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Aazi Tamaam
  • Male
  • Bareilly, UP
  • India
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Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"बहुत बहुत शुक्रिया आ ममता जी ज़र्रा नवाज़ी का"
Tuesday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"बहुत बहुत शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आ जयनित जी"
Tuesday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"ग़ज़ल तक आने व इस्लाह करने के लिए सहृदय शुक्रिया आ समर गुरु जी मक़्ता दुरुस्त करने की कोशिश करता हूँ सादर 🙏"
Tuesday
Mamta gupta commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें आदरणीय"
Jul 19
Samar kabeer commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'न वक़्त-ए-मर्ग मुकर्र न इब्तिदा मालूम' वक़्त-ए-मर्ग तो मुक़र्रर है प्रिय, ग़ौर करें । मक़्ते के सानी में ""
Jul 18
जयनित कुमार मेहता commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, सादर नमस्कार! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने। इसके लिए आपको हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ। शायद आख़िरी शेर के दूसरे मिसरे में "मुकर्रर" की बजाय "मुकर्र" टाइप हो गया है।"
Jul 18
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"बहुत बहुत शुक्रिया इस ज़र्रा नवाज़ी का आ चेतन जी"
Jul 17
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"जनाब, आज़ी आदाब, अच्छी ग़ज़़ल हुई, मुबारक हो !"
Jul 16
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

१२१२ ११२२ १२१२ २२मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूमहमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूमकरेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनीतुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूमन जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म काकोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूमझुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवानेवफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूमक़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखोन हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता मालूमडरेगा वो जो सतायेगा बेगुनाहों कोहमें ख़ुदा का पता है न कुफ़्र का मालूमफ़ज़ा में हमको महब्बत लुटाना आता हैकिसी दुआ का…See More
Jul 15
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"बहुत बहुत शुक्रिया इस ज़र्रानवाज़ी का आ धामी सर"
Jul 14
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"बहुत बहुत शुक्रिया इस ज़र्रानवाज़ी का आ मिथिलेश जी"
Jul 14
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"गुरु जी जी आप हमेशा स्वस्थ्य रहें और सीखने वालों के लिए एक आदर्श के रूप में यूँ ही मार्गदर्शक  बने रहें हमेशा यही दुआ है मैं ग़ज़ल के बारे में जितना थोड़ा बहुत जानता हूँ आपके ही संपर्क में आकर जान पाया उससे पहले कुछ भी लिखता था जिस अज्ञानता की…"
Jun 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें आ अमीर जी की इस्लाह भी ख़ूब हुई"
Jun 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सभी गुणीजनों की बेहतरीन इस्लाह के बाद अंतिम सुधार के साथ पेश ए ख़िदमत है ग़ज़ल- वाक़िफ़ हुए हैं जब से ज़माने के शर से हम १ डर डर के तब से यार निकलते हैं घर से हम अपनी ख़ता नहीं ये मुक़द्दर का खेल है २ साये मिले हैं दर्द के गुज़रे जिधर से हम महबूब…"
Jun 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"बहुत बहुत शुक्रिया आ ग़ज़ल पर बारीकी से काम करने के लिए 🙏🙏🙏"
Jun 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सादर प्रणाम 🙏गुरु जी सहृदय शुक्रिया आ गुरु जी ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई के लिए  अगर ये पता चल जाता किस किस मिसरें में सुधार की आवश्यकता है तो आसानी होती सुधार करने में"
Jun 28

Profile Information

Gender
Male
City State
Uttar Pradesh
Native Place
CHANDAUSI
Profession
Poet, Lawer, Engineer
About me
Poetic Nature

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ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२

ग़मज़दा आँखों का पानी

बोलता है बे-ज़बानी

मार ही डालेगी हमको

आज उनकी सरगिरानी

आपकी हर बात वाजिब

और हमारी लंतरानी

जाने किसकी बद्दुआ है

वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी

दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं

बुझ रही है ज़िंदगानी

कौन जाने कब कहाँ से

आये मर्ग-ए-ना-गहानी

ले के फागुन आ गया फिर

फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी

कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…

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Posted on April 1, 2024 at 5:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

1212 1212

सही सही बता है क्या

भला है क्या बुरा है क्या

न इश्क़ है न चारागर

तो दर्द की दवा है क्या

लहू सा लाल लाल है

ये आँख में जमा है क्या

बुझे बुझे से लोग हैं

ये ज़िंदगी सज़ा है क्या

अजीब कशमकश सी है

ये दिल तुझे हुआ है क्या

सुकून है न चैन है

यूँ जीने में मज़ा है क्या

जो खाक़ हो रहे हैं हम

किसी कि बद्दुआ है क्या

जला दिया तो…

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Posted on March 6, 2024 at 7:00pm

ग़ज़ल: बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम

221 2121 1221 212

बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम

अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम

ये और बात है की मुकम्मल न हो सका

इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम

सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर

बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम

वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर

अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम

इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें

दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं…

Continue

Posted on January 26, 2024 at 9:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल - ये जो खंडरों सा मकान है

11212    11212

इसी में तो मेरा जहान है

ये जो खंडरों सा मकान है

यूँ ही बोलने से बचा करें

यूँ कि तुंद-ख़ू ये ज़बान है

नया खून है वो है जोश में

अभी ज़िंदगी में उफान है

न है आसमाँ न है तू ज़मीं

तुझे ख़ुद पे कितना गुमान है

तेरी जाति क्या है बिसात क्या

तेरा ज़िस्म ख़ाक समान है

न क़ुसूर कोई 'तमाम' अब

न बची उमंग न जान है

मौलिक व अप्रकाशित

(आज़ी…

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Posted on January 18, 2024 at 4:30am — 6 Comments

Comment Wall (3 comments)

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At 10:44am on April 9, 2024, Erica Woodward said…

I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.

At 1:08pm on January 16, 2021, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said…

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन । मेरी गजलें आपको अच्छी लगीं यह हर्ष का विषय है । आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

मंच पर अपनी रचनाओं का आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें और अन्य रचनाकारों का भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करते रहिए ।

At 8:15pm on January 12, 2021, Samar kabeer said…

जनाब आज़ी साहिब,तरही मुशाइर: में शामिल सभी ग़ज़लों पर लाइव ही तफ़सील से गुफ़्तगू होती है, शिर्कत फ़रमाएँ, और कोई उलझन हो तो मुझसे 09753845522 पर बात कर सकते हैं ।

 
 
 

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"आदरणीया ऋचा यादव जी, इस शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर "
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"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर "
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"आदरणीय जैफ जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. वरिष्ठ जनों के  सुझाओं पर ध्यानकर्षण निवेदित…"
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"आदरणीय दयाराम जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार ... सादर "
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