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आत्‍ममंथन

''आत्‍महत्‍या''

क्‍या है ये।

क्‍यों हो रही है ये,

क्‍यों भागते है वे,

जिन्‍दगी से,

कर्तव्‍यों से,  

क्‍यों नहीं सामना करते

कठिनाईयों का,

समस्‍याओं का,

परिस्थितों का,

किस के दम पर

छोड जाते है वे 

बूढे मॉं -बाप को,  

अवोध बालको केा,

अपनी विवाहिता केा

जिसका संसार बदल दिये वे

एक चुटकी सिन्‍दूर से

क्‍या कसूर है इनका

यही , वे करते है

प्‍यार उनसे

चाहते है…

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Added by Akhand Gahmari on November 7, 2013 at 5:49pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुझे पागल बताया जा रहा है ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122      2122      2122       2122

 

ज़ख़्म सूखे हैं तो फिर क्यों दर्द फैला जा रहा है  

क्यों मुझे वो दिन पुराना याद आता जा रहा है

 

भीड़ मे रहना मुझे फिर बोझ सा लगने लगा क्यों   

और तनहा कोई कोना क्यों…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 7, 2013 at 5:30pm — 34 Comments

गज़ल - राहों में दीवारें हैं - पूनम शुक्ला

2222. 222

बजती क्यों झंकारें हैं
जब सजती तलवारें हैं

मुँह पर ताले ऐसे क्यों
अब उठती ललकारें हैं

आँखों में देखो पानी
उफ इतनी मनुहारें हैं

कब बदलेगी ये झुग्गी
हाँ बदली सरकारें हैं

काँटे ही काँटे हैं बस
राहों में दीवारें हैं

बहना इतना मुश्किल क्यों
दिखती बस मझधारें हैं ।
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 7, 2013 at 10:30am — 12 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
छठ महापर्व // -- सौरभ

यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय ईशावस्योपनिषद के रूप में प्रसिद्ध है जिसके पन्द्रहवें श्लोक के माध्यम से सूर्य की महत्ता को प्रतिस्थापित किया गया है.



हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।

तत्त्वं पूषन अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

हिरण्मयेन पात्रेण यानि परम…

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Added by Saurabh Pandey on November 7, 2013 at 12:00am — 48 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
एक तरही ग़ज़ल

उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है

ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने

तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही

जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है

मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो

'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'

देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए

जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है

कुछ तो…

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Added by Rana Pratap Singh on November 6, 2013 at 11:26pm — 41 Comments

तान्या : उन खामोश क्षणों में

इन खामोश क्षणों में

चाहा था

तुमको न याद करूँ /

लेकिन

बरखा की बूँदो के साथ

मेरा मन

भीग  गया /

और याद आये वो बादल ,

जो आये , छाये

और लौट गए

बिन बरसे ही /

लेकिन

मन के आँगन में

फूटी एक नन्ही कोंपल

मुरझाई नहीं

कुछ ज्यादा हरी हुई /

और याद आया

वो सपना

जिसमे तुम थे

मै भी न था

क्योंकि

वह मेरी आँखों का ही सपना था /

और याद आई

वो सूनी, गरम दोपहरी

करती ख़ामोशी से

इंतज़ार…

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Added by ARVIND BHATNAGAR on November 6, 2013 at 10:30pm — 8 Comments

गजल/समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया

मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन फअल

समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,

यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।

जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,

सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।

कभी पहले से कोर्इ तय नहीं होती जगह ,

जहाँ चाहा वहीं संतो का डेरा हो गया।

कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,

मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।



फंसा कर जाल में मानेगा ही अब तो उसे ,

सुनहरी मछली पे मोहित मछेरा हो…

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Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 6, 2013 at 8:30pm — 11 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अभी पूर्णविराम नहीं!!!(अतुकांत )

नीरवता , सन्नाटा

शून्यता बस यही तो बचा था

जैसे अंतर के स्वर को

लील चूका हो बाह्य कोलाहल

रिक्त अंतर घट

कोई प्यास भी नहीं बाकी  

सुप्त प्राय आत्मा…

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Added by rajesh kumari on November 6, 2013 at 8:30pm — 18 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

आसनों पे हैं निशाचर जंगलों में राम है।

साधुओं के वेष में शैतान मिलना आम है॥

.

