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All Blog Posts (19,127)

सुनो आखेटक !!

आखेटक !!

क्या तुम्हें आभास है ?

कि तुम जिजीविषा मे

किसी का आखेट कर

जीवन यापन की मृगया मे

भटकते हुये मदहोश हो !

आखेटक !

क्या तुम्हें आभास है ?

आखेटक को संजीवनी नहीं मिलती

मन की तृष्णा की खातिर

अनन्य मार्गदर्शी का भी

विसस्मरण कर दिया है

सृजनमाला को विस्फारित नेत्रों से

देखते हुए मदमस्त हो !

आखेटक !!

क्या भूल गए हो ?

आखेट करने को आया तीर

एक दिन तुम्हें भी बेध जाएगा

तब…

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Added by annapurna bajpai on November 20, 2013 at 12:00pm — 8 Comments

मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए

ज्ञान का चहुँ ओर यों प्रकाश होना चाहिए

मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए

 

बढ़ रही तकनीक क्रांति ला रहे उद्योग अब

तब तो मेरे गाँव का विकाश होना चाहिए

 

देखता है स्वप्न सोते जागते दिन रात मन

बाँधने मनगति को तप का पाश होना चाहिए  

 

जीतने का हर समय प्रयास करना है उचित

हार कर हमको नहीं निराश होना चाहिए

 

घर के भीतर “दीप” जलना सिद्ध होता है सही

आपका भगवान् से निकाश होना चाहिए

 

निकाश -…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 8:35pm — 13 Comments

!!! पर दीवाना धीर साहस डॉंटता !!!

!!! पर दीवाना धीर साहस  डॉंटता !!!--संशोधित

बह्र- 2122 2122 212

ताड़ना के शब्द निश-दिन बॉंचता।

प्यार है आसां मगर क्यों?  छॉंजता।।

हाथ से पतवार मांझी छोड़ कर,

जाल कल्मष का बिछाता हॉंपता।।

मीन का व्यापार करता - बाद में,

लाख जन्मों तक भटकता कॉंपता।

जाति जालिम जान तक भी छीनती,

धर्म की छतरी शिखा पर तानता।

सिर चढ़ाते हैं बड़े ही प्यार से,

बागबां ही बाग को फिर  छॉंटता।

सोचता हूं आज…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 19, 2013 at 8:30pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शायद प्रेम वही कहलाये.....(अरुण कुमार निगम)

पूर्ण शून्य है,शून्य ब्रह्म है

एक अंश सबको हर्षाये

आधा और अधूरा होवे,

शायद प्रेम वही कहलाये

 

मिट जाये तन का आकर्षण

मन चाहे बस त्याग-समर्पण

बंद लोचनों से दर्शन हो

उर में तीनों लोक समाये

 

उधर पुष्प चुनती प्रिय किंचित

ह्रदय-श्वास इस ओर है सुरभित

अनजानी लिपियों को बाँचे

शब्दहीन गीतों को गाये

 

पूर्ण प्रेम कब किसने साधा

राधा-कृष्ण प्रेम भी आधा

इसीलिये ढाई आखर के

ढाई ही…

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Added by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:00pm — 20 Comments

जान जाओगे ...

कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं 

किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं 

कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे 

कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं 

उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो 

मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ... 

तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को  

तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं .... 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Amod Kumar Srivastava on November 19, 2013 at 7:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- रहा देर तक भटकता

२२१ २/१२२ /२२१ २/१२२

.

मेरा जह्न बुन रहा है, हर रब्त रब्त जाले,

पढता ग़ज़ल मै कैसे, लगे हर्फ़ मुझ को काले.

...

मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,

के ये जिंदगी भी कर दी किसी और के हवाले. 

...

मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,

मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले.  

...

अगर आ सके, अभी आ, तुझे वास्ता ख़ुदा का,

मेरा दम निकल रहा है, मुझे गोद में समा ले.

...

