For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

May 2015 Blog Posts (226)

बेखुदी_______मनोज कुमार अहसास

ज़िन्दगी में गीत सारे दिल जलाने को लिखे

या फिर अपने इश्क़ को ही आज़माने को लिखे



बेखुदी में लिख दिया तेरे नाम का पहला हरुफ़

जाने कितने नाम फिर तुझको छिपाने को लिखे

(या)

बेखुदी में लिख दिया मेरे नाम का पहला हरुफ़

जाने कितने नाम फिर मुझको छिपाने को लिखे



और हमारी बेबसी का एक वाक्या ये भी है

हमने तुझको ख़त भी तो तुझसे छिपाने को लिखे



जिसने ये लिखकर दिया उम्मीद पर कायम है सब

वो घडी मिलने की भी अब दिल बचाने को लिखे



हम इसी दुनिया… Continue

Added by मनोज अहसास on May 10, 2015 at 5:20pm — 5 Comments

माँ

माँ छोटू के सो जाने के बाद भी उसे देर तक जगाती, किचेन से दूध का एक बड़ा भरा गिलास जबरदस्ती पकड़ाते हुए कहती,जल्दी पी जा नहीं बुढ़िया आ जाएगी.! और छोटू डर के मारे एक ही साँस में पूरा दूध पी जाता ! छोटू बड़ा हो गया है, माँ की अवस्था हो चली है ! माँ बीमार रहती है डॉक्टर ने दवाइयों के साथ दूध पीने को भी कहा है ! माँ दूध नहीं पीती तब छोटू माँ से कहता "माँ जल्दी दूध पी जाओ नहीं बुढ़िया आ जाएगी.! माँ उसके बालपन पे मुस्कराती है और धीरे-धीरे पूरा दूध पी जाती…

Continue

Added by Jitendra Upadhyay on May 10, 2015 at 4:30pm — 4 Comments

मातृ दिवस पर रचित दोहें

मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं  

जग की वह आधार (दोहें)



माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर 

माँ का जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर |- 1



माँ ही ईश की प्रतिनिधि,  देवी  सा सम्मान

ब्रह्मा विष्णु महेश भी, करते है गुणगान |-2

उठते ही नित भोर में, माँ को करें प्रणाम,

माँ के चरणों में बसे, चारों तीरथ धाम | - 3

पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,

माँ से ही होता उसे, सब रिश्तों का बोध | -…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 10, 2015 at 2:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल :-लुक़्मा समझ के हम को मज़ेदार खा गई

बह्र :- मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन



लुक़्मा समझ के हम को मज़ेदार खा गई

दुनिया है एक डायन-ए-बदकार खा गई



निकला जो चाँद मैंने ये समझा कि आप हैं

धोका मेरी नज़र ये कई बार खा गई



पहले तो इसने उनको ज़मींदार कर दिया

फिर ये ज़मीन सारे ज़मींदार खा गई



लिल्लाह अब ये ज़ुल्म-ओ-सितम रोक दीजिये

नफ़रत की आग कितने ही घर बार खा गई



जो कह रहा हूँ कोई नई बात तो नहीं

रोटी की भूक सेकड़ों फ़नकार खा गई



कपड़े ही सिल सके हैं ,न दीपक… Continue

Added by Samar kabeer on May 10, 2015 at 1:54pm — 17 Comments

दर्द की पहुँच (लघुकथा)

"भैया, इनके पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, शराब मांग रहे हैं|"

"भाभी, पहले कितनी पीते थे, छुड़ा रहे हैं तो थोड़ा दर्द होगा ही|"

"आप सही कह रहे हैं...हम नहीं पीने देंगे, अरे माँ जी!" दरवाजे पर सासुमाँ को शराब की बोतल के साथ देखकर बहू आश्चर्यचकित रह गयी|
"माँ ये क्यों लाई? और पैसे कहाँ से लाई?"

