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कसाब को फाँसी

सरकार की अपना करो बखान

क्या खूब किया इसने इंसाफ

खाली कर दिया देश खजाना

बचाने को आतंकी मियां “कसाब”

 

हत्याओं की लगा कतार

फाँसी लटके खुद भी यार

पाप की सजा जो तुमने पाई

पाक की इज्जत खाक मिलाई

 

आतंकियों का बन शिरोमणि

ताज पर बमो की झड़ी लगाई

बेगुनाहों का मार के यारा

माफ़ी की फिर गुहार लगाई

 

जख्म भी ऐसे दिए जहाँ को

शैतान भी ले सर झुका

जेल में रह कर भी

पड़ा ना…

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Added by PHOOL SINGH on November 22, 2012 at 11:30am — 6 Comments

अँधा कानून

अँधा कानून 



कुकर्मों का हो गया हिसाब 

फाँसी पर लटके मियां 'कसाव'

खुद भी मरे बेगुनाहों को मारा 

जिंदगी अपनीं  की बर्वाद 

पाप करके कोई बच नहीं सकता 

कोई जख्म किसी के भर नहीं सकता 

आखरी लम्हों में गुनहगारों को भी 

रब्ब आता है याद 

कानून भी अपना इतना लचीला 

करोड़ों का खज़ाना कर दिया ढीला 

इक आतंकी को सज़ा  देनें के लिए 

लगा दिए इतने साल  



दीपक…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 22, 2012 at 10:28am — 3 Comments

अपमानों के अंधड़ झेले ; छल तूफानों से टकराए

अपमानों के अंधड़ झेले ;

छल तूफानों से टकराए ,

कंटक पथ पर चले नग्न पग

तब हासिल हम कुछ कर पाए !



आरोपों की कड़ी धूप में

खड़े रहे हम नंगे सिर ,

लगी झुलसने आस त्वचा थी

किंचित न पर हम घबराये !



व्यंग्य-छुरी दिल को चुभती थी ;

चुप रहकर सह जाते थे ,

रो लेते थे सबसे छिपकर ;

सच्ची बात तुम्हे बतलाएं !



कई चेहरों से हटे मखौटे ;

मुश्किल वक्त में साथ जो छोड़ा ,

नए मिले कई हमें हितैषी

जो जीवन में खुशियाँ लाये… Continue

Added by shikha kaushik on November 21, 2012 at 11:19pm — 9 Comments

क्या देखें

वो नज़र नज़र भर क्या देखें
वो रुका समंदर क्या देखें

जो पत्थर जैसा मिला सदा
दिल उसके अन्दर क्या देखें

कोई उनके जैसा बना नहीं
हम तुम्हें पलटकर क्या देखें

हमने तो हंस के छोड़ा सोना
ये कौड़ी चिल्लर क्या देखें

वो चाँद बुझा कर जा सोये
हम तारे गिनकर क्या देखें

टूट गये गुल गईं बहारें
अब उजड़ा मंज़र क्या देखें

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on November 21, 2012 at 10:09pm — 3 Comments

जल्दी ही तेरा भी तीजा-

बुरे काम का बुरा नतीजा |
चच्चा बाकी, चला भतीजा ||

गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
जल्दी ही तेरा भी तीजा ||

गाल बजाया चार साल तक -
आज खून से तख्ता भीजा ||

लगा एक का भोग अकेला-
महाकाल हाथों को मींजा |

चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||

Added by रविकर on November 21, 2012 at 8:45pm — 4 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा :- तरकीब

लघुकथा :- तरकीब

ठाकुर साहब की चाकरी करते करते भोलुआ के बाबूजी पिछले महीने चल बसे, अब खेत बघार का सारा काम भोलुआ ही देखता था, बदले मे ठाकुर साहब ने जमीन का एक टुकड़ा उसे दे दिया था जिससे किसी तरह परिवार चलता था | ठाकुर साहब भोलुआ को बहुत मानते थे, सदैव भोलू बेटा ही कह कर बुलाते थे | ठाकुर साहब द्वारा इतना सम्मान भोलुआ के प्रति प्रदर्शित करना उनके बेटे विजय बाबू को…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2012 at 8:30pm — 21 Comments

ग़ज़ल : मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

बहर : २१२२ १२१२ २२ [इस बहर को ११२२ १२१२ २२ भी लेने की छूट होती है]

