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नवगीत....’छंद माला के काव्य-सौष्ठ्व’

मन आंगन की चुनमुन चिड़िया,

चंचल चित्त पर धैर्य सिखाती.

‌गांव-शहर हर घर-आंगन में

इधर फुदकती उधर मटकती

फिर तुलसी चौरे पर चढ़ कर

 चीं चीं स्वर में गीत सुनाती

आस-पास के ज्वलन प्रदूषण

दूर करे इतिहास बुझाती.  1   मन आंगन की चुनमुन चिड़िया..

देह धोंसले घास-पूस के

मिट्टी रंग-रोगन अति सोंधी

आत्मदेव-गुरु हुये कषैले

सिर पर यश की थाली औंधी

बच्चों के डैने जब नभ को

लगे नापने, मां ! हर्षाती.   २   मन आंगन की चुनमुन चिड़िया...

कवितावलि के बाग-बगीचे

भरें भाव सौरभ मकरंदी

जन मन शोषक भ्रमर सरीखे

शाख-शाख लगते छल-छ्न्दी

पर तरुवर तो साधु हितैषी

फले छांव मृदुफल बहुंभाती.  ३   मन आंगन की चुनमुन चिड़िया

शुभ्र अंग सारे अवयव रस

चखते काम-कुटिल के षटरस

सदभावों की व्यथा सिलवटी

कहते पल-पल चखो राम रस

‘छंद माला के काव्य-सौष्ठव’

देश प्रेम सद सार लुटाती.   ४   मन आंगन की चुनमुन चिड़िया

 

(कवि केवल प्रसाद ‘सत्यम’ का प्रथम काव्य-संग्रह...’छंद माला के काव्य-सौष्ठ्व’ का दिनांक ०७.०२.२०१६  को  यू० पी० प्रेस क्लब, लखनऊ में लोकार्पण कार्यक्रम के उपरांत नवगीत विधा में सम्पूर्ण पुस्तक का सार कविवर केवल प्रसाद ‘सत्यम’ के शब्दों में....!)

मौलिक व अप्रकाशित   

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 15, 2016 at 6:49pm

आ० सौरभ सर जी,  इस नवगीत की सराहना करने एवं पुस्तक लोकार्पण की  बधाई हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार सहित . सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 15, 2016 at 6:46pm

आ० उसमानी भाई जी,  नवगीत की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार सहित शुक्रिया. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2016 at 11:56pm

भाई केवल प्रसाद जी, आपकी कृति का यों पद्यबद्ध देखना आह्लादित कर गया ! प्रस्तुत गीत भी प्रवहमान पंक्तियों की सुन्दर बानगी है. आपके काव्य-संग्रह के लोकार्पित होने पर हार्दिक बधाई व अशेष शुभकामनाएँ. 

शुभेच्छाएँ

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2016 at 8:47pm
वाााह... बेहतरीन प्रस्तुति....

कृपया ध्यान दे...

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