For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जुम्मन ख़ाँ (व्यंग्य -रचना)

__________________
जुम्मन ख़ाँ
__________________

अब तो थोड़ा सोचो और विचारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .

 

सच्चाई को कब तक ओढ़ो और बिछाओगे
ख़ुदग़र्ज़ी से, मक्कारी से आँख चुराओगे
मुँह में रखकर राम बगल में छुरी नहीं रखते
नीयत कभी किसी की ख़ातिर बुरी नहीं रखते
निश्छल चेहरे पर छाया जो ये भोलापन है
सच मानो जुम्मन ख़ाँ सबसे शातिर दुश्मन है
थोड़ा सा तो डूबो धन-दौलत की चाहत में
सच मानो कुछ नहीं रखा है भलमनसाहत में

.
भलमनसाहत को अब गोली मारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .

 

झूठ-मूठ की शान दिखाओ, नकलीपन ओढ़ो
छल-बल सीखो, बे-ईमानी से रिश्ता जोड़ो
टाँग खिंचाई कैसे करते हैं, ये फ़न सीखो
कहाँ उठानी कहाँ झुकानी है गर्दन, सीखो
आस्तीन के साँपों को उस्ताद बना डालो
घोर काइयांपन के साँचे में ख़ुद को ढालो
फिर देखो हर ओर तुम्हारी ही जय जय होगी
वर्ना रह जाओगे बनकर बस वेतन भोगी

अपनी बिगड़ी क़िस्मत आप संवारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .

 

सत्य -वत्य, ईमान -धरम में कब तक उलझोगे
ना जाने कब आँख खुलेगी कब तुम समझोगे
नौजवान बेटे को सर्विस में लगवाना है
बिटिया की शादी करनी है, घर बनवाना है
पत्नी के कपड़ों-गहनों का शौक़ अधूरा है
तुम कहते हो अपना तो हर मक़सद पूरा है
दुनियादारी सीखो वर्ना क्या कर पाओगे
अब तक रोते आये, रोते ही रह जाओगे

डर छोड़ो, इस दुनिया को ललकारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .

 

देखो जुम्मन ख़ाँ, अब का ये दौर निराला है
कपड़े तो उजले हैं, मन का क्या है ? काला है
हर दिन हर पल भ्रष्टाचार फूलता फलता है
भारतवर्ष  हमारा  रामभरोसे  चलता  है
किस दुनिया में रहते हो क्या बातें करते हो
अंधे  युग  में  भी   ऊपरवाले  से   डरते  हो
सुख क्या जानो तुमने तो बस दुख ही दुख भोगे
मेरे  कहने  का  आशय    तुम  समझ गये होगे

मौक़ा ढूँढो, तड़ से पलटी मारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .

                         [[[[[[[[[[]]]]]]]]]]

[मौलिक / अप्रकाशित]

Views: 769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 18, 2013 at 5:42pm

आ० प्राची  जी, आपके शब्दों ने हौसला अफज़ाई की, हार्दिक आभार आपका ..... वीनस भाई शुक्रिया .... आ० सौरभ जी आभार आभार .....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 9:13pm

आदरणीय अजीत जी 

बहुत शानदार रचना है.... बहुत दिनों बाद इतना बढ़िया व्यंग पढ़ा है कि पाठक मन तृप्त हो गया... बहुत बहुत बधाई 

भाई जुम्मन ख़ाँ..     को कितनी प्रेक्टिकल सीखें दी गयी हैं अपना लें तो वास्तव में काया पलट हो जाए... 

//मौक़ा ढूँढो, तड़ से पलटी मारो जुम्मन ख़ाँ //...ये तो सबसे जानदार पंक्ति लगी ...बहुत सुन्दर रचना 

सादर 

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 9:08pm

चमकादार रचना है इसको गोष्ठी में आपसे सुनने का अपना ही मजा है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 15, 2013 at 8:28pm

आदरणीय आकाशजी, आपकी इस रचना का आस्वादन व्यक्तिगत गोष्ठियों में भी लिया है हमने. इसे इस मंच पर देख कर और पढ़ कर मजा वाकई दूना हो गया. व्यंग्यात्मक शैली की धार अपनी चमक और धौंक के साथ है.

हृदय से बधाई स्वीकारें, आदरणीय.

शुभ-शुभ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 15, 2013 at 8:14pm

बहुत सुन्दर!

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 15, 2013 at 7:58pm

आप सभी सुह्रद जनों का हार्दिक आभार ...... अमूल्य सुझाव के लिए बेहद शुक्रिया ...... भाई  अखिलेश जी आप का आदेश सिर माथे ...... फोटो हाज़िर करता हूँ, जल्द ही ...... पुनः आभार !!!

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 7:08pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

कोई कविता यदि बेवजह लम्बी कर दी जाये तो अपना मज़ा खो देती है!

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 12:39pm

अजीत शर्मा जी मजा आ गया ये व्यंगात्मक शैली की रचना पढ़ कर बधाई आपको ,बढ़िया सलाह दी हैं अब आप अखिलेश कृष्ण जी की सलाह पर भी गौर फरमाएं 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:09am

वाह वाह.... इस शानदार व्यंग्य रचना के लिए आपको बधाई आदरणीय अजीत जी.....

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 9:36pm

अजीत जी ..आदमी को सीधी बात समझ में आती भी नहीं है ..उलटे तरीके से कहो तो वो ये तो सोचता ही है की आखिर ऐसा क्यूँ कहा जा रहा है ..लाजबाब इस रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service