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सदस्य टीम प्रबंधन
दीप पर्व पर एक गीत: फिर से दीप बने

कुहनी तक देखो कुम्हार के

फिर से हाथ सने

फिर से चढ़ी चाक पर मिट्टी

फिर से दीप बने

 

 

बंद हो गई सिसकी जो

आँगन में रहती थी

परती पड़ी जमीन…

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Added by Rana Pratap Singh on November 13, 2012 at 11:24am — 6 Comments

तेरा था कुछ, न मेरा था

तेरा था कुछ और न मेरा था

दुनिया का बाज़ार लगा था

मेरे घर में आग लगी जब

तेरा घर भी साथ जला था

 

अपना हो या हो वो पराया

सबके दिल में चोर छिपा था

 

तुम भी सोचो मै भी सोचूँ

क्यों अपनों में शोर मचा था 

 

टोपी - पगड़ी बाँट रहे थे

खूँ का सब में दाग लगा था

मै भी तेरे पास नहीं था

तू भी मुझसे दूर खड़ा था

Added by नादिर ख़ान on November 12, 2012 at 11:17pm — 1 Comment

प्रकाश पर्व

प्रकाश रात खिली है हृदय पटल को खोल
संदेश सबको यही है कि जिंदगी अनमोल।।

Added by सूबे सिंह सुजान on November 12, 2012 at 10:20pm — 1 Comment

OBO दीवाली

बीत गया भीगा चौमासा । उर्वर धरती बढती आशा ।

त्योहारों का मौसम आये। सेठ अशर्फी लाल भुलाए ।|

विघ्नविनाशक गणपति देवा। लडुवन का कर रहे कलेवा

माँ दुर्गे नवरात्रि आये । धूम धाम से देश मनाये ।

विजया बीती करवा आया । पत्नी भूखी गिफ्ट थमाया ।

जमा जुआड़ी चौसर ताशा । फेंके पाशा बदली भाषा ।।

एकादशी रमा की आई । वीणा बाग़-द्वादशी गाई ।

धनतेरस को धातु खरीदें । नई नई जागी उम्मीदें ।

धन्वन्तरि की जय जय बोले । तन मन बुद्धि निरोगी होले ।

काली पूजा बंगाली की ।…

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Added by रविकर on November 12, 2012 at 5:17pm — 3 Comments

गोबर बनाम प्रयोगवाद (हास्य) // शुभ्रांशु

आज कल न्यूजपेपर हों या टीवी का न्यूज चैनल, हर कहीं भ्रष्टाचार के डंक के साथ-साथ मच्छरों के डंक की खबरें भी प्रमुखता से दिख रही हैं. सभी को हिला रखा है. अभी तक मच्छरों से मलेरिया आदि का ही खतरा था, वो भी गरीबों या फिर गये-गुजरे, हाशिये पर छाँट दिये गये स्वप्नजीवी मध्यमवर्गियों को, जो टुटहे फर्राटों में पड़े ’एसी’ के सपने देखा करते थे. लेकिन मच्छर भी आज कल झोपड़पट्टी से निकल कर पॉश होने लगे हैं. इन्हें भी साफ पानी और धनाढ्यों का खून भाने लगा है. फ़िल्मों के एक बडे़ डायरेक्टर की डेंगू…
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Added by Shubhranshu Pandey on November 12, 2012 at 4:15pm — 9 Comments

ग़ज़ल : आ मेरे पास तेरे लब पे जहर बाकी है

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२ 

रह गया ठूँठ, कहाँ अब वो शजर बाकी है

अब तो शोलों को ही होनी ये खबर बाकी है

है चुभन तेज बड़ी, रो नहीं सकता फिर भी

मेरी आँखों में कहीं रेत का घर बाकी है

रात कुछ ओस क्या मरुथल में गिरी, अब दिन भर

आँधियाँ आग की कहती हैं कसर बाकी है

तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया

पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है

तू कहीं खुद भी न मर जाए सनम चाट इसे

आ मेरे पास तेरे लब पे…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 12, 2012 at 2:21pm — 33 Comments

