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अर्जी (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

‘जी अब तो पेन्शन की अर्जी पास हो जाएगी ना ?’

अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कमरे से बाहर निकलती हुई शहीद फौजी की विधवा ने मंत्री जी के पी.ए. से पूछा
‘अब तो काम हुआ ही समझो ! बस यह अर्जी कल एक बार डाॅयरेक्टर साहिब के पास भी ले जानी होगी'।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 6:04pm

मजबूरी का फायदा उठाने वालों की कमी नहीं | बहुत ही बढ़िया कथा हुई है आदरणीय सर | हार्दिक बधाई |

Comment by Ravi Prabhakar on May 17, 2015 at 8:03am

श्रद्धेय सौरभ भाई जी, रचना पर आपके सान्‍िनध्‍य से मन अति प्रमुदित है । अापकी शुभेच्‍छाएं सदैव प्राणवायु का कार्य करतीं है । यह आपकी शुभेच्‍छाएं व ओबीओ का साकारात्‍मक परिवेश ही है जो सदैव अच्‍छा करने के लिए उत्‍साहित व प्रेरित करता है। आपके सान्‍िनध्‍य का कृतज्ञ हूं । अापसे प्रशस्‍ति सदैव हर्षोन्‍मत्‍त करती है । भविष्‍य में भी स्‍नेह बनाए रखिएगा । सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2015 at 11:29pm

सटीक और समर्थ !
अपनी भावदशा को पाठकों तक संप्रेषित कर पाने में यह लघुकथा पूरी तरह से सफल है. बड़ी मछली-छोटी मछली की कहावत सुना था. आज सारा समाज ही इससे कुप्रभावित दिख रहा है.
भाई रविजी, आपकी संवेदनशीलता पाठकों भक्क कर देती है. इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ

अलबत्ता, मैं भी भाई मनोज कुमार अहसास की टिप्पणी के आशय को अनुमोदित करता हूँ.
शुभेच्छाएँ

Comment by Ravi Prabhakar on May 12, 2015 at 10:19pm

आपकी टिप्‍पणी से अभीभूत हूं आदरणीय सुधीर भाई । आप सरीखे मंझे लघुकथाकार से वाहवाही प्राप्‍त करना एक पुरस्‍कार ही है । सादर

Comment by Ravi Prabhakar on May 12, 2015 at 10:16pm

रचना पर आपके अनुमोदन से आनंदित हूं आदरणीय मिथिलेश भाई जी ।

Comment by Ravi Prabhakar on May 12, 2015 at 10:14pm

साभार आदरणीय कृष्‍ण मिश्रा जी, आदरणीय कांता रॉय जी व आदरणीय चंद्रेश भाई जी ।

Comment by Ravi Prabhakar on May 12, 2015 at 10:13pm

आपकी भावनाओं की कद्र करता हूं आदरणीय मनोज मिश्रा जी । सादर ।

Comment by Sudhir Dwivedi on May 12, 2015 at 11:41am

"सुन्न एवं सन्न " पाठक होने के नाते यही अनुभव किया मैंने आपकी कथा पढ़ ..बधाई रवि सर एक और सशक्त कथा हेतु | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2015 at 9:26am

आदरणीय रवि प्रभाकर जी, आप लघुकथा के एक सशक्त हस्ताक्षर है. आपकी यह लघुकथा पढ़कर मुग्ध हूँ. इस विषय को इतने कम शब्दों में पूरी मार्क क्षमता के साथ अभिव्यक्त करना. वाकई कमाल है. आपको बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 10, 2015 at 7:50pm

मजबूरी  का लाभ उठाना तंत्र में मौजूद वायरसों को बहुत अच्छी तरह आता है..काश ऐसे लोगों के  लिये भी कोई vaccine निकल जाए|

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