For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बूढ़ा बैल । ताटंक छन्द ।

बूढ़ा बैल । ताटंक।
तड़प रहा हूँ भूख प्यास से , बँधा खूँटे में कसाई ।
मालिक ने ही जब बेच दिया , अंजान कब दया आई ।
देखकर ही ताकतवर बदन , बेचा कीना जाता था ।
जो भी ले गया काम कराया , स्नेह से वो खिलाता था ।
दम ना रहा जब बदन में तब , कोई साथ नहीं देता ।
बूढ़ा कह कर मजाक उड़ाते , कुढ़ कर ही मैं सुन लेता ।
खान पान को कौन पूछता , पास कोई न आता है ।
दिन बीते कड़ी मेहनत में , रहा न कोई नाता है ।
थका बदन आँखें ना देखें , किसी को रहम न आये ।
भूल गये सब दुनिया वाले , कौन अब पूछने आये ।
देख मेरा बल काम कराये , भूले साथ साथ वाले ।
मेरा एक दिन अंत होगा , वर्मा देखें जग वाले ।
श्याम नारायण वर्मा

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 27, 2012 at 10:18pm

श्याम नारायण वर्मा, बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति है| आपको बधाई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2012 at 3:07pm

//ककुभ छंद ke bare men main kisi kitab men abhi tak nahin padha hon.//

आदरणीय, आप इस मंच पर हैं. ’चित्र से काव्य तक’ समूह में उपलब्ध पिछले आयोजनों के पन्ने लगातार पढ़ते जायँ, आदरणीय. आपको इस ककुभ छंद पर प्रविष्टियाँ ही नहीं और प्रतिक्रिया रचनाएँ भी मिल जायेंगी.

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on November 27, 2012 at 2:56pm
प्रणाम जी
ककुभ छंद ke bare men main kisi kitab men abhi tak nahin padha hon.
धन्यवाद ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2012 at 2:41pm

//मैं एक विद्वान की किताब में पढ़ा था कि आधुनिक युग में अंत में म गण का होना जरूरी नहीं है//

आदरणीय, ऐसा कहीं है तो आप अवश्य उद्धृत करें. हम सभी को जानने-समझने का अवसर मिलेगा.

दूसरे, यदि ऐसा वस्तुतः है तो फिर ताटंक छंद का वैशिष्ट्य कहाँ रहा ? फिर कुकभ छंद और ताटंक छंद में क्या अंतर रहा ?

ज्ञातव्य :  ककुभ छंद - कुल मात्रा 30, 16-14 की यति तथा पदांत २ गुरु से होता है. 

Comment by Shyam Narain Verma on November 27, 2012 at 2:22pm
प्रणाम जी

आपका तर्क सही है । परन्तु मैं एक विद्वान की किताब में पढ़ा था कि आधुनिक युग में अंत में म गण का होना जरूरी नहीं है । पहले हमने गलती से सार छन्द लिख दिया था उसे क्षमा करें।

धन्यवाद ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2012 at 1:47pm

ताटंक छंद मात्रिक छंद होता है जिसके एक पद की कुल मात्रा 30 होती है. तथा 16-14 पर यति मान्य है. अंत में तीन गुरु अनिवार्य हैं. इस हिसाब से आपकी रचना को परखने की कोशिश कर रहा हूँ, आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी.

तड़प रहा हूँ भूख प्यास से , बँधा खूँटे में कसाई

111 12 2 21 21 2, 12 22 2 122 = 30 

इस पंक्ति में नियमानुसार 16-14 की यति है किन्तु तीन गुरु से अंत वाले महत्त्वपूर्ण विन्दु की अनदेखी हो गयी है जिसके कारण तीस मात्राओं वाली पंक्ति का कोई छंद ताटंक होता है. वस्तुतः, कसाई शब्द यगण के वर्ण का है जिसका विन्यास ।ऽऽ होता है. 

मालिक ने ही जब बेच दिया , अंजान कब दया आई

211 2 2 11 21 12, 221 11 12 22 = 30   16-14  पर नियमानुसार यति हुई है और साथ ही, (द)या आई के होने से तीन गुरु (ऽऽऽ) का नियम भी संतुष्ट होता है. अतः यह शुद्ध पंक्ति है.

इसीतरह, अन्य पंक्तियों को देख कर स्वयं परख लें, आदरणीय.

एक बात - जहाँ तक मुझे याद है, आपने इस रचना को सार छंद पर आधारित कह कर पोस्ट किया था. 

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2012 at 9:23am
सुंदर भांव रचना के लिए बधाई स्वीकारे वर्माजी शिप्ल की द्रष्टि से हमें आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की 
बात पर गौर करना होगा 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2012 at 8:55am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, आपकी प्रस्तुति हेतु आपको धन्यवाद. बूढे बैल की व्यथा पर छंद प्रयास किया है.

सादर निवेदन है कि आपने अपनी इस रचना को जिस छंद में बांधा है (आपने नामकरण सार छंद किया है) उसकी विधात्मक जानकारी इस मंच के साथ साझा करें तो अति कृपा होगी. दूसरे, चरणों में मात्राओं का नियत होना आवश्यक होता है, इस के प्रति भी आपके विचारों से प्रस्तुत मंच अवगत होना चाहेगा.

सादर

Comment by shalini kaushik on November 26, 2012 at 11:05pm

बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति  आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service