"मेरी दवाई लौटा दी मैनें बेटा, उसका दर्द सहन नहीं हो रहा...."

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 10, 2015 at 1:30pm — 8 Comments

माँ स्मरण (मातृदिवस पर विशेष )

                     :: 1 ::

             मॉं तू माने या न माने !

तेरी  वाणी-वीणा  के स्वर ।

रस-वत्सल के बहते निर्झर ।

मै अबोध तन्मय सुनता था वह सारे कलरव अनजाने ।

            मॉं तू माने या न माने !

वह तेरे पायल की रून-झुन ।

मै बेसुध घुंघुरू की धुन सुन ।

मेरे  मुग्ध  मन:स्थिति  की गति अन्तर्यामी  ही जाने ।

             मॉं तू माने या न माने !

सरगम सा आँखो का पानी ।

तू कच्छपि रागो  की रानी ।

इन तारो की ही झंकृति…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 10, 2015 at 1:03pm — 6 Comments

अपेक्षा है तुझे....! (अतुकांत)

सब कुछ

है तेरा

तुझ पर, तेरे कारण ही

और तेरे ही लिए हैं

अपने दामन में पाले हैं तूने

समान, असमान भाव से 

कांटे भी, फूल भी

देव और दानव  

जल भी तेरा, थल भी

मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत

तेरी ही नदियाँ

तेरा ही आश्रय है, सागर को

अश्विन से फाल्गुन तक

सिकुड़ती है,  तू

ज्येष्ठ की दहक में 

तपती और पिघलती रही

अथाह सहनशीलता है,  तुझमे

इस तरह सिकुड़ने और

पिघलने के…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on May 10, 2015 at 11:26am — 12 Comments

माँ परियों की रानी है -- डॉo विजय शंकर

मातृ-दिवस पर



माँ

जिसके बिन जन्म नहीं

सुरक्षा है, सुकून है ,

शान्ति हैं ,

ज्ञान है , संस्कृति है ,

एक पूर्ण परिवेश है ,

अबोथ के लिए ,

अपना विश्वकोष है ,

ईश्वर का वरदान है।

नैसर्गिक अधिकार है ,

अमूल्य है, मूल्यरहित

उपहार है.



स्वर्ग में ,

अप्सराएं प्रतीक्षा करतीं हैं ,

स्वर्ग जाने पर मिलती हैं ,

किसने देखा है,

किसने जाना है ?



धरती पर आने पर

सबसे पहले माँ मिलती है,

माँ प्रतीक्षा… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2015 at 10:00am — 14 Comments

ममता नहीं मरती ....( लघुकथा )

एक जोड़ा दो पहिया वाहन पर तेज़ गति से हाइवे पर गुजर रहा था ।स्त्री की गोद में एक नन्हा बालक था जो हवा के झोंकों से उनींदा हो रहा था ।पुरुष बार बार पीछे मुड़कर पत्नी से बात कर रहा था ।पत्नी ने टोका भी पर उसने अनसुना कर दिया ।अचानक वाहन का संतुलन बिगड़ गया , क्योंकि पीछे से आता हुआ एक ट्रक लगातार तेज हॉर्न देते हुए ' ओवर-टेक ' करने का प्रयास कर रहा था ।अनहोनी हो चुकी थी ।दंपत्ति सामने से आती बस से टकरा चुके थे ।स्थिति भाँप माँ ने दोनों हाथों से बच्चे को भींच लिया था ।गिरते हुए भी मस्तिष्क बच्चे को… Continue

Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:57am — 12 Comments

अंधी ममता ( लघु कथा )

" क्यों बेवजह सुबह सुबह बेटे पर चिल्ला रहे हो ।बच्चा ही तो है ।आपको भी बस बहाना चाहिए डाँटने का ।जैसे खुद से तो कभी गलती...।" मैं पूर्ण आवेग से पति से भीड़ गई थी ।
" बस बस बहुत हो गया ।चुप भी करो । या छुट्टी का पूरा दिन ख़राब करके ही मानोगी ।जैसे मैं तो उसका बाप हूँ ही नहीं।तुम्हारी तरह मैं भी ममता में अँधा हो जाऊँ तो बस ...।"
" करते रहो गुस्सा हुम् ....। आखिर एक माँ पत्नी से कैसे हार सकती है ? "
==========≠======
मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:56am — 10 Comments

