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बताया जा रहा हमें 

समझाया जा रहा हमें 
कि हम हैं कितने महत्वपूर्ण

लोकतंत्र के इस महा-पर्व में 

कितनी महती भूमिका है हमारी 


ई वी एम  के पटल पर

हमारी एक ऊँगली के

ज़रा से दबाव से 
बदल सकती है उनकी किस्मत 

कि हमें ही लिखनी है

किस्मत उनकी 

इसका मतलब

हम भगवान् हो गए.....

वे बड़ी उम्मीदें लेकर

आते हमारे दरवाज़े 
उनके चेहरे पर

तैरती रहती है एक याचक सी

क्षुद्र दीनता...  

वो झिझकते हैं 

सकुचाते हैं 

गिड़गिडाते हैं 

रिरियाते हैं 

एकदम मासूम और मजबूर दिखने का 
सफल अभिनय करते हैं 

हम उनके फरेब को समझते हैं 
और एक दिन उनकी झोली में 
डाल आते हैं...
एक अदद वोट.....

फिर उसके बाद वे कृतघ्न भक्त 

अपने भाग्य-निर्माताओं को 
अपने भगवानों को

भूल जाते हैं....

(मौलिक अप्रकाशित) 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 12:19pm

सार्थक अभिव्यक्ति आदरणीय अनवर सुहैल जी

हार्दिक बधाई प्रस्तुति पर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2013 at 8:19pm

आदरणीय अनवर सुहैल साहब, इस स्पष्ट कविता के लिए बारम्बार बधाइयाँ. लोकतन्त्र का आईना कुछ इस कदर दरक गया है कि अभिव्यक्तियों और अपेक्षाओं के सारे बिम्ब टुकड़ों में नज़र आते हैं.

पुनः बधाई इस कविता केलिए.

सादर

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 16, 2013 at 4:48pm

सटीक कटाक्ष , बधाई की पात्र है ये अभिव्यक्ति और आप दोनों 

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 4:39pm
"एकदम मासूम और मजबूर दिखने का
सफल अभिनय करते हैं " - क्या ही सुंदर छवि बनाई है इन बहुरूपियों की . बहुत सुंदर अनवर भाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 9:22am

मोहतरम जनाब अनवर साहब सच्चाई  बयाँ करती इस रचना के लिये दाद कुबूल करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:41pm

एकदम सत्य सटीक अभिव्यक्ति आदरणीय बिलकुल ऐसा ही होता है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2013 at 11:41am

सुंदर प्रस्तुति ...शब्दों में निहित सत्य और दिल की पीड़ा को संजोये एक अच्छी प्रस्तुति ..सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 14, 2013 at 9:30am

कि हमें ही लिखनी है

किस्मत उनकी 

इसका मतलब

हम भगवान् हो गए.........शायद ! इसी ग़लतफ़हमी में कई  मतदाता, अपना कीमती मत, भक्त को दे देते होंगें

एकदम मासूम और मजबूर दिखने का 
सफल अभिनय करते हैं ............आपकी.यह तो बहुत ही गहरी व् अनुभव से भरी दृष्टी का कमाल है,

तत्पश्चात ५ वर्षों तक, मतदाता भक्त बनकर, अपने भगवान को ढूंढता रह जाता है,  नेताओं पर बहुत सटीक प्रहार करती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:23am

सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति है आ0 अनवर भाई...... राजनितिज्ञों पर करारा प्रहार...... जो अपना काम निकल जाने के बाद आम जनता को भूल जाते हैं....... बहुत बहुत बधाई इस रचना हेतु....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2013 at 10:26pm

मित्र

हाँ यही मैं भूल हर बार  करता हूँ

आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

पर नहीं होती उनसे कभी भी भूल

जीतकर वे हमेशा हमें देते शूल

 

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