For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22

लाख कोशिश करो ज़माने से
राज छिपता नही छिपाने से।।

सिर्फ कहने से कुछ नही होता
रिश्ता होता है बस निभाने से।।

हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर
पीठ मैदान में दिखाने से।।

हाथ माँ का अगर तेरे सर हो
तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।

मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में
हौसला यार टूट जाने से।।

जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी
क्या मिले आइना दिखाने से।।

तेरा घर भी इन्ही में है आबाद
बाज आ बस्तियां जलाने से।।

हाथ का मैल 'नाथ' ये पैसा
फिर भी फुर्सत किसे कमाने से।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 7:46pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on December 29, 2016 at 7:08am
आद0 डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपको लिखा पसंद आया, इसके लिए आभार।
यूँही उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन करते रहें। सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:15pm

बढ़िया मतला और गजल भी . सादर .

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:51pm
आदरणीय मिथिलेश जी सादर प्रणाम संग प्रतिक्रिया के लिए आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:50pm
आदरणीय श्याम नारायण जी प्रणाम संग आभार
Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:49pm
आदरणीय गुरुवर समर कबीर साहब प्रणाम, आपको गजल पसंद आई, लिखना सफल हुआ। आभार आपका

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 6:36pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on December 28, 2016 at 5:41pm
क्या बात है , हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on December 28, 2016 at 5:11pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service