चेहरे--

" अंकल " , बस यही आवाज़ निकल पायी थी उसके मुँह से |
पहले भी यही आवाज़ निकलती थी , पर वो आवाज़ ख़ुशी की होती थी |
आज वो अपनी सहेली के घर बिना फोन किये आई , और अब अस्पताल में बेसुध पड़ी थी |
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on May 9, 2015 at 9:02pm — 16 Comments

मदर्स डे (लघुकथा)

"सुनो जी, कल माँ को वृद्धाश्रम से एक दिन की छुट्टी पर ले आना।"
"क्यों, कल ऐसा क्या है?"
"कल मदर्स डे है।"

मौलिक और अप्रकाशित

Added by विनोद खनगवाल on May 9, 2015 at 8:29pm — 16 Comments

इंसानियत का रिश्ता

लड़का रोज शाम को कानो में लीड लगाकर सड़क के बीचो बीच बने पार्क में वाकिंग करने पहुंच जाता.! और वो बुजुर्ग दम्पति भी रोज शाम को पार्क के बीचो बीच बने बेन्च पे बैठकर घंटो खेलते हुए बच्चो को एक टक निहारते.! कभी -कभी प्यार से बच्चो को पुचकार भी देते तो कभी थपकियाँ देने के बहाने सहला भर लेते.! ऐसा करके उन्हें एक अलग सा सुकून मिलता था ! लड़का भी पार्क के एक कोने में बैठकर हर पल उन बूढी आँखों में एक ख़ुशी की चमक देख खुश भर हो जाता..! हर रोज वो लड़का सोचता आज मै इनसे बात करुगा, पर किस बारे में उनसे मेरा…

Continue

Added by Jitendra Upadhyay on May 9, 2015 at 4:00pm — 7 Comments

अपेक्षा का दीप

अपेक्षा का दीप

मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में

बुझे दीप न तेज हवा से सुरक्षा बाढ़ लगाया।

लक्ष्य को छूने का दृढ़ संकल्प लिया मन में

त्याग और बलिदान से प्रेरित मंत्र अपनाया ।

छल,कपट,ईर्ष्या कभी टिके नहीं अंतस्थल में

नैतिक मूल्यों के संस्कार का आवृत्त बनाया ।

मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में

दया धर्म सद्भाव बढ़े आज सभी के जीवन में

अपेक्षा की आस लिए मैंने एक दीप जलाया।

स्नेह का तेल भरा ज्योति ज्ञान की जीवन में

मन में धीरज…

Continue

Added by Ram Ashery on May 9, 2015 at 9:56am — 4 Comments

ग़ज़ल -उमेश कटारा

2122  2122 2122

--------------------------------------------

मर्ज बढ़ता जा रहा अब क्या रखा है

बेअसर होती दवा अब क्या रखा है



ढ़ूँढ ले अब हम सफर कोई नया तू 

मुस्करादे कब कज़ा अब क्या रखा है



रच रहे हम साजिशें इक दूसरे को 

साथ चलने में बता अब क्या रखा है



साथ आना जाना भी क्यों महफिलों में 

बन्द कर ये सिलसिला अब क्या रखा है



शहर पूरा है, मगर आया नहीं तू

बिन मिले ही मैं चला अब क्या रखा है



उमेश कटारा

मौलिक व…

Continue

Added by umesh katara on May 9, 2015 at 9:52am — 13 Comments

बातों में आ जाता हूँ (गजल)

