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ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-बात जो तुम से निभाई न गई

२१२२, ११२२, २२/ ११२   

.

बात जो तुम से निभाई न गई,

बस वही हम से भुलाई न गई.

....

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,  

हम से किस्मत भी बनाई न गई.

....

थी दरो दिल पे छपी इक तस्वीर,

जल गया जिस्म, मिटाई न गई.

....

बस मेरे हक़ में बयाँ देना था, 

उन से आवाज़ उठाई न गई.

....

ख्व़ाब था दिल से मिला लें हम दिल,

आँख से आँख मिलाई न गई.  

....

हम गले मिलते भला…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 21, 2013 at 7:30am — 20 Comments

ग़ज़ल - देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर

ग़ज़ल

 

देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर

ये महा हड़ताल शासन को झुकायेगी ज़रूर

 

देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो

रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर

 

हौसला हालात से लड़ने का होना चाहिए

आयेंगे तूफ़ां तो कश्ती डगमगायेगी ज़रूर

 

अब बग़ावत पर उतर आओ सुनो पूरी तरह

वर्ना ये सत्ता तुम्हें  भी नोंच खायेगी ज़रूर

 

ये हमारी सारी माँगें मान तो ली जायेंगी

हाँ मगर सरकार हमको…

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Added by अजीत शर्मा 'आकाश' on November 21, 2013 at 6:30am — 11 Comments

क्यों, जीवन पर्यन्त मरीचिकायें आखेट करती है जीवन का ???

रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण तथा ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम मे प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है, लेखक से अनुरोध है कि भविष्य में पूर्व प्रकाशित रचनाएँ ओ बी ओ पर पोस्ट न करें | (08.12.2013 / 22:35)

एडमिन
2013120807

Added by dr lalit mohan pant on November 21, 2013 at 12:00am — 10 Comments

दोहा- 9 (प्रेम पियूष)

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !

अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !

वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !

ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !

यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!

विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !

विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह…

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Added by ram shiromani pathak on November 20, 2013 at 11:30pm — 31 Comments

झूठ जीता सत्य हारा

झूठ जीता सत्य हारा

राजनीति की अग्नि में

जले देश सारा

 

रिश्ते नाते स्वार्थ-सिद्धि की धुरी में  

समय मजदूरों का गुजरे नौकरी में

श्रम किया जी तोड़

किन्तु फल है खारा

 

मन लगा के पर हुआ जाता गगन सा

लक्ष्य के आगे हैं किन्तु तम गहन सा

सिन्धु की गहराई

जाने बस किनारा

 

घात की यह वेदना क्यूँ माँ सहे अब

ज्ञान की नदिया भी क्यूँ उल्टी बहे अब

मिट गयी अब नेह की

वो मूल धारा…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 10:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल : क्यूँ जाति की न अब भी दीवार टूटती है

बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२

 

इक दिन हर इक पुरानी दीवार टूटती है

क्यूँ जाति की न अब भी दीवार टूटती है

 

इसकी जड़ों में डालो कुछ आँसुओं का पानी

धक्कों से कब दिलों की दीवार टूटती है

 

हैं लोकतंत्र के अब मजबूत चारों खंभे

हिलती है जब भी धरती दीवार टूटती है

 

हथियार ले के आओ, औजार ले के आओ

कब प्रार्थना से कोई दीवार टूटती है

 

रिश्ते बबूल बनके चुभते हैं जिंदगी भर

शर्मोहया की जब भी दीवार टूटती…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 20, 2013 at 10:28pm — 18 Comments

काबिल न था

हाले दिल जो छुपाने के काबिल न था ।

क्या कहूं मै सुनाने के काबिल न था ।

इस ज़माने ने मुझको नकारा नहीं

मै तो खुद ही ज़माने के काबिल न था ।

इस लिए वो मुझे आज़माते रहे ,

मै उन्हें आज़माने के काबिल न था ।

रंग तनहाइयों में ही भरने लगा ,

वो जो महफ़िल सजाने के काबिल न था ।  

बोझ रस्मों रिवाज़ों के कुछ भी न थे ,

पर उन्हे मै उठाने के काबिल न था ।

सूख कर दरिया वो राह में खो गया ,

जो सागर को पाने के…

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Added by Neeraj Nishchal on November 20, 2013 at 7:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल

