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पहुँच रहे मंजिल तक

झटपट

काले काले घोड़े

 

भगवा घोड़े खुरच रहे हैं

दीवारें मस्जिद की

हरे रंग के घोड़े खुरचें

दीवारें मंदिर की

 

जो सफ़ेद हैं

उन्हें सियासत

मार रही है कोड़े

 

गधे और खच्चर की हालत

मुझसे मत पूछो तुम

लटक रहा है बैल कुँएँ में

क्यों? खुद ही सोचो तुम

 

गाय बिचारी

दूध बेचकर

खाने भर को जोड़े

 

है दिन रात सुनाई देती

इनकी टाप सभी को

लेकिन ख़ुफ़िया पुलिस अभी तक

ढूँढ़ न पाई इनको

 

घुड़सवार काले घोड़ों ने

राजमहल तक छोड़े

----------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 410

Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 1:02pm
शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 12:57pm
शुक्रिया शेख़ उस्मानी साहब
Comment by TEJ VEER SINGH on February 15, 2016 at 1:28pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी!बेहतरीन और यथार्थ से ओत प्रोत रचना!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 15, 2016 at 12:40pm
समसामयिक ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक सुंदर सार्थक सटीक विचारोत्तेजक कटाक्ष/व्यंग्य पूर्ण/गूढ़ अर्थ पूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी

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