हरिगीतिका

दीपावली लो आ गई है, शोभते सुन्दर दिये।
श्रीराम का जयपर्व ये है, भाग्य पाने के लिये॥
सोहें निलय जगमग बड़े ही, दिव्य सारे चित हुए।
लक्ष्मी-गजानन को सभी ही, पूजके हर्षित हुए॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 11:33am — 4 Comments

जीवन ज्योतिर्मय करदे (गीत)

दीप-ज्यौति के पावन पर्व पर

मुझको, माँ लक्ष्मी ऐसा वर दे |

उज्जवल वस्त्र, सुरभित तन-मन,

सुगन्धित मधुवन सा घर-आँगन दे |

सरस-मलाई मधुमय-व्यंजन दे |

तिमिर छट जाये जीवन में.

जीवन ज्योतिर्मय हो जाये |

आगंतुक का स्वागत करने

पलक पावडे बिछे नयनों में,

दिल में अपनापन हो,

ऐसा मुझको मन-मयूर दे |

सरस्वती के साधक

"लक्ष्मण" पर माँ शारदे,

तेरा वरदहस्त रखदे ।

ध्यान करू मै तेरा और-

आनंदित करू जन-जन को,

कोकिल कंठी स्वर देकर,

मेरे मन गीतों…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2012 at 10:00am — 6 Comments

समझ लेना दीपावली है

जब-जब धर्म की विजय हो,

शुभ-लाभ से भंडार भर जाये,

सुन्दर-सुन्दर रंगोलियाँ सजी हों,

अमावस की रात उजाला हो,

समझ लेना दीपावली है।

दुकानों में उत्सवी रौनक हो,

सबके यहाँ पकवान बने,

ह्रदय-ह्रदय आलोकित हो जाये,

मन-मस्तिष्क व्यथाओं से मुक्त हो,

समझ लेना दीपावली है।

गगन, हर्षध्वनि से गुंजायमान हो,

रोम-रोम आनंद से पुलकित…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 9:25am — 4 Comments

हरिगीतिका से दीपावली

जब दीप जल उट्ठे हजारों,सज गयी हर बस्तियाँ/

हर द्वार हर आँगन सजा है,गज गयी हर बस्तियाँ/

उनके महल घर द्वार भी हैं,सम चमकती बिजलियाँ/

      घृत दीप जिनके द्वार पर है,सम दमकती बिजलियाँ//१//…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 12, 2012 at 9:00am — 4 Comments

दीपावली की शुभकामनाएँ (मत्तगयंद सवैया)



(७ भगड़ और अंत में दो गुरु)

मानस  जो  अँधियार  हुवा अब नष्ट उसे निज से कर डालें !

ज्ञान कि बाति व सत्य क ईंधन से चहुँ धर्म क दीप जला…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 12, 2012 at 7:55am — 10 Comments

मुक्तक--हृदय की तरल अग्नि..

............................................................................................................

हृदय की तरल अग्नि रचती है जीवन

यहीं जन्म लेते हैं वियाग और मधुवन

क्षमा और प्रतिशोध की कैसी माया,

हृदय नभ सो उत्पन्न हो करते नर्तन।

                                     सूबे सिहं सुजान

11.11.12

Added by सूबे सिंह सुजान on November 11, 2012 at 11:15pm — 2 Comments

लघु कथा - गर्द



शाम हो रही थी साहब घर जाने के लिए निकले और जाते जाते रामदीन को मेरी जिम्मेदारी सौंप गये. रामदीन को भी घर जाना था इसलिए उसने जल्दी से मुझे नीचे उतरा और झाड़ा झटका, अचानक मुझ पर पडी गर्द रामदीन से जा चिपकी, वह झुझला गया जैसे उसके शरीर पर धूल न चिपक गई हो बल्कि उसकी आत्मा से ईमानदारी जा चिपकी हो. उसने तुरंत अपने गमछे से सारे शरीर को झाड़ा और एक बार आईने में भी देख आया, उसे लग रहा था जैसे इमानदारी अब भी उससे चिपकी रह गई है. उसने मुझे तह किया और अलमारी में रख…

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Added by वीनस केसरी on November 11, 2012 at 10:25pm — 10 Comments