जब बातों में आ जाता हूँ।

तब मैं धोखा खा जाता हूँ,

तू नैनों में बसती हरदम,

तेरी पलकें छा जाता हूँ।

मेरी जां तू कह देती है,

तुझपे जां लु'टा जाता हूँ।

बज़मे-बेदिल से मैं भी तो,

देखो अब रुठा जाता हूँ।

तुझको सहरा फरमाते लेे

फिर मैं अब बु'झा जाता हूँ।

दीया जलने दे जानेमन,

शब तेरी अब उ'ड़ा जाता हूँ।

जल-जल कर जलता दीया हूँ,

तम पी हर दिश छा जाता हूँ।…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 8, 2015 at 11:00pm — 10 Comments

अपेक्षाएं....

दृढ़ता में

भूखे श्रमिकों के श्रम रखते

विकास की नींव

सफलता के केतु आकाश को ढक देते

धरा से गगन को चूमती अट्टालिकाएं उकेरतीं,

झुग्गियों का दर्द

आलसी, धुंध चढ़ जाता ऊपरी मंजिल तक

धूल में लिपटे श्रमिक झाड़ देते

लोभ, इच्छा और आवश्यकताएं भी

श्रम, अटल सत्य-

तनिक भी अपेक्षा नहीं रखती।

टेढ़ी-मेढ़ी सकरी पगड-िण्डयां

स्वयं राजपथ होने का दंभ भरतीं

हुंकारती, अहं के आकार-प्रकार

बहुआयामी अपेक्षाएं- लक्ष्य से कोसों आगे,

दूर की सोच सदैव…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2015 at 9:25pm — 11 Comments

अर्जी (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

‘जी अब तो पेन्शन की अर्जी पास हो जाएगी ना ?’

अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कमरे से बाहर निकलती हुई शहीद फौजी की विधवा ने मंत्री जी के पी.ए. से पूछा
‘अब तो काम हुआ ही समझो ! बस यह अर्जी कल एक बार डाॅयरेक्टर साहिब के पास भी ले जानी होगी'।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Ravi Prabhakar on May 8, 2015 at 11:00am — 19 Comments

मेरा अस्तित्व कहाँ है // रवि प्रकाश

एक समन्दर भी है अन्दर

थोड़ा उथला,थोड़ा गहरा

और लहर पे लहर चढ़ी है

पहले भी मालूम था लेकिन-

जब से तेरा नाम लिखा है

धाराएँ कुछ और हो गईं

सभी किनारे छूट गए हैं।

कब सूरज ने दम तोड़ा था

तड़प-तड़प के हिमशिखरों पर

टूटे तारे कौन गली में

आस जगा कर रहे बिखरते

प्रोषितपतिका रात बनी कब

दरके थे तटबंध हृदय के

कब मैंने आलाप किया था

वेदमंत्र सा राग तुम्हारा

कब उतरा मेरे अधरों पे

कुछ भी तो अब याद नहीं है।

वो छोटा सा एक अकेला

पल,जब… Continue

Added by Ravi Prakash on May 8, 2015 at 7:01am — 14 Comments

माहौल

माहौल"

गुप्ता जी की बेटी ने प्रेम विवाह कर लिया। ये खबर आग की तरह पूरे आस पड़ोस मे फैल गयी। गुप्ता जी के नाम और प्रतिष्ठा से जलने वालो को तो मानो मौका मिल गया था। कई रोज़ तक ये खबर लोगो के मनोरंजन का विषय बनी रही, पर इन सबके बावजूद गुप्ता जी के चेहरे पर शिकन तक ना थी उनके चेहरे मे पहले सी मुस्कान देखकर पडोसियों की ख़ुशी खिसियाहट मे बदल गयी थी।

ये खबर जानकर गांव से आए उनके पिता ने बड़ी नाराजगी में अपने बेटे-बहु को ड़ांटते हुए कहा- यह जो हुआ इसका जिम्मेदार तुम्हारे घर का माहौल है जो… Continue

Added by Priya mishra on May 7, 2015 at 10:06pm — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service