Added by DEEPAK PANDEY on October 19, 2013 at 12:46pm — 12 Comments
छा रहा है गगन में कुछ कुछ उजाला
बढ़ रही है पूर्व दिशि की लालिमा
जगमगाते तारे भी फीके पड़े हैं
घट रही है यामिनी की कालिमा
चन्द्रमा निस्तेज होकर जा छुपा है
मंद पड़ती श्वेत किरणों को समेटे
चाहता है पश्चिमी दिव्यांगना के
पास जाकर गोद में कुछ काल लेटे
हाथ थामे दिग्वधू का आ रहे हैं
तिमिर के बैरी प्रभु श्री अंशुमाली
मंद वायु भी लगी है मुस्कुराने
छिप गयी है कही जाकर रात काली
हिमगिरी…
ContinueAdded by Praveen Verma 'ViswaS' on October 19, 2013 at 12:20pm — 13 Comments
बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१
.
चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२
.
भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !!
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
.
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 12:19pm — 38 Comments
अलग सबसे तबीयत है करें क्या
कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१
दुआ में मांगते हैं मौत मेरी
सितमगर की शरारत है करें क्या /२
न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब
मदारी को शिकायत है करें क्या /३
ये आदत छोड़िये जी शाइरी की
मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४
तमाशा देख लो उस नामवर का
लिबासों की इबादत है करें क्या /५
हमें दिल में सनम ने रख लिया है
न मरने की इजाजत है करें क्या /६
अरे अब आसमां मत बांट देना
ज़मीं ने की…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 12:00pm — 19 Comments
काँटे हैं किस के पास में किस पे गुलाब है।
जनता के पास आज भी सबका हिसाब है।
.
पढ़कर के जिस किताब को बच्चे बहक गये ,
बोलो र्इमान वालो वो कैसी किताब है।
.
लालो गुहर नही है मेरे पास में मगर ,
जो कुछ भी मेरे पास है वो लाजबाब है।
.
बैठे है करके बंद वो दरवाजे खिड़कियाँ ,
ये सोचकर कि अपना मुकददर खराब है।
.
ये सच है हाथ पाँव में अब जान ही नही ,
जिन्दा लहू में अब भी मेरे इन्कलाब है।
.
अंगार को बुझाइये पानी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 19, 2013 at 11:30am — 8 Comments
जवान होते ही हैं
शहीद होने के लिए
और नेता
वह तो शासक है
सोना उनका हक है
जवान जब गोली खा रहा होता है
नेता पार्टी कर रहे होते हैं
जवानों की चिता को
मुखाग्नि भी
राजनीति का अवसर देती है
उन्हें,
शहीदों की
माओं के चाक सीने पर भी
नमक छिड़कने से भी
बाज नही आते
विलाप, क्रंदन भी
अवसर हैं वोट की तिजारत के।
नेताओं
देश शर्मसार है तुम पर।
मीना पाठक
…
Added by Meena Pathak on October 19, 2013 at 8:00am — 29 Comments
तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे
जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे
हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on October 18, 2013 at 11:00pm — 29 Comments
घरों मे वो दादी औ नानी हैं कहाँ अब
बच्चों के सपनों में राजा-रानी हैं कहाँ अब
उम्र से ज़्यादा , क़द बड़े हो गये हैं उनके
कि बच्चों में बच्चों की निशानी हैं कहाँ अब
बुज़ुर्गों की याद भी आए , तो आए कैसे
घरों में कोई भी चीज़ें पुरानी हैं कहाँ अब
नहीं मिलता है , कृष्ण सा क़िरदार कोई
भला दिखती भी मीरा दीवानी हैं कहाँ अब
घर , छतें , घरोंदें हैं , पंछी भी हैं "अजय"
बर्तन में उनके दानें और पानी हैं कहाँ…
Added by ajay sharma on October 18, 2013 at 10:30pm — 15 Comments
सांझ ढली
कुछ टूटा ,
भर गयी रिक्तता.
सब मूंद दिया कसकर.
अन्दर बाहर अब है,
एक रस.
