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** कविता::सियाचीन के शहीदों के नाम **

सौ बार जनम दे मां मुझको, सौ बार तुझी पर मरना है,
सौ बार ये तूफां आने दे, बाहों में इसको भरना है,
ख्वाब है मेरा मां तुझपर सौ बार लुटानी हैं सांसे,
सौ बार तेरी गोदी में सोकर फख्र खुदी पर करना है,
जमती अन्तिम सांस ने जब ये शेरों की मानिन्द कहा,
तब वीरों के इस जज्बे को हर दुश्मन ने जय हिंद कहा ll

जो तूफां की सरशैया पर हंसते-हंसते लेटा हो,
हंसकर उसकी मां बोली हर मां का ऐसा बेटा हो,
फख्र है मुझको जाते-जाते सियाचीन की गोद भर गया,
खाली मेरी गोद नहीं वो मेरी गोद भी अमर कर गया,
अन्तिम लफ्ज में भी जिसने नमन तुझे ऐ सिंध कहा,
उन वीरों के सजदे में हर दुश्मन ने जय हिंद कहा ll

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

-इंजी. आनन्द सागर पान्डेय

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Comment

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Comment by Er Anand Sagar Pandey on February 13, 2016 at 12:52pm
सादर आभार आदरणीय सतविंदर जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on February 13, 2016 at 12:46pm
सादर आभार आदरणीया Rahila जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on February 13, 2016 at 12:45pm
सादर आभार आदरणीय kewal prasad जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on February 13, 2016 at 12:44pm
सादर आभार आदरणीय sharadindu जी l

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Comment by sharadindu mukerji on February 12, 2016 at 9:22pm
अत्यंत समयोचित, प्रेरणादायक सार्थक रचना के लिए आपको साधुवाद भाई आनंद सागर जी.सादर.
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 12, 2016 at 7:41pm

गौरवांवित करती रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई. सादर

Comment by Rahila on February 12, 2016 at 7:05pm
बहुत सुन्दर कविता । शहीदों के लिये आंसू नहीं बहाने चाहिये लेकिन हृदय ही रो पड़े तो क्या कहिये । इस भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई आदरणीय !
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 12, 2016 at 6:52pm
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई।

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