राहुओं को जीवनामृत, नीलकण्ठों को गरल,

अंत में प्रत्येक मंथन का यही अंजाम है।

.

और कितना द्रोपदी के चीर को लंबा करे,

दम बहुत दु:शासनों में, मुश्किलों में श्याम है।

.

क़ातिलों,बहरूपियों,पाखंडियों के हाट में,

ज़िंदगी मेरी-तुम्हारी कौड़ियों के दाम है।

.

गर न खाना मिल सके दो वक़्त,आदत डाल दे,

चार दिन है भुखमरी फिर क़ब्र में आराम… Continue

Added by Ravi Prakash on November 6, 2013 at 7:11pm — 15 Comments

ग़ज़ल : सत्य मेरा बोलना ही ऐब है

बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ

2 1  2 2  2 1  2 2  2 1 2



तंग बेहद हाथ खाली जेब है,

सत्य मेरा बोलना ही एब है,



पाँव नंगे वस्त्र तन पे हैं फटे,

वक्त की कैसी अजब अवरेब है,

( अवरेब = चाल )



जख्म की जंजीर ने बांधा मुझे,

दर्द का हासिल मुझे तंजेब है,

( तंजेब = अचकन, लम्बा पहनावा )



जुर्म धोखा देश में जबसे बढ़ा,

साँस भी लेने में अब आसेब है,

( आसेब = कष्ट )



भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:30pm — 32 Comments

मंगल यान [कुण्डलिया]

मंगल मंगल को उड़ा ,बनकर मंगल यान
मंगल को कर कामना ,बढ़े देश की शान |
बढ़े देश की शान , नित्य ही उन्नति पायें
भारत मंगल गान , सभी दुनियां में गायें
सरिता कहे पुकार ,बढ़ो दुनियां में हरपल
हनुमन्ता का वार ,कामना करलो मंगल||

.................................................

.......... मौलिक व अप्रकाशित ..........

Added by Sarita Bhatia on November 6, 2013 at 11:31am — 10 Comments

गीत/ नदिया

इस नदिया की धारा में

कितने टापू हैं उभरे

कहीं हुई उथली-छिछली 

तो कहीं भँवर हैं गहरे

 

पंख नदारद मोरों के 

तितली का है रंग उड़ा

भौंरा भी अब ये सोचे…

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Added by बृजेश नीरज on November 5, 2013 at 11:30pm — 20 Comments

क्षणिकाएं-4

१-डर

भयातुर आँखें

शक की नज़रों से देखती सबको

विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज

कब क्या कर बैठे किसे पता



२-सत्य

जीवन एक तहखाना है

हम सब कैदी

जो ईश्वर से प्यार नहीं करता

वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है

और जो ईश्वर से प्यार करता है

वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है

३-रहस्य

ये कैसा रहस्य है

सारी उन्मनता.

सारी व्यग्रता

सारी म्लानता

तुम्हारे नेह की तरलता…

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Added by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 10:22pm — 21 Comments

सुनो ऋतुराज- 15

सुनो ऋतुराज- 15 

सुनो ऋतुराज!!

वह एक अन्धी दौड थी 

हांफती हुई 

हदें फलांगती हुई 

परिभाषाओं के सहश्र बाड़ो को 

तोडती हुई

फिर भी वह भ्रम नही टूटा 

जिसे तोडने के लिये संकल्पित थे हम 

ऋतुओं का मौन यूँ ही बना रहा 

सावन बरस् बरस कर सूख गया 

हम अन्धड़ के वेग मे भी तने रहे 

और आसक्ति का वृक्ष सूख गया 

सुनो ऋतुराज 

लमहों का बही खाता 

जब भी खोलोगे 

दग्ध ह्रदय पर लिखा 

शुभलाभ अवश्य दिखेगा …

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Added by Gul Sarika Thakur on November 5, 2013 at 11:30am — 11 Comments

