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ना जाने कितने कसाब?

आखिरकार कसाब मारा गया! एक लम्बा चला आ रहा विरोध और इंतज़ार ख़त्म हुआ! इस मृत्यु से उन सभी शहीदों जिन्होंने कि देशरक्षा के लिए अपने प्राण निस्वार्थ अर्पण कर दिए के परिजनों को मानसिक शांति तो मिली होगी किन्तु उन्होंने जो खोया उसकी भरपाई नहीं हो सकती|
  कसाब को मारना सिर्फ एक कदम था निष्क्रियता से उबरने के लिए, हालांकि ये बहुत जरुरी भी था| मगर सवाल ये उठता है कि क्या कसाब को मार देना ही उन शहीदों के लिए श्रृद्धांजलि होगी? क्या कसाब ही अंतिम समस्या थी? शायद नहीं! कसाब उस समस्या का सौंवा हिस्सा भी नहीं हैं| हमारे देश के सामने जो आतंकवाद आधारित समस्याएं हैं वे कई तथ्यों का सम्मिश्रण हैं, जैसे कि हम अभी तक आतंकवाद में पाकिस्तानी शासन के समर्थन की पुष्टि कर पाने में असमर्थ रहे हैं|
   गिरफ्तार होने के बाद जब अधिकारियों ने कसाब से बात की तब कुछ ऐसे तथ्य मिले जो काफी उलझा देने वाले थे|
कसाब ने बताया कि "चाचा( लश्कर का सरगना) कहता था कि "वहां (भारत में) तबाही फैलाना ज़रूरी है क्यों कि वो(भारत वासी) दुनिया की दौड़ में आ गये हैं, हम(पाकिस्तानी) पिछड़ रहे हैं !" अगर ऐसा कह कर प्रेरणा दी जा रही है तो इससे इस बात की पुष्टि हो जाती है  कि सीमापार से जो आतंकवाद भारत आ रहा है वह धार्मिक न होकर राजनैतिक है| क्यों कि अगर यह धर्म के नाम पर हो रहा होता तो सिर्फ धर्म का प्रसार ही मूल भावना होती न कि वैश्विक स्थिति और आर्थिक स्तर की दौड़, साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखते कि हमले में सिर्फ दूसरे धर्म वाले ही नहीं मारे जायेंगे बल्कि मुसलमान भी होंगे| धार्मिक उन्माद का इस्तेमाल तो आतंकवाद के विज्ञापन और पाकिस्तानी शासन की ईर्ष्यालु मंशा को छिपाने के लिए किया जाता है| सीधे सीधे कहा जाए तो जो लोग आतंकवाद के स्रोत हैं उनकी समस्या भारत के विभिन्न धर्म न होकर भारत का विकसित होना है और इस तथ्य से जिसे समस्या है वह सिर्फ उस देश का शासक वर्ग हो सकता है|
  कसाब ने बताया कि उससे कहा जाता था कि जेहाद से परिवार की इज्ज़त बढती है, पैसा मिलता है, गरीबी दूर हो जाती है| साथ ही उसने ये भी बताया कि इस काम को गरीब लड़के ही करते हैं, पैसेवाला क्यों ऐसा काम करेगा और जब उसकी शिक्षा के बारे में पूछा गया तो उसने खुद को चौथी पास बताया| इसका सीधा अर्थ ये है कि ज्यादातर अशिक्षा और गरीबी के शिकार नौजवान ही आतंक की राह पकड़ते हैं| और उन्हें सिखाया जाता है कि "जब तक जियो मारते रहो"| जितना मारोगे उतने अमीर बन जाओगे, जन्नत पाओगे| जबकि सुशिक्षित व्यक्ति यह जान जाएगा कि हमला करके या किसी जगह हत्याएं करके भारत की तरक्की को न तो रोका जा सकता है और न ही पाकिस्तान की विकास दर बढ़ाई जा सकती है| शिवाजी टर्मिनल पर जिस बन्दूक से गोलियां निकल रहीं थी उसको पकड़ने वाले हाथ पाकिस्तान की अशिक्षा और गरीबी थे जबकि ट्रिगर दबाने वाली उंगली खुद पाकिस्तान की सरकार थी|  
