जो रख हाथ तू माथे पे मेरे
मैं रोना भूल जाऊँगा
जो दे दे हाथ तू हाथों में मेरे
मैं उठ कर खिल खिलाऊँगा
ना जाने दे मुझे उस पर तक
ना फिर मैं लौट पाऊँगा
ये क्या ज़िद है मेरी बच्चों के तरह
कि मैं फिर से लड़खड़ाऊँगा
तू झिड़क दे हाथ मेरा
मैं फिर अंगुली बढ़ाऊँगा
मैं बैठा याद करने अंगुलियों पर
मैं किसको भूल जाऊँगा
रही है मेरी हमसफ़र मेरी ये ज़िंदगी
मैं कैसे भूल जाऊँगा
अप्रकाशित अमुद्रित
अजय कुमार…
Added by ajay sharma on November 13, 2013 at 9:30pm — 12 Comments
समंदर किनारे रेत पर
चलते चलते यूं ही
अचानक मन किया
चलो बनाए
सपनों का सुंदर एक घरौंदा
वहीं रेत पर बैठ
समेट कर कुछ रेत
कोमल अहसास के साथ
बनते बिगड़ते राज के साथ
बनाया था प्यारा सा सुंदर
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर
बुने हजारों सपनो के
ताने बाने जो
उसी रेत की मानिंद
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को बेताब
प्यारा घरौंदा ..............
अचानक उठी…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 13, 2013 at 8:00pm — 23 Comments
बताया जा रहा हमें
समझाया जा रहा हमें
कि हम हैं कितने महत्वपूर्ण
लोकतंत्र के इस महा-पर्व में
कितनी महती भूमिका है हमारी
ई वी एम के पटल पर
हमारी एक ऊँगली के
ज़रा से दबाव से
बदल सकती है उनकी किस्मत
कि हमें ही लिखनी है
किस्मत उनकी
इसका मतलब
हम भगवान् हो…
ContinueAdded by anwar suhail on November 13, 2013 at 8:00pm — 10 Comments
!!! मनमोहन रूप सॅंवार रहे !!!
दुर्मिल सवैया- आठ सगण
मनमोहन रूप सॅंवार रहे, छवि देख रहे जमुना जल में।
सब ग्वाल कमाल धमाल करें, झट कूद पड़े जमुना जल में।।
अधरों पर ज्ञान भरी मुरली, रस धार बहे जमुना जल में।
गउ-ग्वालिन डूब गयीं रस में, तन तैर रहे जमुना जल में।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 13, 2013 at 6:00pm — 23 Comments
बात एक रात की,
मैं था सोया
मीठे सपनो में खोया
तभी सपनो में आयी
एक सुन्दर नारी
दमकता चेहरा पर उदास
उज्जवल वस्त्र पर गंदे
कीचड में सने
मैं इर कर कॉंप…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 13, 2013 at 4:10pm — 3 Comments
Added by Akhand Gahmari on November 13, 2013 at 2:29pm — 7 Comments
Added by Poonam Shukla on November 13, 2013 at 10:02am — 12 Comments
बह्र: 2122/2122/212
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दीप मेरा दुनिया को है खल रहा
जब से ये बादे मुखालिफ जल रहा
फिर वही बेचैनियां और मन उदास
ख्वाब किसका दिल में फिर से पल रहा
चांद को अब सौंप कर सब रोशनी…
Added by शकील समर on November 12, 2013 at 11:07pm — 17 Comments
उठेगी जब तेरी अर्थी, ये नज्ज़ारा नहीं होगा,
चिता को आग देगा, क्या, तेरा प्यारा नहीं होगा?
.
हमारे आंसुओं को तुम जगह लब पर ज़रा दे दो.
यकीं जानों कि इनका ज़ायका खारा नहीं होगा.
.
नज़र मुझ से मिलाकर अब ज़रा वो बेवफ़ा देखे,
फिर उसके पास मरने के सिवा चारा नहीं होगा.
.
बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,
जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा.
.
ठहरता ही नहीं है ये कहीं भी एक भी पल को,
समय सा कोई भी फक्कड़ या…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on November 12, 2013 at 10:48pm — 17 Comments
दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी
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2122 1212 22
काई ज़ज़्बात पर जमी होगी
दूरी ,क्या यूँ ही बन गयी होगी ?
पूर्ण तो बस ख़ुदा ही होता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 6:00pm — 31 Comments
मेघ भी है, आस भी है और आकुल प्यास भी है,
पर बुझा दे जो हृदय की आग वह पानी कहाँ है ?
स्वाति जल की कामना में, 'पी कहाँ?' का मंत्र पढ़कर
बादलो को जो रुला दे, मीत ! वह मानी कहाँ है ?
क्षत-विक्षत है उर धरा का, रस रसातल में समाया,
सत्व सारा जो लुटा दे, अभ्र वह दानी कहाँ है ?
