For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बताया जा रहा हमें 

समझाया जा रहा हमें 
कि हम हैं कितने महत्वपूर्ण

लोकतंत्र के इस महा-पर्व में 

कितनी महती भूमिका है हमारी 


ई वी एम  के पटल पर

हमारी एक ऊँगली के

ज़रा से दबाव से 
बदल सकती है उनकी किस्मत 

कि हमें ही लिखनी है

किस्मत उनकी 

इसका मतलब

हम भगवान् हो गए.....

वे बड़ी उम्मीदें लेकर

आते हमारे दरवाज़े 
उनके चेहरे पर

तैरती रहती है एक याचक सी

क्षुद्र दीनता...  

वो झिझकते हैं 

सकुचाते हैं 

गिड़गिडाते हैं 

रिरियाते हैं 

एकदम मासूम और मजबूर दिखने का 
सफल अभिनय करते हैं 

हम उनके फरेब को समझते हैं 
और एक दिन उनकी झोली में 
डाल आते हैं...
एक अदद वोट.....

फिर उसके बाद वे कृतघ्न भक्त 

अपने भाग्य-निर्माताओं को 
अपने भगवानों को

भूल जाते हैं....

(मौलिक अप्रकाशित) 

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 12:19pm

सार्थक अभिव्यक्ति आदरणीय अनवर सुहैल जी

हार्दिक बधाई प्रस्तुति पर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2013 at 8:19pm

आदरणीय अनवर सुहैल साहब, इस स्पष्ट कविता के लिए बारम्बार बधाइयाँ. लोकतन्त्र का आईना कुछ इस कदर दरक गया है कि अभिव्यक्तियों और अपेक्षाओं के सारे बिम्ब टुकड़ों में नज़र आते हैं.

पुनः बधाई इस कविता केलिए.

सादर

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 16, 2013 at 4:48pm

सटीक कटाक्ष , बधाई की पात्र है ये अभिव्यक्ति और आप दोनों 

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 4:39pm
"एकदम मासूम और मजबूर दिखने का
सफल अभिनय करते हैं " - क्या ही सुंदर छवि बनाई है इन बहुरूपियों की . बहुत सुंदर अनवर भाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 9:22am

मोहतरम जनाब अनवर साहब सच्चाई  बयाँ करती इस रचना के लिये दाद कुबूल करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:41pm

एकदम सत्य सटीक अभिव्यक्ति आदरणीय बिलकुल ऐसा ही होता है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2013 at 11:41am

सुंदर प्रस्तुति ...शब्दों में निहित सत्य और दिल की पीड़ा को संजोये एक अच्छी प्रस्तुति ..सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 14, 2013 at 9:30am

कि हमें ही लिखनी है

किस्मत उनकी 

इसका मतलब

हम भगवान् हो गए.........शायद ! इसी ग़लतफ़हमी में कई  मतदाता, अपना कीमती मत, भक्त को दे देते होंगें

एकदम मासूम और मजबूर दिखने का 
सफल अभिनय करते हैं ............आपकी.यह तो बहुत ही गहरी व् अनुभव से भरी दृष्टी का कमाल है,

तत्पश्चात ५ वर्षों तक, मतदाता भक्त बनकर, अपने भगवान को ढूंढता रह जाता है,  नेताओं पर बहुत सटीक प्रहार करती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:23am

सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति है आ0 अनवर भाई...... राजनितिज्ञों पर करारा प्रहार...... जो अपना काम निकल जाने के बाद आम जनता को भूल जाते हैं....... बहुत बहुत बधाई इस रचना हेतु....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2013 at 10:26pm

मित्र

हाँ यही मैं भूल हर बार  करता हूँ

आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

पर नहीं होती उनसे कभी भी भूल

जीतकर वे हमेशा हमें देते शूल

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
18 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
24 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
33 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
37 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service