For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

विचित्र किन्तु...: 'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम

विचित्र किन्तु ...:

'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !

 

इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है? 

 

इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 21, 2012 at 8:45am — 7 Comments

दिल की बात कहे दिल वाला .....

लिखा छन्द टेढ़ मेढ़,
कर दिया ऐड़ बेड़,
छंद अनुराग जो भी,
करावाये कम है |

किया है सुधार जब,
छन्द महारथियों ने,
लगा अब रचना में,
आया कुछ दम है |

छन्द का है भूत चढ़ा,
रात दिन रटा पढ़ा,
और अब लिखने को
उठाई कलम है |

दोहा रोला घनाक्षरी,
उल्लाला भी लिखूंगा मैं,
सीखूंगा मैं अपनों से,
काहे की शरम है ||


जय हो

Added by वीनस केसरी on October 21, 2012 at 12:00am — 4 Comments

उन से कह दो खतों में महक ना रखें

उन से कह दो खतों में महक ना रखें

मेरी चाहत पे इतना भी शक ना रखें



चाँद छुप जाएगा रात रुक जायेगी

अपनी आँखों में इतनी चमक ना रखें



जिक्र उसका चले, हाल पूछें मेरा

मेरे जख्मों पे ऐसे नमक ना रखें



मेरा बनना है उनको तो बन जायें वो

मेरे बन जायें तो मुझ पे हक ना रखें



दीद-ऐ-महबूब जितना मिला लूट लें

और उम्मीद फिर मौत तक ना रखें



चाँद ने खुद् निहारा जो शब् भर हमें

क्यों कदम फिर हमारे बहक ना रखें



मैं भी लो छोड़ दूं जिक्र शहनाई…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 20, 2012 at 10:19pm — 1 Comment


सदस्य कार्यकारिणी
लक्ष्मी घर में कैसे आये कुछ टिप्स (हास्य )

दीपावली  की रात से पहले  लक्ष्मी पूजा की तैयारी में लगे पडोसी  जीवन को देख कर नवीन जी से रहा नहीं गया और जा धमके उनके सामने नमस्कार करके बोले जीवन जी आप जो ये छोटे छोटे पैर लाल रंग से बना रहे हैं क्या सचमुच रात को देवी आती है क्या आपने उसको कभी आते हुए देखा ?जीवन बोले हाँ आती है इसी लिए तो बना रहा हूँ तुम ठहरे नास्तिक तुम कहाँ समझोगे | नवीन जी बोले जी नहीं भगवान् को तो मैं मानता हूँ पर इन सब आडम्बरों में विशवास नहीं रखता वैसे आज मुझे बता ही दो ये सब क्या फंडा है ये बात तो मैं…

Continue

Added by rajesh kumari on October 20, 2012 at 11:42am — 14 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ४१ (बहरे रमल मुसम्मन महजूफ़: "बात क्यूँ करते हो मुझसे इश्रतोआराम की")

बहरे रमल मुसम्मन महजूफ़

(वज़न- फायलातुन फायलातुन फायलातुन फाएलुन)

---------------------------------------------------------

मुलाहिजा फरमाएं:

 

बात क्यूँ करते हो मुझसे इश्रतोआराम की

हुस्नवालों की दलीलें हैं मिरे किस काम की

 

कब हुई तस्लीम मेरी इक ज़रा सी इल्तेजा

दास्तानें कब हुईं मंसूख तेरे नाम की

 

जाग जाओ सोने वालो अपने मीठे ख्वाब से   

घंटियाँ बजने लगी हैं शह्र में आलाम की

 

पीछे पीछे नामाबर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on October 19, 2012 at 11:51pm — 8 Comments

ग़ज़ल-- एक छोटी सी कोशिश

 देखते ही देखते दिन रात बदल जाते है

पल में लोग अपनी बात बदल जाते है



यूँ बदल गई आब-ओ-हवा मेरे शहर की

घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं



न कर गुरुर बन्दे मेयार-ए-ख़ुद पर

कौन जाने कब किसके हालत बदल जाते हैं



रह गई है मौहब्बत की इतनी ही हकीक़त

रोज आशिको के अब जज्बात बदल जाते हैं



होती है आरजू-ए-मुकतला यहाँ सभी को 

तकदीरे कभी तो कभी ख्वाहिशात बदल जाते है



क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का

जब…

Continue

Added by Sonam Saini on October 19, 2012 at 9:34am — 13 Comments

फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो|

कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने

मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने

जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो

फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो||



मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है 

गांधारी पश्चिम से आकर जन गण मन को ताड़ रही है

भरो गर्जना लाल मेरे तुम माँ का सब संकट हर डालो

फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:18am — 5 Comments

हमारे हौसले

हमारे हौसले अब भी उन्हें छू कर निकलते हैं 

उन्हें शक है मुहोब्बत में कई शोले पिघलते हैं ।।



कोई अनजान सा गम है जुदाई के पलों का भी 

ये कैसी आग है जिसमे बिना जल कर सुलगते हैं ।।



खफा होती हुयी जब भी दिखाई दी हमें चाहत 

खता कुछ भी नहीं रहती बिना कारण चहकते हैं ।।



सुना है आज कल उनकी गली में हुश्न तनहा है 

घडी भर दीद करने को भला क्यूँ कर हिचकते हैं…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:16am — 2 Comments

कजरी गीत: गौरा वंदना --संजीव 'सलिल'

कजरी गीत:

गौरा वंदना

संजीव 'सलिल'

*

गौरा! गौरा!! मनुआ मानत नाहीं, दरसन दै दो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! तुम बिन सूना है घर, मत तरसाओ रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!!  बिछ गये पलक पाँवड़े, चरण बढ़ाओ रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! पीढ़ा-आसन सज गए, आओ बिराजो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! पूजन-पाठ न जानूं, भगति-भाव दो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! कुल-सुहाग की बिपदा, पल में टारो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! धरती माँ की कैयाँ हरी-भरी हो रे गौरा!…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2012 at 11:00am — 1 Comment

नवरात्री की शुभकामनाएँ

दर्द को होंठों की मुस्कान बना देती है,
मौत को जीने का सामान बना देती है.
याद करता हूँ मैं जब भी "माँ" को दिल से,
हर मुसीबत को आसान बना देती है.