 

मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

की है तौबा न यूँ पिलाया कर

 

जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए

ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 21, 2012 at 3:30pm — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
शब्द शून्य संसार (कुण्डलिया छंद )डॉ प्राची

भाव शून्यता क्या रचे, शब्दों की रसधार 
सर्वस लय कर मन बने, शब्द शून्य संसार ll
शब्द शून्य संसार, शांत गहरे सागर सा 
पाए निज विस्तार, अखंड अनंताम्बर सा ll
अक्षय अच्युत ब्रह्म,  असत् है सारी द्विजता …
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Added by Dr.Prachi Singh on November 21, 2012 at 10:45am — 6 Comments

दर्दे तन्हाई

२१२ २१२

मैं जहाँ भी रहूँ,

तू भी आती है क्यूँ।



मैं अकेला कहाँ,

तेरी यादों में हूँ।



ठोकरें भी लगें,

तो भी चलता रहूँ।



मेरी बर्बादियाँ,

चल रही दू ब दूँ।



कत्ले अरमाँ या जाँ,

बोल दे क्या करूँ।



जिस्म ठंडा हुआ,

रूह जलती है क्यूँ।



है तेरी याद में,

दीद में खूँ ही खूँ।



ज़ख़्मी सारा जिगर,

दर्द कैसे सहूँ।



आशियाना नहीं,

बेठिकाना फिरूँ।



यार भी छल…

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Added by इमरान खान on November 20, 2012 at 11:30pm — 9 Comments

आज करना कुछ नया-सा चाहता हूँ

आज करना कुछ नया-सा चाहता हूँ

आस के जज़्बात भरना चाहता हूँ

 

ये ग़ज़ल मेरी अधूरी है अभी तक

बस तेरी ख़ुशबू मिलाना चाहता हूँ

 

शौक़ है ये और ज़िद भी है हमारी

दिल में दुश्मन के उतरना चाहता हूँ

 

ख़ौफ़जद है ज़िंदगी अब तो हमारी

प्यार के कुछ रंग भरना चाहता हूँ 

 

दुश्मनों ने दोस्त बन कर जो किया था

गलतियाँ उनकी भुलाना चाहता हूँ

(मात्रा  2122  2122  2122  की कोशिश की है ।)

Added by नादिर ख़ान on November 20, 2012 at 11:00pm — 6 Comments

जिंदगी तेरा दायरा मालूम..........

जिंदगी तेरा दायरा मालूम........

इस जमाने का फलसफा मालूम।।

किस तरह आये थे यहाँ मालूम ,

और जाने का रास्ता मालूम........

रात दिन सामना सवालों से,

मन में है कितनी दुविधा मालूम।।

भूख से पेट खाली है कितना,, 

जबकि मौसम है खुशनुमा मालूम।।

लोग खुश हैं कि मर गया सुजान,,

कौन थे ये पता करो मालूम।।   सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on November 20, 2012 at 9:39pm — No Comments

कुछ और ...

कुछ और शाम इंतज़ार सही
कुछ और दिल बेकरार सही

कुछ और रखी जिन्दगी दांव पे
कुछ और तेरा ऐतबार सही

कुछ और गम के समंदर पालूँ
कुछ और काज़ल की धार सही

कुछ और चले ये रात अँधेरी
कुछ और सर्द अंगार सही

कुछ और चाँद की ख्वाहिश मेरी
कुछ और तेरा ये प्यार सही

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on November 20, 2012 at 8:56pm — 3 Comments

जल दोहे

[1]   जल चरणों के श्लोक यह ,  जग हित में शुभ-लाभ !

       पी कर विष   प्रदूषण  का ,   हुआ   नीर   अमिताभ !!

[2]   पाट कर   सब ताल कुँए   ,   हम ने   की यह भूल !

       पानी  -  पानी    हो    गई     ,    निज  चरणों की धूल !!

