Added by मनोज अहसास on May 10, 2015 at 5:20pm — 5 Comments
Added by Jitendra Upadhyay on May 10, 2015 at 4:30pm — 4 Comments
मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जग की वह आधार (दोहें)
माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर
माँ का जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर |- 1
माँ ही ईश की प्रतिनिधि, देवी सा सम्मान
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, करते है गुणगान |-2
उठते ही नित भोर में, माँ को करें प्रणाम,
माँ के चरणों में बसे, चारों तीरथ धाम | - 3
पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,
माँ से ही होता उसे, सब रिश्तों का बोध | -…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 10, 2015 at 2:30pm — 12 Comments
Added by Samar kabeer on May 10, 2015 at 1:54pm — 17 Comments
"भैया, इनके पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, शराब मांग रहे हैं|"
"भाभी, पहले कितनी पीते थे, छुड़ा रहे हैं तो थोड़ा दर्द होगा ही|"
"आप सही कह रहे हैं...हम नहीं पीने देंगे, अरे माँ जी!" दरवाजे पर सासुमाँ को शराब की बोतल के साथ देखकर बहू आश्चर्यचकित रह गयी|
"माँ ये क्यों लाई? और पैसे कहाँ से लाई?"
"मेरी दवाई लौटा दी मैनें बेटा, उसका दर्द सहन नहीं हो रहा...."
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 10, 2015 at 1:30pm — 8 Comments
:: 1 ::
मॉं तू माने या न माने !
तेरी वाणी-वीणा के स्वर ।
रस-वत्सल के बहते निर्झर ।
मै अबोध तन्मय सुनता था वह सारे कलरव अनजाने ।
मॉं तू माने या न माने !
वह तेरे पायल की रून-झुन ।
मै बेसुध घुंघुरू की धुन सुन ।
मेरे मुग्ध मन:स्थिति की गति अन्तर्यामी ही जाने ।
मॉं तू माने या न माने !
सरगम सा आँखो का पानी ।
तू कच्छपि रागो की रानी ।
इन तारो की ही झंकृति…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 10, 2015 at 1:03pm — 6 Comments
सब कुछ
है तेरा
तुझ पर, तेरे कारण ही
और तेरे ही लिए हैं
अपने दामन में पाले हैं तूने
समान, असमान भाव से
कांटे भी, फूल भी
देव और दानव
जल भी तेरा, थल भी
मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत
तेरी ही नदियाँ
तेरा ही आश्रय है, सागर को
अश्विन से फाल्गुन तक
सिकुड़ती है, तू
ज्येष्ठ की दहक में
तपती और पिघलती रही
अथाह सहनशीलता है, तुझमे
इस तरह सिकुड़ने और
पिघलने के…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 10, 2015 at 11:26am — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2015 at 10:00am — 14 Comments
Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:57am — 12 Comments
Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:56am — 10 Comments
" अंकल " , बस यही आवाज़ निकल पायी थी उसके मुँह से |
पहले भी यही आवाज़ निकलती थी , पर वो आवाज़ ख़ुशी की होती थी |
आज वो अपनी सहेली के घर बिना फोन किये आई , और अब अस्पताल में बेसुध पड़ी थी |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on May 9, 2015 at 9:02pm — 16 Comments
Added by विनोद खनगवाल on May 9, 2015 at 8:29pm — 16 Comments
