For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देखा है

क्रूर वक़्त को,

पैने पंजों से नोचते

कोमल फूलों की मासूमियत

और बिलखते बिलखते

फूलों का बनते जाना पत्थर,

 

देखा है

पत्थर को गुपचुप रोते

फिर कोमलता पाने को

फूल सा खिल जाने को

मुस्काने को, खिलखिलाने को,

 

देखा है

अटूट पत्थर का

फूल बन जाना

फिर कोमलता पाना

महकना, मुस्काना, इतराना,

 

देखा है

सब कुछ बदलते

आकाश से पाताल तक

फिर भी मैं वही हूँ सर्वदा....

न फूल, न पत्थर, न कारण

मात्र दृष्टा,

सब कुछ बदलते जाने का.

Views: 445

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 12, 2013 at 9:05am

आदरणीया प्राची जी:

 

आज आपकी यह उत्कृष्ट रचना पुन: पढ़ी,

लगा कि इसमें उपनिष्दों का सार पढ़ा।

 

इसे लिखने के लिए धन्यवाद!

 

विजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 12, 2013 at 2:48pm

आदरणीय सौरभ जी, रचना के कथ्य को अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2013 at 12:08am

वाह ! बहुत सुन्दर !!!

खेद है, यह रचना आज देख पाया ! .. . अति उच्च कथ्य का सार्थक प्रस्तुतिकरण हुआ है.

हार्दिक बधाई. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 11, 2013 at 11:59pm

इस अभिव्यक्ति को सराह कर प्रोत्साहित करने के लिए आ. विजय निकोर जी, प्रदीप कुशवाहा जी, शालिनी कौशिक जी, अशोक कुमार रक्ताले जी, चंद्रेश कुमार जी, और लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी, आप सबकी ह्रदय से आभारी हूँ, सादर.

Comment by vijay nikore on December 10, 2012 at 8:07pm

प्राची जी,

दार्शनिक्ता से भरपूर इस सुन्दर रचना के लिए बधाई।

विजय निकोर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 1, 2012 at 3:38pm

देखा है

सब कुछ बदलते

आकाश से पाताल तक

फिर भी मैं वही हूँ सर्वदा....

न फूल, न पत्थर, न कारण

मात्र दृष्टा,

सब कुछ बदलते जाने का.

सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई,

आदरणीय प्राची जी, सादर 

Comment by shalini kaushik on November 26, 2012 at 11:56pm

sundar bhavpoorn prastuti

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 26, 2012 at 9:15pm

आदरेया प्राची जी 

                     सादर, बहुत सुन्दर द्विभाव प्रस्तुत करती रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 7:40pm

बहुत उम्दा डा. प्राची सिंह जी, जितना कुछ इस कविता ने देखा है, वो सब कुछ देखा है जीवन में|

फूलों से पत्थर - पत्थर के आन्सू और फिर पत्थर से फूल| और जो ना बदला है वो है द्रष्टा, जो अकर्ता - निर्विकार है|

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 11:29am
सुन्दर भाव रचना, पत्थर दिल भी रोता है, समय आने पर हँसता है खिलखिलाता है 
कनु जाने जो पत्थर क्रूर लग रहा है, अहिल्या हो, क्रूर कहे या नियति से पत्थर बन,
फिर समय आने पर वास्तिवक रूप में आ खुशाल हो । बदलते देखते है पर हा तो वही 
आपने लिखा है बिलकुल सही हार्दिक बधाई डॉ प्राची सिंह जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service