For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर

ग़ज़ल

 

देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर

ये महा हड़ताल शासन को झुकायेगी ज़रूर

 

देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो

रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर

 

हौसला हालात से लड़ने का होना चाहिए

आयेंगे तूफ़ां तो कश्ती डगमगायेगी ज़रूर

 

अब बग़ावत पर उतर आओ सुनो पूरी तरह

वर्ना ये सत्ता तुम्हें  भी नोंच खायेगी ज़रूर

 

ये हमारी सारी माँगें मान तो ली जायेंगी

हाँ मगर सरकार हमको आज़मायेगी ज़रूर

 

कर रही है कर्मचारी हित को अनदेखा तो फिर

तय समझ लो अब ये सत्ता चरमरायेगी ज़रूर

 

संगठित होकर दिखा दो संगठन में शक्ति है

जो विरोधी शक्ति होगी मुँह की खायेगी ज़रूर

 

माँगने से यदि न मिल पाये तो बढ़कर छीन लो

हर सफलता ख़ुद-ब-ख़ुद क़दमों में आयेगी ज़रूर

 

आग जो सुलगायी है हमने वो पाते ही हवा

दुश्मनों का चैन-सुख एक दिन जलायेगी  ज़र

             ______________

[मौलिक अप्रकाशित]

 

राज्य कर्मचारी अधिकार मंच की महा हड़ताल को समर्पित                              

अजीत शर्मा आकाश’  [शिक्षा विभाग, इलाहाबाद ]

_______________________________

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2013 at 12:07am

आदरणीय अजीत आकाशजी, वाह वाह वाह !

आपकी ग़ज़ल के तेवर .. सुब्हान अल्लाह ........

ऐसे ही लिखते रहें

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2013 at 5:33pm

आदरणीय अजीत शर्मा जी 

देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो

रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर.........बहुत सुन्दर हौसला प्रदान करता शेर ..

बहुत सुन्दर प्रभावशाली क्रान्ति उद्घोष करती ग़ज़ल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ..

कर रही है कर्मचारी हित को अनदेखा तो फिर

तय समझ लो अब ये सत्ता चरमरायेगी ज़रूर.............क्या यहाँ तबाकुले रदीफ़ का ऐब होगा ? या नहीं? 

माँगने से यदि न मिल पाये तो बढ़कर छीन लो...........और कृपया इस मिसरे को बहर में पढने में मेरी मदद करें... क्या 'यदि' को 2 में बांधा गया है?

सादर.

Comment by विजय मिश्र on November 22, 2013 at 5:38pm
आकाशजी! पुरजोर और पुरजोश लिखा है और यह तो संचलन गीत रच दिया आपने | अतिप्रसंशा योग्य रचना | ढेर सारी शुभकामनाएँ और बधाई , सादर |
Comment by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 1:39pm

वाह वाह आदरणीय एक एक शेर पर ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं बहुत ही शानदार उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मजा आ गया

Comment by बसंत नेमा on November 22, 2013 at 12:08pm

आ0 अजीत जी .... बहुत खूब कहा आप ने 

संगठित होकर दिखा दो संगठन में शक्ति है

जो विरोधी शक्ति होगी मुँह की खायेगी ज़रूर

वाकई एक क्रांति सा जोश है  आप की गजल मे ......................... बधाई शुभकामनाये 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 22, 2013 at 11:31am

आदरणीय अजीत जी ..आपके ग़ज़ल वाकई क्रांति लाने वाली ग़ज़ल है ..हर शेर उम्दा , आशावादिता से परिपूर्ण, कहीं आक्रोश दर्शाती है , कही हकीकर से रूबरू करती है , कहीं चेंताव्नी ...सचमुच कमाल के ग़ज़ल ..मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकार करें ..सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 10:57am

हड़तालियों का हौसला बुलंद करने वाली सुंदर गज़ल की बधाई अजीत भाई। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 21, 2013 at 10:20pm

आदरणीय अजीत शर्मा जी बेहतरीन गज़ल है हर एक शेर दमदार है दिली दाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 6:03pm

आदरणीय अजीत भाई ,!!!!बहुत सुन्दर ,ओजस्वी गज़ल कही है बहुत बधाई !!!!!

इस मिसरे मे -

दुश्मनों का चैन-सुख एक दिन जलायेगी  ज़र --     एक को इक कर लीजिये , मत्रा सही हो जायेगा !!! और ज़रूर केवल ज़र टाइप हो गया है , टंकण की गलती सुधार लें !!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 21, 2013 at 3:45pm

क्या बात है सर जी बहुत ही ओजपूर्ण ग़ज़ल कही है आपने

सादर बधाई स्वीकारिये

जय हो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
1 minute ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
5 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
17 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
19 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
23 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला बहुत आभारी हूँ आपका आपने बहुत माकूल इस्लाह…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय विकास जी। मतला, गिरह और मक़्ता तो बहुत ही शानदार हैं। ढेरो दाद और…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलक राज जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल के हर शेअर को फुर्सत से जांचने परखने एवं सुझाव पेश करने के…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. जयहिंद रायपुरी जी, अभिवादन, खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service