घुप्प अँधियारा.
दिवस का…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
अपने दिल से मेरा सिलसिला जोड़ दे ,
द्वार आखों का अपनी खुला छोड़ दे..
.
ऐसी पागल हवायों की औकात क्या
तू जो चाहे तो तूफाँ का रुख मोड़ दे…
.
राह में रोक लेना तो रुसवाई है
साथ चल या मेरा रास्ता छोड़ दे
.
साफ चाहत का जिसमे न चेहरा दिखे।
दिल ये कहता है वो आइना तोड़ दे ...
.
दुःख में आँखें न आ जाएँ तेरी कहीं
रात भर याद में जागना छोड़ दे…।
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Pankaj Mishra on October 18, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत…
Added by savita agarwal on October 18, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
हरिगीतिका छंद
हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका (५, १२, १९, २६ वीं मात्रा लघु, अंत लघु गुरु) x ४
ब्रह्माण्ड सदृश विराटतम निःसीम यह विस्तार है
हर कर्म जिसमें घट रहा संतृप्त समयाधार है
सापेक्षता के पार है चिर समय की अवधारणा
सद्चेतना से युक्त मन करता वृहद…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 18, 2013 at 9:30pm — 17 Comments
१.
जोड़ी जुगल निहार मन, प्रेम रस सराबोर|
राधा सुन्दर मानिनी, कान्हा नवल किशोर||
२.
हरे बाँस की बांसुरी, नव नीलोत्पल गात|
रक्त कली से अधर द्वय,दरसत मन न अघात…
ContinueAdded by shalini rastogi on October 18, 2013 at 7:30pm — 8 Comments
क्या कहूँ , क्या लिखूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 18, 2013 at 5:44pm — 22 Comments
करूं मै क्या? मेरी आवारगी बेचैन करती है
बनूँ गर रहनुमा तो, रहबरी बेचैन करती है//१
.
समंदर से सटा है घर, मगर लब ख़ुश्क है मेरा
तेरी जो याद आये, तिश्नगी बेचैन करती है//२
.
के अच्छी मौत है, इक बार ही जमकर सताती है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है//३
.
मुहब्बत है मुझे भी, चाँदनी की नूर से लेकिन
निगाहे-हुस्न तेरी, रौशनी बेचैन करती…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
Added by Poonam Shukla on October 18, 2013 at 9:37am — 8 Comments
बह्र: 221 2121 1221 212
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बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर
शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर
मुड़-मुड़ के जाते वक्त मुझे देख क्यों रही
जब प्यार ही नहीं तो चली जाओ छोड़ कर
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर
नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’…
Added by शकील समर on October 18, 2013 at 9:00am — 20 Comments
"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.
"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.
"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..
…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on October 18, 2013 at 12:30am — 25 Comments
बड़े जतन से संजोई किताबें
हार्ड बाउंड किताबें
पेपरबैक किताबें
डिमाई और क्राउन साइज़ किताबे
मोटी किताबें, पतली किताबें
क्रम से रखी नामी पत्रिकाओं के अंक
घर में उपेक्षित हो रही हैं अब...
इन किताबों को कोई पलटना नही चाहता
खोजता हूँ कसबे में पुस्तकालय की संभावनाएं
समाज के कर्णधारों को बताता हूँ
स्वस्थ समाज के निर्माण में
पुस्तकालय की भूमिका के बारे में...
कि किताबें इंसान को अलग करती हैं हैवान से
कि मेरे पास रखी इन…
Added by anwar suhail on October 17, 2013 at 9:30pm — 11 Comments
यह रचना मात्र हास्य के लिए लिखी गई है। इसका किसी भी व्यक्ति विशेष या जाति विशेष से कोई सरोकार नहीं है। कृपया इसे अन्यथा न लेकर मात्र एक हास्य के रूप में स्वीकार कर अपने आशीर्वाद से अनुग्रहित करें। सादर.....
मैडम
चौबे जी का मामला, लगता डाँवाडोल।
सिर से तो फुटबॉल है, और पेट है ढोल।।…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 8:30pm — 24 Comments
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