लड़का रोज शाम को कानो में लीड लगाकर सड़क के बीचो बीच बने पार्क में वाकिंग करने पहुंच जाता.! और वो बुजुर्ग दम्पति भी रोज शाम को पार्क के बीचो बीच बने बेन्च पे बैठकर घंटो खेलते हुए बच्चो को एक टक निहारते.! कभी -कभी प्यार से बच्चो को पुचकार भी देते तो कभी थपकियाँ देने के बहाने सहला भर लेते.! ऐसा करके उन्हें एक अलग सा सुकून मिलता था ! लड़का भी पार्क के एक कोने में बैठकर हर पल उन बूढी आँखों में एक ख़ुशी की चमक देख खुश भर हो जाता..! हर रोज वो लड़का सोचता आज मै इनसे बात करुगा, पर किस बारे में उनसे मेरा…
ContinueAdded by Jitendra Upadhyay on May 9, 2015 at 4:00pm — 7 Comments
अपेक्षा का दीप
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
बुझे दीप न तेज हवा से सुरक्षा बाढ़ लगाया।
लक्ष्य को छूने का दृढ़ संकल्प लिया मन में
त्याग और बलिदान से प्रेरित मंत्र अपनाया ।
छल,कपट,ईर्ष्या कभी टिके नहीं अंतस्थल में
नैतिक मूल्यों के संस्कार का आवृत्त बनाया ।
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
दया धर्म सद्भाव बढ़े आज सभी के जीवन में
अपेक्षा की आस लिए मैंने एक दीप जलाया।
स्नेह का तेल भरा ज्योति ज्ञान की जीवन में
मन में धीरज…
Added by Ram Ashery on May 9, 2015 at 9:56am — 4 Comments
2122 2122 2122
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मर्ज बढ़ता जा रहा अब क्या रखा है
बेअसर होती दवा अब क्या रखा है
ढ़ूँढ ले अब हम सफर कोई नया तू
मुस्करादे कब कज़ा अब क्या रखा है
रच रहे हम साजिशें इक दूसरे को
साथ चलने में बता अब क्या रखा है
साथ आना जाना भी क्यों महफिलों में
बन्द कर ये सिलसिला अब क्या रखा है
शहर पूरा है, मगर आया नहीं तू
बिन मिले ही मैं चला अब क्या रखा है
उमेश कटारा
मौलिक व…
Added by umesh katara on May 9, 2015 at 9:52am — 13 Comments
जब बातों में आ जाता हूँ।
तब मैं धोखा खा जाता हूँ,
तू नैनों में बसती हरदम,
तेरी पलकें छा जाता हूँ।
मेरी जां तू कह देती है,
तुझपे जां लु'टा जाता हूँ।
बज़मे-बेदिल से मैं भी तो,
देखो अब रुठा जाता हूँ।
तुझको सहरा फरमाते लेे
फिर मैं अब बु'झा जाता हूँ।
दीया जलने दे जानेमन,
शब तेरी अब उ'ड़ा जाता हूँ।
जल-जल कर जलता दीया हूँ,
तम पी हर दिश छा जाता हूँ।…
Added by Manan Kumar singh on May 8, 2015 at 11:00pm — 10 Comments
दृढ़ता में
भूखे श्रमिकों के श्रम रखते
विकास की नींव
सफलता के केतु आकाश को ढक देते
धरा से गगन को चूमती अट्टालिकाएं उकेरतीं,
झुग्गियों का दर्द
आलसी, धुंध चढ़ जाता ऊपरी मंजिल तक
धूल में लिपटे श्रमिक झाड़ देते
लोभ, इच्छा और आवश्यकताएं भी
श्रम, अटल सत्य-
तनिक भी अपेक्षा नहीं रखती।
टेढ़ी-मेढ़ी सकरी पगड-िण्डयां
स्वयं राजपथ होने का दंभ भरतीं
हुंकारती, अहं के आकार-प्रकार
बहुआयामी अपेक्षाएं- लक्ष्य से कोसों आगे,
दूर की सोच सदैव…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2015 at 9:25pm — 11 Comments
‘जी अब तो पेन्शन की अर्जी पास हो जाएगी ना ?’
अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कमरे से बाहर निकलती हुई शहीद फौजी की विधवा ने मंत्री जी के पी.ए. से पूछा
‘अब तो काम हुआ ही समझो ! बस यह अर्जी कल एक बार डाॅयरेक्टर साहिब के पास भी ले जानी होगी'।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on May 8, 2015 at 11:00am — 19 Comments
Added by Ravi Prakash on May 8, 2015 at 7:01am — 14 Comments
Added by Priya mishra on May 7, 2015 at 10:06pm — 7 Comments
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