Added by Manan Kumar singh on February 15, 2016 at 10:08am — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 15, 2016 at 9:29am — 8 Comments
चिडिया उड गयी - ( वैलेंटाइन डे पर विशेष ) – ( लघुकथा ) -
गोपाल के परिवार को तीन महीने हो गये थे नये मुहल्ले मेंआये हुए!उसके पडोस में एक सुंदर लडकी रहती थी!शायद कमला नाम था!उसकी मॉ सारे दिन कम्मो कम्मो चिल्लाती रहती थी क्योंकि उसका पैर घर के अंदर नहीं टिकता था!!कमला अधिकतर घर के दरवाज़े पर ,लॉन में,छत पर या झूले पर ही दिखती थी ! धूप हो या ना हो हर समय काला धूप का चश्मा लगाये रहती थी !
गोपाल जब भी उस तरफ़ देखता कुछ ना कुछ इशारे करती दिखती!कभी कभी उसके हाथ में कोई खतनुमा कागज़ भी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 14, 2016 at 10:08pm — 8 Comments
कुछ भी
अनुपयोगी नहीं है
उसके लिए
सभी पर है
उसकी निगाहें
गहन कूड़े से भी
बीन और लेता है छीन
वह
प्राप्य अपना
जो है जगद्व्यव्हार में
वह भी
और जो नहीं है वह भी
बीन लेगा एक दिन वह
पेड़ –पौधे, नदी=-पर्वत
और पृथ्वी
यहां तक की जायेगा ले
सूरज गगन, नीहार, तारे
चन्द्र भी
ब्रह्माण्ड के सारे समुच्चय
लोग कहते हैं प्रलय
कहते रहे
किन्तु तय है
बीन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 14, 2016 at 7:22pm — 4 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 14, 2016 at 6:03pm — 1 Comment
ठिठका तो था वो
एक पल को देहरी पर
और फिर निकल गया I
शायद सुन ली होंगी
घर के अन्दर से आती हुई आवाजें
मुट्ठी भींचे ,नारे लगाती,
भ्रामित भी था
कि बाहर से आ रही हैं
या घर के अन्दर से
कि बाहर की ऐसी ही आवाजों को
रोकने के लिये ही तो
ओढ़ी थी सफ़ेद मौत उसने
फिर ये घर के अन्दर से कैसे ?
समझ नहीं सका होगा कुछ
और फिर थक कर
निकल गया उस पार
हर भ्रम से दूर I…
ContinueAdded by pratibha pande on February 14, 2016 at 6:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल ( निभा रहे हैं )
12122 ----12122)
फरेब उल्फ़त में खा रहे हैं /
सितमगरों से निभा रहे हैं /
घटाएं हों क्यों न पानि पानी
वो छत पे ज़ुल्फ़ें सुखा रहे हैं /
हुई है मुद्दत ये सुनते सुनते
वो मुझको अपना बना रहे हैं /
शराब ख़ोरी तो है बहाना
किसी को दिलसे भुला रहे हैं /
लगाके इल्ज़ाम दूसरों पर
वो अपनी ग़लती छुपा रहे हैं /
मेरे लिए बज़्म में वो आये
मगर सभी फ़ैज़ पा…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2016 at 11:47am — 10 Comments
212 212 212 212
संग सुख-दुख सहेंगे ये वादा रहा।
साथ हर वक्त देंगे ये वादा रहा।
चाँदनी रात में ओढ़ कर चाँदनी
तुम जो चाहो, जगेंगे ये वादा रहा।
हाथ सर पर दुआओं का बस चाहिए
हम भी ऊँचा उढ़ेंगे ये वादा रहा।
राह काँटो भरी ये पता है हमें
हौसलों पर बढ़ेंगे ये वादा रहा।
दीप बाती से हम, जब भी मिल कर जले
हर अँधेरा हरेंगे ये वादा रहा।
देह के पार जो चेतना द्वार है
हम वहाँ पर मिलेंगे…
Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2016 at 11:30am — 5 Comments
पहुँच रहे मंजिल तक
झटपट
काले काले घोड़े
भगवा घोड़े खुरच रहे हैं
दीवारें मस्जिद की
हरे रंग के घोड़े खुरचें
दीवारें मंदिर की
जो सफ़ेद हैं
उन्हें सियासत
मार रही है कोड़े
गधे और खच्चर की हालत
मुझसे मत पूछो तुम
लटक रहा है बैल कुँएँ में
क्यों? खुद ही सोचो तुम
गाय बिचारी
दूध बेचकर
खाने भर को जोड़े
है दिन रात सुनाई देती
इनकी टाप सभी…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2016 at 11:03am — 4 Comments
चौकीदारी - ( लघुकथा ) –
"तिवारी जी,सुना है आप के तो दौनों बेटे बहुत बडे गज़टैड अफ़सर हैं!आप कैसे आ फ़ंसे यहां बृद्धाश्रम में"!
