दस साल की झुनिया दिल्ली चली गयी थी।हाँ,लालू भुइयां पैसे समय से भिजवाता रहा,पर धीरे-धीरे झुनिया की खबर का आना बंद ही हो गया था।पहले झुनिया के माँ-बाप की गाँव के पांडे बाबा के बेटे से लिखवायी चिट्ठी उसे मिला करती थी,वह उसे… Continue

Added by Manan Kumar singh on December 24, 2016 at 2:47pm — 8 Comments

चाहतें - क्षणिकाएं -- डॉo विजय शंकर

ज़िन्दगी बोझ थी नहीं
अपनी ही चाहतों से
एक बोझ बना लिया
हमने ..............1.

सच में ,
चाहना तुझको था ,
तुझसे ही चाहते
रह गए .............2.


ज़िन्दगी भर
ज़िन्दगी को
ढूंढते रहे ,
वो मिली भी नहीं
और हम ज़िंदा भी रहे .....3.


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2016 at 6:47am — 15 Comments

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