२ १  २    २ १    २  २ १ २ २

साथ उन से अब  कहाँ  से  बात होगी ׀

दिन को दुनिया,और खुद …

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Added by मोहन बेगोवाल on November 20, 2013 at 7:00pm — 5 Comments

हँसते रहे रोते रहे |

गूंजती थी जब खमोशी, हादसे होते रहे |

रात जागी थी जहां पर दिन वहीँ सोते रहे ||

 

अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर

अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||

 

कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,

कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||

 

भावना विचलित हुई जब चीर नैनो से हटा,

चार अश्रु गिर धरा पर माटी में खोते रहे ||

 

पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,

हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 20, 2013 at 7:00pm — 25 Comments

भोर

 

दिव्य अलोकिक सी

उतर रही

क्षितज से

नीचे की ओर

त्रण से छीन लेती है

ओस का प्याला

और वह

अवाक

मूक मुँह बाए

देखता है

उस देवी को जो

मद-मस्त हो जाती है

कलि कलि मुस्काती है  

पुष्प खिल उठते हैं

बागों के

पोखरों के

ह्रदय के   

उसके दर्शन पा

 

भर लेती है वो

अपनी बाहों में

अलसाए से

विहंगों को

प्रकृति के कण कण को  

और देती है…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 4:32pm — 12 Comments

सचिन [दोहे]

अपनी क्रिकेट टीम के क्या कहने क्या ठाट

सचिन विरासत दे गए रोहित शिखर विराट /



सचिन आम इन्सान से, बने आज भगवान

तुम हो भारत देश की, आन बान औ' शान /

बोल खेल को अलविदा,चौबीस साल बाद

पाए आशीर्वाद हैं , सदा रहो आबाद /



पाकर भारत रत्न को, तूने पाया मान

आज सलाम तुझे करें,क्रिकेटर तू महान /



विश्वभर के क्रिकेट का, सचिन है धूमकेतु

पीढ़ियों को जोड़ सचिन बना मजबूत सेतु /



एक दिवसीय मैच में ,दोहरा शतक…

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Added by Sarita Bhatia on November 20, 2013 at 2:00pm — 24 Comments

1 अरब का गौरव है भारत रत्‍न

भारत रत्‍न केवल एक पुरस्‍कार ही नहीं है वह भारत का सम्‍मान है और 1 अरब भारतीयों का मान है,भारत रत्‍न। 1954 से प्रारम्‍भ हुए भारत रत्‍न के बारे में साफ लिखा है कि भारत रत्‍न, कला, विज्ञान, साहित्‍य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट कार्य करने वाले को प्रदान किया जाता है।  भारत रत्‍न जिसको भी मिला वह कम या अधिक सभी हकदार थे। मगर सचिन रमेश…

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Added by Akhand Gahmari on November 20, 2013 at 1:30pm — 6 Comments

सुनो आखेटक !!

आखेटक !!

क्या तुम्हें आभास है ?

कि तुम जिजीविषा मे

किसी का आखेट कर

जीवन यापन की मृगया मे

भटकते हुये मदहोश हो !

आखेटक !

क्या तुम्हें आभास है ?

आखेटक को संजीवनी नहीं मिलती

मन की तृष्णा की खातिर

अनन्य मार्गदर्शी का भी

विसस्मरण कर दिया है

सृजनमाला को विस्फारित नेत्रों से

देखते हुए मदमस्त हो !

आखेटक !!

क्या भूल गए हो ?

