For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्ति (लघुकथा)/रवि प्रभाकर

‘आज तो लाला ने भी और मोहलत देने से साफ मना कर दिया । समझ नहीं आ रहा अब क्या होगा? बैंक की किश्तें, अगले महीने छोटी की शादी... इस बेमौसमी बरसात ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा ।’ साहूकार की दुकान से बाहर निकलते हुए परेशानी के आलम में वो अपने साथी से बोला
‘सब्र से काम लो भाई ! अब जो भगवान को मंजूर ... अरे ! उधर क्या करने जा रहे हो ... उस तरफ तो बाजार है ?’
‘एक रस्सी लेने...।’

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 6:02pm

गरीबों की अपनी ही व्यथा होती है | बहुत बहुत बधाई आदरणीय सर इस बेहतरीन कथा के लिए |

Comment by kanta roy on February 4, 2016 at 11:37pm

हाँ , गरीब चाहे कितना  भी गरीब हो जाए ,रस्सी खरीदने के पैसे उसके पास जरूर होते है क्यूंकि हारे हुए वक़्त में सिर्फ  ईमानदारी से साथ देता है।  बहुत -बहुत बधाई आपको आदरणीय रवि जी इन सुपरहिट्स के लिए ।  

Comment by Ravi Prabhakar on May 26, 2015 at 3:01pm

रचना को अपना अमूल्‍य समय देने हेतु आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद आदरणीय सत्‍यनारायण पाण्‍डेय जी ।

Comment by Ravi Prabhakar on May 26, 2015 at 3:00pm

श्रद्धेय सौरभ भाई जी आपकी उपस्‍िथती से अनुग्रहीत हूं। मार्गदर्शन करते रहें और स्‍नेह बनाएं रखें । आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 25, 2015 at 7:08pm

आज के समय की ज़मीनी सच्चाई को बखूबी उभारा है आपने रवि भाईजी..

प्रस्तुत पर भले ही विलम्ब से टिप्पणी कर रहा हूँ, लेकिन इसे पढ़ गया था. हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by Satyanarayan Singh on May 17, 2015 at 10:47am

समसामयिक सुंदर लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आ. रवि प्रभाकर जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 17, 2015 at 10:47am

समसामयिक सुंदर लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आ. रवि प्रभाकर जी 

Comment by Ravi Prabhakar on May 17, 2015 at 8:08am

रचना पर आपके सान्‍िनध्‍य व अनुमोदन से आपका कृतज्ञ हूं आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी ।

Comment by Ravi Prabhakar on May 17, 2015 at 8:07am

धन्‍यवाद आदरणीय सविता मिश्रा जी ।

Comment by Shubhranshu Pandey on May 15, 2015 at 9:21am

आदरणीय रवि जी, 
सुन्दर कथा,

रस्सी ने किसानों की सारी हकीकत सामने रख दी है. रस्सी से अनाज का बोझा बांधते बांधते आज गले का फ़ंदा बांधने लगे हैं.

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service