[3]   कर न  पायें  दीपक  ज्यों   ,    तेल   बिना    उजियार !…

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Added by लतीफ़ ख़ान on November 20, 2012 at 4:57pm — No Comments

त्योहार के हादसे

त्योहार के हादसे

 

 

छठ पूजा के दिन आज,

हुई बड़ी दुर्घटना, कई,

आदमी मरे पटना में,

त्योहार को हुई,फिर ये घटना । 

 

भारत की यह नियमित घटना,

होती है हर साल, कभी यहाँ,

तो कभी वहाँ, कुचले जाते,

हैं लोग प्रार्थना करते-करते…

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Added by akhilesh mishra on November 20, 2012 at 10:57am — 6 Comments

meri bheegi palke(n)

तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /

जाने फिर बोल रहा कौन //
मिलते थे कहने को हम दोनों नित्य प्रति / 
लकिन संबंधों को शायद ही मिली गति /
तुम ही जब कर सकी कोई आरम्भ नहीं /
मेरे मन को लगा इति का अवलम्ब सही /
देहरी से औप्चारिक्तायों की बंधे रहे  , दोनों के आचरण दोनों के कुंठित मौन //
तुम भी हो चुप- चुप मैं भी हूँ  मौन , जाने फिर बोल रहा कौन //
परिचय के…
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Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments

वो ट्रेन वाली लड़की ..........

सभी से सादर निवेदन है कि यह मेरी प्रथम कहानी है कृपया अपने विचा रखें .....

कभी-कभी लोकल सवारी गाड़ी में चलते हुए भी ऐसा महसुस होता है कि जैसे उसकी रफ़्तार जिंदगी से तेज हो गयी हो तो वहीँ कभी-कभार किसी सुपरफास्ट ट्रेन में भी आदमी ऐसे झेल जाता है कि मानो मंजिल ही दोगुने रफ़्तार से भाग रही हो और हम कहीं पीछे छूटते जा रहे  ! जनवरी के जाड़े की वो रात आज भी मै भुल नहीं पाया हूँ जब वो पहली और अंतिम बार मुझसे मिली थी ! वाकया लगभग डेढ़ साल पहले का है ,जब २२ जनवरी की उस रात…

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Added by शिवानन्द द्विवेदी सहर on November 19, 2012 at 10:49pm — 5 Comments

ज़िन्दा हूँ

फूल ही सही मगर ख़ारों में ज़िन्दा हूँ
मय बनकर ही तलबदारों में ज़िंदा हूँ

मैं इश्क हूँ मुझे आशारों में न ढूंढ
मैं तेरी आँख के इशारों में ज़िन्दा हूँ

मुझे आसमाँ की आज़ादी मिली न कहीं
मैं तेरी याद के इज्तिरारों में ज़िन्दा हूँ

न दे गवाही मुझे इनकारों की तमाम
मैं तेरे खामोश इकरारों में ज़िंदा हूँ

ये माना कि किश्ती है जलजलों में अभी
मैं मगर उम्मीद के किनारों में ज़िन्दा हूँ

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on November 19, 2012 at 9:35pm — No Comments

जल ही जीवन है.(बैरवे छंद)

तीन भाग जल धरती,शेष जमीन,

प्रकृति  सींचे  वरना, नीर विहीन/

धरती जल को दुहता,मनुज प्रवीण,

जाने जल बिन होगा, जीवन  हीन/

प्रकृति  भक्षक बनते,  मानव दीन,

बरसें  मेघ   लगाओ, वृक्ष  नवीन/

नद जल सारा खींचा, कूप बनाय,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:08pm — 2 Comments

नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार

नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार 

-----------------------------------------------------

नाना नाना ई बतावा फिर कौनो  बात हो गई 
चेहरा काहे लटकौले नानी से मुलाक़ात हो गई 
चुप रहो नाती न बोलो पकड़ो   ई दस रुपिया
दोनों ओर आग लगावत नानी के तुम खुफिया 
------------------------------------------------------
नानी खफा बहुत हमसे ढूंढ रही वो बेला 
कौन बनाया लेखक हमको  इंटरनेट…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 19, 2012 at 5:18pm — 9 Comments

सिला

वोह दूर क्या हुए 

इतनी दूर हो गए 
मेरी मुहब्बत के शायद 
हर किस्से भूल गए 
किससे करें शिक्वा-ए-दिल          
किससे  करें गिला 
जिंदगी के आखरी लम्हात में 
हम तन्हा  हो गए
'दीपक' था जलता क्यूँ न 
जलकर लुत्फ़ ही आया 
लेकिन मुझको जलाकर वोह 
खामोश चले गए …
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2012 at 11:30am — 4 Comments

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