पार नभ के लोक में, जो बादलो पर राज करता,
छल-पराक्रम का धनी वह इंद्र अभिमानी कहाँ है ?
मौन पादप, वृक्ष नीरव, वायु चंचल, प्राण…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2013 at 12:30pm — 14 Comments
Added by Poonam Shukla on November 12, 2013 at 9:37am — 2 Comments
मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?
सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में , कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी
काले कुंतल श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 12, 2013 at 8:00am — 25 Comments
दीवार
मैं जानता हूँ
तुम्हें उस दीवार से डर लगने लगा है,
दीवार, जो तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के बीच
समय ने खड़ी कर दी है.
उठो,
उस दीवार से ऊपर उठो
नहीं तो सुबह औ’ शाम
उसकी लम्बी होती छाया
तुम्हें लील लेगी.
उस पार देखने के लिये
ऊपर उठना पड़ेगा,
उस दीवार से बहुत ऊपर –
और,
दीवार को नीचा दिखाने के लिये
तुम्हें नीचे आना पड़ेगा,
उस ज़मीं पर
जहाँ तुम्हारे अपने
तुम्हारी…
Added by sharadindu mukerji on November 11, 2013 at 11:00pm — 16 Comments
घने जंगल
वह भटक गया
साथी न कोई
आगे बढ़ता रहा
ढ़ूंढ़ते पथ
छटपटाता रहा
सूझा न राह
वह लगाया टेर
देव हे देव
सहाय करो मेरी
दिव्य प्रकाश
प्रकाशित जंगल
प्रकटा देव
किया वह वंदन
मानव है तू ?
देव करे सवाल
उत्तर तो दो
मानवता कहां है ?
महानतम
मैने बनाया तुझे
सृष्टि रक्षक
मत बन भक्षक
प्राणी जगत
सभी रचना मेरी
सिरमौर तू
मुखिया मुख जैसा
पोषण कर सदा…
Added by रमेश कुमार चौहान on November 11, 2013 at 9:30pm — 10 Comments
कोई सपना भटक रहा है मेरी आँखों में
पल पल चन्दन महक रहा है मेरी आँखों में
दरिया, नदिया, ताल नहर सब भीगे भीगे है
कब से बादल लहक रहा है मेरी आँखों में
पल भर बतियाता है फिर ओझल हो जाता हैं
किसका चेहरा झलक रहा है मेरी आँखों में
गालिब, की ग़ज़लों सी नाजुक एक कली को देख
कोई हिरना फुदक रहा है मेरी आँखों में
एक ग़ज़ल बातें करती है टुकड़ों में मुझसे
तन्हा मिसरा फटक रहा है मेरी आँखों…
ContinueAdded by अमि तेष on November 11, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
वक्त की मारी नहीं मैं,
हालत की मारी नहीं मैं,
जिन्दगी से घबराई नहीं मैं
शिकार हूँ दुश्कर्म की ,
जिन्दगी से हारी नहीं मैं।
अवला नहीं मैं
जो सहूँ जुल्मो सितम केा
आज की नारी हूँ,
बदल दूँगी जमाने को,
जमाने की सोच केा
अपनी जिंन्दगी केा
क्योंकि मैं आज की नारी हूँ
जिन्दगी से हारी नहीं हूँ।
मेरा क्या हुआ,
सम्मान गया
नहीं।
बेनकाब हो गया
चेहरा मानव समाज का
सल्तनत…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 11, 2013 at 7:30pm — 7 Comments
गमजदा लोग ये ऐसा कमाल कर देंगे
इतना रोयेंगे के हँसना मुहाल कर देंगे
झूठ कहने में उन्हें इस कदर महारत है
के सजर को भी वो तो नौ निहाल कर देंगे
कैसे हैं आज के बच्चे कहें भी क्या उनको
इक जबाब आता नहीं सौ सवाल कर देंगे
है यकीं अपनी मुहब्बत पे इस कदर उनको
इश्क जब होगा सनम को जमाल कर देंगे
हैं हम आजाद हवा इन्कलाब लाने को
"दीप" को एक सुलगती मशाल कर देंगे
संदीप कुमार पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 11, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
देश काल निमित्त की सीमाओं में जकड़े तुम
और तुम्हारे भीतर एक चिरमुक्त 'तुम'
-जिसे पहचानते हो तुम !
उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा
एक अभिन्न को-
खामोश मन मंथन की गहराइयों में
चिंतन की सर्वोच्च ऊचाइंयों में
पराचेतन की दिव्यता में.....
पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'
क्या पहचान भी पाओगे
अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-
एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?
(मौलिक और…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 11, 2013 at 2:30pm — 39 Comments
Added by Poonam Shukla on November 11, 2013 at 2:00pm — 16 Comments
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