दीवाली

दीवाली
 

दीवाली जब जब आएगी

याद हमारी आएगी

भूल ना पाओगे हमको…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 10, 2012 at 5:24pm — 1 Comment

दीपावली की शुभकामनाये

         

आओ मिलकर दीप जलाये

दीप, लड़ियों से घर सजा

हर तरह का तम मिटा

जग को प्रकाश की सौगात दिलाये

आओ मिलकर दीप जलाये

 

प्रेम की ज्योति जला के हृदय

बैर से मुक्ति, जग दिलाये

उपहार में बाँट के सदभावना

मीठास की ऐसी रीत चलाये

आओ मिलकर दीप जलाये

 

क्रोध अग्नि को विजित कर

सयंम में खुद नियंत्रित कर

विन्रमता का सबको पाठ पढाये

देश में प्रेम की लहर चलाये

आओ मिलकर दीप…

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Added by PHOOL SINGH on November 10, 2012 at 12:10pm — 4 Comments

दिल्ली का हाल

दिल्ली का हाल
 
यह देखो दिल्ली का हाल
त्रस्त जनता बेबस,बेहाल
महंगाई का बोझ उठाए
पूछे है  सत्ता  से सवाल 
यह देखो दिल्ली का---
चारों तरफ पैसे की भूख 
मची हुई है लूट खसूट 
बिगड़ गए सारे सुर ताल
राजनीति…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 10, 2012 at 11:33am — 3 Comments

दास्ताँ है यें जीव की

दास्ताँ  है यें जीव की

वस्त्र ढ़के, मृत शरीर की

वृद्ध होते ही छोड़ चलें

नींव लिखने, नई तकदीर की

 

प्रीती जाती जब, हृदय जग

दो तनो कर, एक मन

बीज से जाता पराग बन

भू धरा पर ले जन्म

पंचतत्वो का कर संगम

पाया जग में मानव तन

 

शिशु से किशोर तक

रूप बनाया मन भावन

अटखेलियाँ कर कर के

हर्षित करता सबका मन

शिक्षा का वो कर अध्ययन

ज्ञान से करता जग रोशन

 

अध्यन का समय हुआ…

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Added by PHOOL SINGH on November 9, 2012 at 5:32pm — 2 Comments

श्री डेंगू जी : "एक अमर गाथा"

यूं तो हमारे देश में कई क्रांतिकारी कई देशभक्त आये| कोई नोटों तक पहुंचा कोई गुमनामी में खो गया, किसी को चर्चे मिले कोई किताबों में सो गया| मगर उन्होंने अपना कर्तव्य कभी नहीं छोड़ा, आजादी के बाद भी अनेक क्रांतिकारी यदा-कदा देश में आते-जाते रहे| जब-जब शासन अपनी शक्तियों और कर्तव्य को भुला कर कुछ भी करने में अक्षम रहा, वे देशभक्त उन्हें कर्तव्य बोध कराते रहे|

   ऐसा ही कर्तव्य बोध हाल ही में हमारे देश के एक वीर क्रांतिकारी द्वारा सरकार को कराया गया| ये वीर कोई और नही बल्कि परम साहसी, अत्यंत…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on November 9, 2012 at 4:10pm — 7 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा :- रक्त पिपासु

लघु कथा :- रक्त पिपासु…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2012 at 11:00am — 38 Comments

ग़ज़ल - कुछ तेरे होने तलक थी, कुछ तुम्हारे बाद है

कुछ मुझी में प्यार मेरा, इस कदर आबाद है,

कैद में दुनिया है मेरी, दिल मेरा आज़ाद है।



पाँव थमते ही नहीं, अब मंजिलों पर भी मेरे,

ये मेरी आवारगी, शायद मेरी हमजाद है।



कुछ दिनों से चाय की प्याली नहीं खनकी यहाँ,

बिन तेरे बिखरी रसोई, क्या कहाँ, कब याद है।



है जवानी भूलती इस बात को ना जाने क्यूँ,

इक बुढ़ापे ने ही इस घर की रखी बुनियाद है।



दिल को मेरे है शिकायत जाने…
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Added by Arvind Kumar on November 8, 2012 at 8:39pm — 7 Comments

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