मोहब्बत आग का दरिया

मोहब्बत आग का दरिया भरोसा तोड़ देती है ।

खुदी आधी जलाकर ही भला क्यों छोड़ देती है ।

छलावा इस से बढ़कर ना कहीं देखा ज़माने में ।

समंदर गम के भर लाये ख़ुशी कि बूँद पाने में ।

लिए नादान सी हसरत किसी मासूम से दिल को ,

ख़ुशी का आसरा देकर ग़मों से जोड़ देती है ।

अच्छा था खुदी मेरी ये खुद में ही समा लेती ।

कहीं अपनी पनाहों में ये मुझको भी छुपा लेती ।

लुटा बैठा ये दीवाना कहाँ अपना मकां ढूढे ,

ये सबकुछ छीनकर मेरा मुझे क्यों…

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Added by Neeraj Nishchal on November 5, 2013 at 10:30am — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

1212 1122 1212 22

 

सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ

 

ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर

गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ

 

न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे

तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ

 

चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह

वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ

 

ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा

इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा…

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Added by शिज्जु "शकूर" on November 5, 2013 at 9:00am — 16 Comments

उसके बिना...

वो मुझे याद करता है 

वो मेरी सलामती की

दिन-रात दुआएं करता है 

बिना कुछ पाने की लालसा पाले 

वो सिर्फ सिर्फ देना ही जानता है 

उसे खोने में सुकून मिलता है 

और हद ये कि वो कोई फ़रिश्ता नही 

बल्कि एक इंसान है 

हसरतों, चाहतों, उम्मीदों से भरपूर...

उसे मालूम है मैंने 

बसा ली है एक अलग दुनिया 

उसके बगैर जीने की मैंने 

सीख ली है कला...

वो मुझमें घुला-मिला है इतना 

कि उसका उजला रंग और…

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Added by anwar suhail on November 4, 2013 at 7:36pm — 6 Comments

|| अंजुमन ग़ज़ल नवलेखन पुरस्कार - 2014 ||

दोस्तो,

अंजुमन प्रकाशन द्वारा 27 अक्टूबर 2013 को लखनऊ के पुस्तक लोकार्पण समारोह में की गयी घोषणा के अनुसार अंजुमन ग़ज़ल नवलेखन पुरस्कार-2014 के नियम एवं शर्त उपलब्ध हैं | युवा शाइरों से निवेदन है कि इस पुरस्कार योजना में शामिल हो कर इसे सफल बनाएँ व इसका लाभ उठायें |…



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Added by वीनस केसरी on November 3, 2013 at 7:30pm — 27 Comments

दीवाली के दोहरे

दीवाली के दोहरे

होती है हर एक को, रिद्धि सिद्धि की चाह।

दीप पर्व दिखला रहा, अंतर मन को राह।१।

 

उनका जीवन पथ चुनें, करें आत्म उत्थान।

जिनके जीवन में मिला, यश कीरत…

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Added by Satyanarayan Singh on November 3, 2013 at 7:00pm — 28 Comments

दीपावली पर ओबीओ के लिये शुभकामना

छंदों के दीप जलें, शायरी की झिलमिल हो

हँसी खुशी भरी सदा, ओबिओ की महफिल हो

साहित्य करे उन्नति, भाषा का विकास हो

इस मंच पर सदा-सदा स्नेह का प्रकाश हो

सभी विधाओं का सभी दिशाओं में उत्थान हो

सभी नयी प्रतिभाओं के लिये यहां मुस्कान हो

समस्त लक्ष्य - योजना व स्वप्न साकार हो

आने वाले पल के सदा हाथ में उपहार हो

दीपावली की 'चर्चिती शुभकामना' फलीभूत हो

इस मंच के सभी प्रयास सफल व अनुभूत हों

(मौलिक एवं…

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Added by VISHAAL CHARCHCHIT on November 3, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

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