    द वर्ल्ड बैंक के अनुसार पाकिस्तान विश्व के उन देशों में शुमार है जो कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करते हैं, वहां शिक्षित होने का अर्थ सिर्फ अखबार पढ़ लेना और लिख लेना ही है| सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शिक्षा के प्रति शासन उदासीन रवैया रखता है| आंकड़ों के अनुसार अधिकतर छात्र पांचवी के बाद पढाई छोड़ देते हैं| इसके कारण गरीबी हों या कुछ और मगर वहां का शासन इस समस्या के प्रति बिलकुल भी गंभीर नहीं है| हो सकता है कि इस समस्या को पाल कर वे अपने कई राजनैतिक समाधान कर लेते हों|
  ना सिर्फ शासन बल्कि वहां का मीडिया भी भारत के खिलाफ लोगों में ज़हर भरने से कभी बाज़ नहीं आता| हमले के कुछ दिनों बाद कसाब के लिए पाकिस्तान में ये खबर फैलाई गयी कि "मुंबई में आतंकवादियों को मार गिराने के बाद, भारतीय पुलिस ने एक मासूम लड़के को पाकिस्तानी होने के कारण गिरफ्तार कर लिया, जो कि पर्यटन करने भारत गया था, और अब उस पर हमले का इलज़ाम कुबूल करने के लिए दवाब डाला जा रहा है!" मीडिया और वहां की सरकार द्वारा फैलाए गए इस तरह के सुनियोजित बहकावों में आकर कई लड़के बदले की भावना से जेहाद का रास्ता अपना लेते हैं क्यों कि उनमें ये भरा जाता है कि उनकी बदहाली का ज़िम्मेदार सिर्फ भारत है|
   हमलों के लिए न सिर्फ पाकिस्तानी शासन बल्कि भारतीय शासन का लचर रवैया भी जिम्मेदार है, कुल ८-१० आतंकवादियों ने जिस तरह १६६ लोगों और कई जांबाज़ सैनिकों की हत्याएं कीं उसमें यहाँ की सरकार की बड़ी लापरवाही दिखाई देती है, इतने वर्षों के बाद एक आत्मघाती हमलावर को सज़ा देने के बाद अपनी पीठ थपथपाना अर्थहीन है| भारतीय शासन को समझना होगा कि जिसे उन्होंने फांसी दी वह सिर्फ एक अशिक्षित लड़का था जिस पर कि अपराध सिद्ध हुआ, जबकि १६६ लोगों की हत्या तो पाकिस्तान में बैठ कर किसी मास्टर माइंड ने की थी| हमें अमेरिका से सीखना चाहिए, वर्ल्ड ट्रेड टावर को गिराने वाले विमानों में बैठे आतंकियों के मर जाने से अमेरिकी संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने उसकी मूल वजह(ओसामा) को ढूंढा और मार कर ही दम लिया| हमारी सरकार को इसी तरह के निर्णय लेने होंगे और ठोस कार्यवाही करनी होगी| क्यों कि कसाब मुंबई हमलों का गुनाहगार था जिम्मेदार नही| जो जिम्मेदार थे वे अभी तक जिन्दा हैं और ऐसे कई कसाबों का निर्माण हर माह कर रहे हैं|

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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Comment by shalini kaushik on November 26, 2012 at 11:14pm

पुष्य  मित्रजी ऐसा  नहीं है की केवल गरीब और अनपढ़ ही ये कम करते हैं धर्म के पीछे उन्मत्तता ये काम अमीर व् पढ़े लिखों से भी करा रही है और इस केस को देखने वाले उज्जवल निकम जी की बात भी मत भूलिए की कसब धूर्त था . .सार्थक प्रस्तुति आभार 

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