"सुनील जी, मैं तो यहां स्वेच्छा से आया हूं, बच्चे तो बहुत ज़िद करते हैं अपने साथ रखने की"!
"क्यों मज़ाक करते हो तिवारी जी,दिल बहलाने को सब यही कहते हैं, पर कौन अपना घर परिवार छोड कर यहां आता है"!
"यह मज़ाक नहीं,हक़ीक़त है"!
"फ़िर इसके पीछे कोई विशेष कारण रहा होगा"!
"ठीक सोचा आपने"!
"अगर ऐतराज़ ना हो तो वह कारण भी बता…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 14, 2016 at 10:56am — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2016 at 10:01am — 7 Comments
Added by Rahila on February 14, 2016 at 12:03am — 14 Comments
बनारसी गईया चरा के लौटे और उनको चरनी पर बाँध के पीठ सीधा करने के लिए झोलंगी खटिया पर लेट गए। इस बार पानी महीनों से बरस नहीं रहा तो घाँस भी कम हो गयी है सिवान में, गर्मी अलग बढ़ गयी है। गमछी से माथे का पसीना पोंछते हुए मेहरारू को आवाज़ दिए " अरे तनी एक लोटा पानी त पिलाओ रघुआ की महतारी, बहुत गरम है आज"। दरवाज़े पर नज़र दौड़ाये तो साइकिल नहीं दिखी, मतलब रघुआ कहीं निकला है।
" कहाँ गायब हौ तोहार नवाब, खेत बारी से कउनो मतलब त नाहीं हौ, कम से कम गईया के ही चरा दिहल करत", पानी लेते हुए मेहरारू से…
Added by विनय कुमार on February 13, 2016 at 11:48pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 13, 2016 at 11:05pm — 3 Comments
बसंत की शोभा बनती
कोयल मीठी बोलती
डाली डाली पर उड़ती
अमृत रस है घोलती
राही से कुछ कहती
नव उमंग से भरती
तन की पीड़ा हरती
मन में खुशियाँ भरती
कड़वाहट को दूर करती
सबका दिल है जीतती
प्यारी सबको लगती
कौवे पर नजर रखती
सदा मेहनत से बचती
घोसले का इंतेजार करती
मौका देख खुद अंडे देती
कौवे के अंडे बाहर करती
उसके संग साजिस करती
बच्चों को नहीं पालती
कोयल कौवे संग…
ContinueAdded by Ram Ashery on February 13, 2016 at 4:30pm — No Comments
मन आंगन की चुनमुन चिड़िया,
चंचल चित्त पर धैर्य सिखाती.
गांव-शहर हर घर-आंगन में
इधर फुदकती उधर मटकती
फिर तुलसी चौरे पर चढ़ कर
चीं चीं स्वर में गीत सुनाती
आस-पास के ज्वलन प्रदूषण
दूर करे इतिहास बुझाती. 1 मन आंगन की चुनमुन चिड़िया..
देह धोंसले घास-पूस के
मिट्टी रंग-रोगन अति सोंधी
आत्मदेव-गुरु हुये कषैले
सिर पर यश की थाली औंधी
बच्चों के डैने जब नभ को
लगे नापने, मां ! हर्षाती. २ मन…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 13, 2016 at 3:00pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 13, 2016 at 8:28am — 10 Comments
(1)
आया बसंत
मेरा मन मलंग
रंगों के संग
.
(2)
पीली सरसों
इठलाती खेतों में
मलय संग
(3)
मुदित पुष्प
सज कर रंगों से
भौंरों के संग
.
(4)
अमराई में
कोयल की कुहुकें
जल तरंग
.
(5)
विरह गीत
मंजुल होठों पर
अश्रु के संग
.
(6)
तान सुरीली
दूर उपवन में
राधा के संग
.
(7)
लाल अगन
दहके उपवन
टेसू के…
Added by Arun Kumar Gupta on February 12, 2016 at 4:30pm — No Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 12, 2016 at 3:10pm — 5 Comments
सौ बार जनम दे मां मुझको, सौ बार तुझी पर मरना है,
सौ बार ये तूफां आने दे, बाहों में इसको भरना है,
ख्वाब है मेरा मां तुझपर सौ बार लुटानी हैं सांसे,
सौ बार तेरी गोदी में सोकर फख्र खुदी पर करना है,
जमती अन्तिम सांस ने जब ये शेरों की मानिन्द कहा,
तब वीरों के इस जज्बे को हर दुश्मन ने जय हिंद कहा ll
जो तूफां की सरशैया पर हंसते-हंसते लेटा हो,
हंसकर उसकी मां बोली हर मां का ऐसा बेटा हो,
फख्र है मुझको जाते-जाते सियाचीन की गोद भर गया,
खाली मेरी गोद नहीं…
Added by Er Anand Sagar Pandey on February 12, 2016 at 11:00am — 8 Comments
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