रहा देर तक भटकता किसी छाँव के लिए वो,…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 19, 2013 at 3:25pm — 24 Comments

तुम मेरे आधार (दोहे) -लक्ष्मण लडीवाला

जन्मदिन पर सबसे विगत में हुई भूलों के लिए क्षमा मांगते हुए "दोहे पुष्प" समर्पित है

अडसठ बसंत में मुझे,मिला सभी का प्यार,

गुरुवर अरु माँ-बाप का, वरदहस्त आधार |

 

सद्गुरु को मै दे सकूँ, ऐसी क्या सौगात, 

चरण पखारूँ अश्क से,इतनी ही औकात |

 

समर्पण निःशेष रहे, तुम मेरे आधार,

तुमसे तुमको मांग लू,करे अगर स्वीकार | 

 

जन्म दिवस पर दे रही,माँ मुझको आशीष 

सद्कर्मी पथ पर चलूँ, भला करे जगदीश | 

 

घर पर सब…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2013 at 10:30am — 39 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी--(गीत )

गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

मेरी  चिरैया कितना उड़ती

पूछे जब उन आँखों से 

पलक ना झपके उत्तर ढूंढें  

तब तू जाना टाल सखी…

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Added by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:30am — 47 Comments

सैलाब ..... विजय निकोर

सैलाब

 

अश्कों के बहते सैलाब से जूझते

जब-जब उस आख़री खत को पढ़ा

बेचैन दुखती आँख से मेरी , हर बार

काँपता आँसू वह तुम्हारा था टपका ...

 

कहती थी, खुदा से बात की है तुमने

सुख-दुख हमेशा साझा रहेगा हमारा

अच्छा था फ़ैसला यह तुम्हारे खुदा का

खुश हूँ, तुम्हारा दुख तो अब मेरा रहेगा।

 

कितनी बातें थीं बाकी अभी तो करने को

सिर्फ़ मौसम पर बातें करने के अलावा

दुहरा दिया क्यूँ यादों ने वह किस्सा…

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Added by vijay nikore on November 19, 2013 at 7:00am — 26 Comments

झाड़

झाड़

खामोश और बेकार

न पौधा न पेड़

न छाया न आराम न हवा

सिवाय जंगली छोटे कसैले- खटमिट्ठे फल

जो भूख नही मिटाते इंसान की

और पशु की भूख

वह कभी मिटती नहीं

झाड़

एक आस जरूर देता है

काँटे सी चुभती आस

किसी के पुकारने की

उलझा है दुपट्टा काँटे मे रात -दिन

उफ ये रात

सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा 

घूरता हुआ दिन

भभकता हुआ सूरज

धकेलता है दिन अकेला

कोई तो रास्ता हो

तर्क-…

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Added by वेदिका on November 19, 2013 at 12:25am — 32 Comments

यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं

फ़ुर्कत की आग दिल में लिए जल रहा हूँ मैं।

यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं॥

 

आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,

इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥

 

संजीदा कब हुआ है मुहब्बत में तू मेरी,

हरदम तेरी नज़र में तो पागल रहा हूँ मैं॥

 

तू तो भुला के मुझको बहुत दूर हो गया,

तन्हाइयों के बीच मगर पल रहा हूँ मैं॥

 

रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,

क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 18, 2013 at 11:30pm — 12 Comments

कुण्डलियां

1. लच्छो

लच्छो तेरा प्यार अब, रग दौड़े बन खून ।

हृदय की तू ही कंपन, तुझ बीन सब शून ।।

तुझ बीन सब शून, प्यार जीवन संवारे ।

तू प्यार की मूरत, प्रेम का मै  मतवारे ।।

तन तेरा चितचोर, मन की तुम तो सच्चो ।

तू जीवन संगनी, मेरी दुलारी लच्छो ।



2.   नेता कहे

सारे नेता कह रहे,  अब ना होंगे दीन।

मिट जायेंगे दीनता, हम से रहो न खिन्न ।।

हम से रहो न खिन्न, कुर्सी हमको दिलाओ ।

मुफ्त में सब देंगे, कटोरा तुम ले आओ ।।

करना…

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Added by रमेश कुमार चौहान on November 18, 2013 at 10:30pm — 7 Comments

भारत रत्‍न, अखंड गहमरी

लाल लहू से अपने जिसने,देश की धरती कर दिया

नित्‍य नई खोजों में,जीवन के सुख छोड दिया

वेा भारत का  वीर सपूत,गुमनामी में खो गया

देश को दे कर नये आयाम वेा बेनाम हो गया

शिकार राजनीति का, भारत रत्‍न हो गया।

 

