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 तू न मेरा हो सका तो क्या हुआ ।
 हो गया है फिर जुदा तो क्या हुआ ।।
 
 हम सफ़र था जिंदगी का वो मिरे ।
 बस यहीं तक चल सका तो क्या हुआ।।
 
 मैकदों की वो फ़िजा भी खो गई ।
 वक्त पर वो चल दिया तो क्या हुआ ।।
 
 फिर यकीं का खून कर के वह गयी ।
 दर्द दिल का कह लिया तो क्या हुआ।।
 
 सुर्ख लब पे रात भर जो हुस्न था ।
 तिश्नगी में बह गया तो क्या हुआ ।।
 
 डर गया इंसान अपनी मौत से ।
 खो गया वो हौसला तो क्या हुआ ।।
 
 फिर हक़ीक़त खुल गयी चेहरे से है ।
 हो गयी तू बेवफा तो क्या हुआ ।।
 
 चन्द मिसरे थे ग़ज़ल में दर्द के ।
 उम्र भर पढ़ता रहा तो क्या हुआ ।।
 
 थी बहुत चर्चा मिजाजे इश्क़ की ।
 हो गई हम पर फ़िदा तो क्या हुआ ।।
 
 आसुओं में फिर बहे हैं हौसले ।
 वह नही कुछ मानता तो क्या हुआ ।।
 
 खर्च हो जाती है अक्सर जिंदगी ।
 है नहीं हासिल नफा तो क्या हुआ।।
 
 रेत पर था वो घरौंदा भी बना ।
 गर लहर से वह मिटा तो क्या हुआ ।।
 
 था बहुत अंजाम से वह बेखबर ।
 घर नया उसका बिका तो क्या हुआ।।
 
 जर्द पत्तों की तरह वह गिर गया ।
 थी बड़ी हल्की हवा तो क्या हुआ ।।
 
 ढह गयी दिल की इमारत शान से ।
 नाम था लिक्खा हुआ तो क्या हुआ।।
 
 कुछ दुआएं माँ की उसके साथ थीं ।
 कुछ उसे तोहफ़ा मिला तो क्या हुआ ।।
 
 भूंख से बच्चे ने तोडा दम यहाँ ।
 दूध शंकर पर चढ़ा तो क्या हुआ ।।
 
 उम्र भर तरसा जो रोटी के लिए ।
 लाश पर चंदा हुआ तो क्या हुआ ।।
 
 हैं बहुत हाजी नगर में आज भी ।
 है गरीबो से जफ़ा तो क्या हुआ ।।
 
 पी गया है वह समन्दर उम्र तक ।
 अब सड़क पर आ गया तो क्या हुआ ।।
 
 जीत जाएगा वही शातिर यहाँ ।
 है रगों में भ्रष्टता तो क्या हुआ ।।
 
 जेब अपनी गर्म होनी चाहिए ।
 रुपया है गैर का तो क्या हुआ ।।
 
 लुट रहा है मुल्क वर्षो से यही ।
 अब कोई लड़ने चला तो क्या हुआ ।।
 
 फिर बदायूं और यमुना वे मिले ।
 है यही उसकी अदा तो क्या हुआ ।।
 
 क्यों उसे खुजली हुई कानून से ।
 नोट आया गर नया तो क्या हुआ ।।
 
 है इलेक्शन से उसे शिकवा बहुत ।
 धन नही काला बचा तो क्या हुआ ।।
 
 बुन रहें हैं साजिशें सब जात की ।
 वह तरक्की मांगता तो क्या हुआ ।।
 
 आ गई जो बज्म में उल्फत नई ।
 गर कोई दिल टूटता तो क्या हुआ ।।
 
 हाँ पता मालूम था घर का उसे ।
 खत नहीं कोई लिखा तो क्या हुआ ।।
 
 बेबसी का लुत्फ़ सब लेते रहे ।
 सिर्फ वो मुझको पढ़ा तो क्या हुआ ।।
 
 आईने से हर हक़ीक़त जानकर ।
 रात भर रोता रहा तो क्या हुआ ।।
 
 वह रिहाई बाँटती थी इश्क़ की ।
 हो गया तू भी रिहा तो क्या हुआ ।।
 
 बेखुदी में डूब जाने के लिए ।
 दिल मेरा तुझसे मिला तो क्या हुआ ।।
 
 बिन हुनर वह आग के दरिया में है ।
 फिर मुहब्बत में जला तो क्या हुआ ।।
 
 था कहाँ वह इश्क़ के काबिल कभी ।
 अक्ल पर पत्थर पड़ा तो क्या हुआ ।।
 
 इस ताल्लुक़ का भी गहरा सा असर ।
 बोझ अब लगने लगा तो क्या हुआ ।।
 
 डस गयी नागन हो जिसके जिस्म को ।
 फिर भी वो हँसता मिला तो क्या हुआ ।।
 
 यह तबस्सुम है तेरा जालिम बहुत ।
 मैं सलामत बच गया तो क्या हुआ ।।
 
 फिर हवा से क्यों दुपट्टा उड़ गया ।
 साजिशों की थी अदा तो क्या हुआ ।।
 
 चाँद शरमाया हुआ है आजकल ।
 इश्क़ की अर्जी दिया तो क्या हुआ ।।
 
 जुर्म है सच बोलना यारों यहां ।
 झूठ पर पर्दा किया तो हुआ ।।
 
 कत्ल खानो से तेरा था वास्ता ।
 बन गया मकतूल सा तो क्या हुआ ।।
 
 थी तरन्नुम में पढ़ी उसने गजल ।
 दिल उसी पे आ गया तो क्या हुआ ।।
 
 शक की ख़ातिर लुट गई इज्जत सभी ।
 आदमी ठहरा भला तो क्या हुआ ।।
 
 है बहुत लाचार यह इंसान भी ।
 जिस्म का सौदा किया तो क्या हुआ ।।
 
 हारता पोरस सिकन्दर से यहां ।
 वक्त से शिकवा गिला तो क्या हुआ ।।
 
 हुस्न की तारीफ लिख आई कलम।
 हो गई हमसे खता तो क्या हुआ ।।
 
 तुम दगा दोगे न ये उम्मीद थी।
 हो गया कुछ हादसा तो क्या हुआ ।।
 
 इस सुखनवर में नए आलिम मिले ।
 मैं नहीं इसमें ढला तो क्या हुआ ।।
 
 ले गई दिल को हरम से छीनकर ।
 थी मिली पहली दफ़ा तो क्या हुआ ।।
 - नवीन मणि त्रिपाठी
 मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नवीन जी, अभ्यास के क्रम में बढ़िया अशआर कहें हैं आपने. अब इनमें से 7-8 बढ़िया अशआर लेकर 7-8 अशआर वाली एक मुकम्मल ग़ज़ल बना लीजिये. भर्ती के अशआर खुद-ब-ख़ुद हट जायेंगे. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर
आ० नवीन जी . गजल के लिए वैसे तो कोइ शेर की सीमा तय नहीं है पर अमूमन 5 शेर से 11 शेर तक को ही मान्य समझा गया है , गजल में शेर की संख्या odd होती है even नहीं . गजल अच्छी है . गुनीजन विस्तार में जायेंगे ऐसी उम्मीद करता हूँ . सादर .
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