(नवरात्री की शुभकामनाएँ)

Added by लतीफ़ ख़ान on October 18, 2012 at 10:30am — 1 Comment

अब भी चाँद चमकता है

अहा!अब भी चाँद चमकता है
तुम अब भी प्यारी लगती हो.
यूँ अब भी प्यार भटकता है
तुम दुनिया सारी लगती हो !

वो कल के बीते ताने-बाने
तुम आज कहानी लगती हो
वो सुन्दर खाब के अफसाने
तुम जानी पहचानी लगती हो!

देखो,वो सरगम वो साज सभी
तुम मेरी निशानी लगती हो.
मुझे बीता कल सब याद अभी
तुम परियों की रानी लगती हो !! .

Added by Raj Tomar on October 17, 2012 at 11:00pm — No Comments

महंगाई

महंगाई 

महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है 

आम सी दाल को भी खास बनाया है

जो दाल रोटी खा प्रभु के गुण गाते थे 

प्रभु को भूल आज,वो दाल की पूजा कर जाते हैं 

फास्ट फ़ूड खाने वाला आज दाल भी शौक से खाता है 

सूट पहनकर इतराता हुआ खुद के रौब दिखाता है 

धरती की दाल को आसमान…

Continue

Added by Ranveer Pratap Singh on October 17, 2012 at 10:44pm — 4 Comments

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देखा है कई बार

अनीति के बढ़ते क़दमों को

शिखर तक जाते हुए

देखा है कई बार

दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए



किन्तु कभी नहीं सोचा

कि होकर शामिल उनमें

मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/



ना ही सोचा कि मैं छोडूं

धरा नीति की

और विराजूं उड़ते रथ में/

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देता नहीं भटकने पथ में/

हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं



देखा है कई बार

सत्य को युद्धरत/

क्षत विक्षत...आहत/

सांस तक लेने के…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments

ग़ज़ल

चारागर की ख़ता नहीं कोई.

दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.



आप आये न मौसमे-गुल में,

इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.



ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,

ऐश का हाशिया नहीं कोई.



देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,

सब भले हैं बुरा नहीं कोई.



सच का हामी है कौन पूछा तो,

वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.



है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,

मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.



अपने ही घर में हैं पराये हम,

बेग़रज़ राबता नहीं कोई.



इस…

Continue

Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments

मलाला को समर्पित एक रचना

कुहरीले जंगल में हंसती

हरी हवा सी चलती हूं

मुक्‍त  गगन से गिरी ओस हूं

तृण टुनगों पर पलती हूं

 

हू हू करता आंख दिखाता

रे तमस किसे भरमाता है

देख मेरा बस एक नाद ही

कैसे तुझे जलाता है

 

अभी जरा निष्‍पंद पड़ी हूं

कहां अभी तक हारी हूं

भूल न करना मरी पड़ी हूं

अबला,बाल,बेचारी हूं

 

अरे कुटिल यह चाप तुम्‍हारा

वृथा चढ़ा रह जाएगा

तेरा ही तम कहीं किसी दिन

तुझको भी डंस…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments

जनता का संयम

हमने चुना था सोंचकर, इनमे उनके वंश का ही खून है 

वे स्वर्ग से बहाते आंसू, लजाया इसने मेरा ही खून है |

 
हमने चुना था सुनकर, उनने किये थे जो पक्के वादे,
हमें क्या पता था मन में,उनके थे कुछ और ही  इरादे|…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 4:51pm — No Comments

यह मेरा दर्द है

यह मेरा दर्द है
 

यह मेरा दर्द है,आँखों से छलक आता है

यूँ ही पैमाना,बदनाम हुआ जाता है



लाख कह ले यह ज़माना,न जीना आया हमें

वक़्त अच्छा हो बुरा हो,गुज़र तो जाता है



सबको हँसता हुआ देख लूँ,मैं चला जाऊँगा

यूँ भी "दीपक" जलनें से कहाँ बच पाता है



मैं न अपनों को याद आऊँ,न गैरों को

प्यार उस हद तक मेरा मुझको,नज़र आता है…

Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 1:00pm — 3 Comments

गायत्री छंद 'सिर्फ एक प्रयोग' गायत्री मंत्र की तरह

================गायत्री छंद=====================



यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार

२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं

इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है

विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments

मेरे हमसफर

ओ मेरे  हमसफर ओ हमदम मेरे 
मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी 
जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी 
बह चली मै अब बहती हवाओं में 
उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे 
इस से पहले कि रुख  हवाओं का 
न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे  
कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये
पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै
जन्म जन्म के साथी बन के मेरे 
ले लो मुझे आगोश में तुम अपने 
ओ…
Continue

Added by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 11:57am — 7 Comments

रक्षक ही भक्षक

रक्षक ही भक्षक 
जांच अगर हो कायदे से 
कोई बच न पाए
भारत में बच्चे से बूढ़ा
घूसखोर  नज़र आए
बड़े बड़े घोटाले यहाँ पर
मामूली सा खेल है
बच्चे को जब तक दो न चॉकलेट
वह भी स्कूल न जाए
कब तक लड़ेंगे अन्ना हजारे
कब तक केजरी वाल 
हर शाख पे उल्लू बैठा…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 11:44am — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
6 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service