ध्‍यानचंद जैसा जादूगर, आज बेनाम हो गया

विदेशी धरती पर जो हुआ विजेता, कपिल गुम हो

खेलों के  कितने मसीहा का दीपक अब बुझ गया

रत्‍नो के रत्‍न  कितने,वो गुमनामी में खो गया

शिकार राजनीति का भारत रत्‍न होगया।

 

आजादी…

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Added by Akhand Gahmari on November 18, 2013 at 9:00pm — 7 Comments

छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए ---ग़ज़ल

छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए 

जी ना सकेंगे अब हम किसी के लिए

तेरा मिलना बिछड़ना तो एक ख्वाब था 

हम तो तरसते रहे तेरी हंसी के लिए

तेरी जुदाई से बढ़कर कोई गम नहीं 

जख्म काफी है ये ही मेरी जिंदगी के लिए

जिसे खुदा माना उसी ने ना समझा अपना 

अब कोई खुदा नहीं यहाँ बंदगी के लिए

बहुतो को क़त्ल होते देखा उसके हाथों तो जाना 

बहुत नाम कमाया है उसने अपनी दरंदगी के लिए

फिर आज एक हसीं को…

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Added by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:00pm — 10 Comments

एक सच

एक शाम खड़ा था अपने घर के बाहर तभी एक गाड़ी मेरे घर के करीब आ रुकी, मेरे पडोसी कि गाड़ी थी ,अभी कल ही उनके घर में उनकी एक घनिष्ठ रिश्तेदार जो उनके यहाँ रहकर ही अपना इलाज करा रही थीं उनका निधन हो गया था जिसकी सूचना मुझे भी मिली थी , खैर कार का दरवाज़ा खुला और वो लोग बाहर निकले अपने हालचाल को व्यवस्थित किये हुए और मुझे देख कर हलकी सी मुस्कान में मुस्कराये मैंने पूछा ," कहीं बाहर गए थे आप लोग ? "

उन्हों ने कहा ," तनाव बहुत ज्यादा हो गया था तो सोचा चलो फ़िल्म देख कर आते हैं ।…

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Added by Neeraj Nishchal on November 18, 2013 at 4:30pm — 8 Comments

हाइकु

पार गगन  

पंक्षी सा उड़ जाऊं 
पंख पसार ...(१)

मीठी वानी 
कुटिल सयानी सी 
मन की काली...(२)

है मतवाली
फिरती डाली डाली 
कोयल ये काली ...(३)

------अलका गुप्ता -----

नोट - यह मेरी स्व रचित मौलिक रचना है 

Added by Alka Gupta on November 18, 2013 at 3:30pm — 11 Comments

जन्म दिन की शुभ कामनाएं

आता रहे

जीवन में यह

 दिन बार बार

स्वप्न करे साकार 

महका हो हर आज 

आदरणीय योगराज  

आपके विकास में

भव्यता विलास में

बूँद  बने  सागर

सबके  प्रिय प्रभाकर

मैं और क्या कहूं ?

भावना  में क्या बहूँ ?

खुशिया हज़ार हो

शांति भी अपार  हो 

मै निहारता रहूँ

या पुकारता रहूँ 

स्वामी जो जगत के

 प्रभु जो प्रणत के

उनकी जय जय करू

 और यह विनय करू

आता रहे जीवन में

 यह…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:16pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

1222    1222      1222     1222   

धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम

***********************************

तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम

तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम

 

बहुत ठोकर मिली…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 1:30pm — 42 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-किसी के दिल से

1212 1122 1212 22  

...

किसी के दिल से, निगाहों से जो उतर जाए,

भला वो शख्स अगर जाए तो किधर जाए.

...

बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,  

कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.

...

सुलग रहे है जुदाई की आग में हम तुम,

इस आरज़ू में जले है, ज़रा निखर जाए.

...

पता नहीं हैं हुई क्या हमारी मंज़िल अब,

निकल पड़े हैं जिधर लेके रहगुज़र जाए. 

...

सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से,

कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 18, 2013 at 8:38am — 17 Comments

ग़ज़ल : क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

---------

याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं

क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

 

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे

और हम हैं घड़ी न होते हैं

 

प्रेम के वो न टूटते धागे

जिनके रेशे महीन होते हैं

 

वन में उगने से, वन में रहने से

पेड़ खुद जंगली न होते हैं

 

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ

रात सपने हसीन होते हैं

 

खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे

यूँ नयन शर्बती न होते…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2013 at 10:52pm — 34 Comments

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