आखेट करने को आया तीर

एक दिन तुम्हें भी बेध जाएगा

तब…

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Added by annapurna bajpai on November 20, 2013 at 12:00pm — 8 Comments

मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए

ज्ञान का चहुँ ओर यों प्रकाश होना चाहिए

मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए

 

बढ़ रही तकनीक क्रांति ला रहे उद्योग अब

तब तो मेरे गाँव का विकाश होना चाहिए

 

देखता है स्वप्न सोते जागते दिन रात मन

बाँधने मनगति को तप का पाश होना चाहिए  

 

जीतने का हर समय प्रयास करना है उचित

हार कर हमको नहीं निराश होना चाहिए

 

घर के भीतर “दीप” जलना सिद्ध होता है सही

आपका भगवान् से निकाश होना चाहिए

 

निकाश -…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 8:35pm — 13 Comments

!!! पर दीवाना धीर साहस डॉंटता !!!

!!! पर दीवाना धीर साहस  डॉंटता !!!--संशोधित

बह्र- 2122 2122 212

ताड़ना के शब्द निश-दिन बॉंचता।

प्यार है आसां मगर क्यों?  छॉंजता।।

हाथ से पतवार मांझी छोड़ कर,

जाल कल्मष का बिछाता हॉंपता।।

मीन का व्यापार करता - बाद में,

लाख जन्मों तक भटकता कॉंपता।

जाति जालिम जान तक भी छीनती,

धर्म की छतरी शिखा पर तानता।

सिर चढ़ाते हैं बड़े ही प्यार से,

बागबां ही बाग को फिर  छॉंटता।

सोचता हूं आज…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 19, 2013 at 8:30pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शायद प्रेम वही कहलाये.....(अरुण कुमार निगम)

पूर्ण शून्य है,शून्य ब्रह्म है

एक अंश सबको हर्षाये

आधा और अधूरा होवे,

शायद प्रेम वही कहलाये

 

मिट जाये तन का आकर्षण

मन चाहे बस त्याग-समर्पण

बंद लोचनों से दर्शन हो

उर में तीनों लोक समाये

 

उधर पुष्प चुनती प्रिय किंचित

ह्रदय-श्वास इस ओर है सुरभित

अनजानी लिपियों को बाँचे

शब्दहीन गीतों को गाये

 

पूर्ण प्रेम कब किसने साधा

राधा-कृष्ण प्रेम भी आधा

इसीलिये ढाई आखर के

ढाई ही…

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Added by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:00pm — 20 Comments

जान जाओगे ...

कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं 

किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं 

कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे 

कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं 

उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो 

मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ... 

तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को  

तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं .... 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Amod Kumar Srivastava on November 19, 2013 at 7:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- रहा देर तक भटकता

२२१ २/१२२ /२२१ २/१२२

.

मेरा जह्न बुन रहा है, हर रब्त रब्त जाले,

पढता ग़ज़ल मै कैसे, लगे हर्फ़ मुझ को काले.

...

मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,

के ये जिंदगी भी कर दी किसी और के हवाले. 

...

मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,

मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले.  

...

अगर आ सके, अभी आ, तुझे वास्ता ख़ुदा का,

मेरा दम निकल रहा है, मुझे गोद में समा ले.

...

रहा देर तक भटकता किसी छाँव के लिए वो,…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on November 19, 2013 at 3:25pm — 24 Comments

तुम मेरे आधार (दोहे) -लक्ष्मण लडीवाला

जन्मदिन पर सबसे विगत में हुई भूलों के लिए क्षमा मांगते हुए "दोहे पुष्प" समर्पित है

अडसठ बसंत में मुझे,मिला सभी का प्यार,

गुरुवर अरु माँ-बाप का, वरदहस्त आधार |

 

सद्गुरु को मै दे सकूँ, ऐसी क्या सौगात, 

चरण पखारूँ अश्क से,इतनी ही औकात |

 

समर्पण निःशेष रहे, तुम मेरे आधार,

तुमसे तुमको मांग लू,करे अगर स्वीकार | 

 

जन्म दिवस पर दे रही,माँ मुझको आशीष 

सद्कर्मी पथ पर चलूँ, भला करे जगदीश | 

 

घर पर सब…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2013 at 10:30am — 39 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी--(गीत )

गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

मेरी  चिरैया कितना उड़ती

पूछे जब उन आँखों से 

पलक ना झपके उत्तर ढूंढें  

तब तू जाना टाल सखी…

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Added by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:30am — 47 Comments

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