बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।
बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।
बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।
हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।
दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।
होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।
रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।
दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।
आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।
व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर…
Added by अरुन 'अनन्त' on January 23, 2014 at 11:30am — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
हमारी प्यास ले जाओ, जरा सूरज घटाओं तक
समय इतना नहीं बाकी, खबर भेजें हवाओं तक
तुम्हारी कोशिशें थी नित, यहाँ केवल दवाओं तक
हमारा भाग भा खोटा, न जा पाया दुआओं तक
कहाँ से भेजता रब भी, मदद को रहमतें अपनी
पहुचनें ही न पायी जब, सदा मेरी खलाओं तक
कहो तुम चाँद से इतना, सितारों रोशनी मकसद
रहा मत कर सदा इतना, सिमटकर तूँ कलाओं तक
सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के
हमारी हद सहन तक ही,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 7:30am — 12 Comments
भ्रष्ट मंत्र है भ्रष्ट तंत्र है
इसे बदलना होगा
अब सत्ता के गलियारों में
हमें पहुंचना होगा
वीरों ने हुंकार भरी है
दुश्मन सभी दहल जाओ
भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों…
ContinueAdded by sanju shabdita on January 22, 2014 at 7:30pm — 23 Comments
Added by Poonam Shukla on January 22, 2014 at 4:01pm — 6 Comments
साथी! तोड़ न निर्दयता से चुन चुन मेरे पात...
नन्हीं एक लता मैं निर्बल,
मेरे पास न पुष्प न परिमल,
मेरा सञ्चित कोष यही बस,
कुछ पत्ते कुम्हलाये कोमल,
तोड़ न दे यह शाख अकिञ्चन, निर्मम तीव्र प्रवात...
मैं हर भोर खिलूँ मुस्काती,
पर सन्ध्या आकुलता लाती,
साँस साँस भारी गिन गिन मैं,
रजनी का हर पहर बिताती,
एक नये उज्ज्वल दिन की आशा, मेरी हर रात...
पड़ती तेरी ज्वलित दृष्टि जब,
भीत प्राण भी हो जाते तब,
सहमी सकुचायी मैं…
Added by अजय कुमार सिंह on January 22, 2014 at 3:30pm — 20 Comments
नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥
पश्चिम संस्कृति जी रहे, हम भूले निज मान।
कहते हम संतान कपि, जबकि हैं हनुमान॥
निज गौरव को भूलकर, बनते मार्डन लोग।
ये भी क्या मार्डन हुए, पाल रहे बस रोग॥
अपने घर में त्यक्त है, वैदिक ज्ञान महान।
महा मूढ़ मतिमंद हम, करते अन्य बखान॥
लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥
मौलिक व अप्रकाशित
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 22, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on January 21, 2014 at 11:30pm — 10 Comments
मात्रिक छंद
जो रस्मों को मन से माने, पावन होती प्रीत वही तो!
जीवन भर जो साथ निभाए, सच्चा होता मीत वही तो!
रूढ़ पुरानी परम्पराएँ, मानें हम, है नहीं ज़रूरी।
जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!
मंदिर-मंदिर चढ़े चढ़ावा, भरे हुओं की भरती झोली।
जो भूखों की भरे झोलियाँ, होता कर्म पुनीत वही तो!
ऐसा कोई हुआ न हाकिम, जो जग में हर बाज़ी जीता,
बाद हार के जो हासिल हो, सुखदाई है जीत वही…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on January 21, 2014 at 11:00pm — 18 Comments
एकदम से ये नए प्रश्न हैं
जिज्ञासा हममें है इतनी
बिन पूछे न रह सकते हैं
बिन जाने न सो सकते हैं
इसीलिए टालो न हमको
उत्तर खोजो श्रीमान जी....
ऐसे क्यों घूरा करते हो
हमने प्रश्न ही तो पूछा है
पास तुम्हारे पोथी-पतरा
और ढेर सारे बिदवान
उत्तर खोजो ओ श्रीमान...
माना ऐसे प्रश्न कभी भी
पूछे नही जाते यकीनन
लेकिन ये हैं ऐसी पीढ़ी
जो न माने बात पुरानी
खुद में भी करती है शंका
फिर तुमको काहे छोड़ेगी
उत्तर तुमको देना…
Added by anwar suhail on January 21, 2014 at 9:35pm — 5 Comments
छंद पर मेरा प्रथम प्रयास
छलक छलक जाती अँखियाँ हैं प्रभुश्याम
आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ ।
ब्रज के कन्हाइ का मुझे भरोसा मिल गया ,
खुशी न समानी मन मानी हुई जाती हूँ ।
भक्ति रस मे ही डूबी श्याम मै पोर पोर
भावना मे डूबी पानी पानी हुई जाती हूँ ।
सांवरे का जादू ऐसा चढ़ा तन मन पर ,
राधिका सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 21, 2014 at 8:30pm — 16 Comments
मौन जब मुखरित हो जाता है
मौन जब मुखरित हो
शब्दों में ढल जाता है
मिट जाते भ्रम सभी
मन दर्पण हो जाता है
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
बोझिल मन शान्त हो
सागर सा लहराता है
वेदना सब हवा हो जाती
भोर दस्तक दे जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
धैर्य मन का सघन हो
विश्वास सबल हो जाता है
पतझड़ मन बसंत बन
कोकिल सा किलकाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 21, 2014 at 7:00pm — 8 Comments
खनकी,झनकी,लिपटी मुझसे पियकी चुटकी चटकी सि भली
हलकी फुलकी छलकी बलकी, ठुमकी सिमटी सलकी सि कली
Added by Ashish Srivastava on January 21, 2014 at 11:08am — 6 Comments
आत्म-धन
होगी ज़रूर कोई गहरी पहचान
दर्द की तुम्हारे इस दर्द से मेरे
कि जाने किन-किन तहों से उभरती
छटपटाती
लौट आती है वही एक याद तुम्हारी
यादों के कितने घने अँधियाले
पेड़ों के पीछे से झाँकती ...
मैंने तो कभी तुमको
इतना स्नेह नहीं दिया था
भीगी आँखों से, हाँ,
भीगी आँखों को देखा था
कई बार... खड़े-खड़े ... चुपचाप
पंख कटे पक्षी-सा तड़पता
ठहर नहीं पाता है मन पल-भर…
ContinueAdded by vijay nikore on January 21, 2014 at 11:00am — 23 Comments
आह लिखो , हुंकार लिखो , कुर्बानी लिखना
बंद करो किस्सों में राजा रानी लिखना
सूखे खेतों की किस्मत में पानी लिखना
अब लिखना तो पीलेपन को धानी लिखना
और भी हैं रिश्ते यारों तुम छोडो भी अब
महबूबा के दर अपनी पेशानी लिखना
मानवता उन्वान , भरा हो प्रेम कहन में
अपना जीवन ऐसी एक कहानी लिखना
जब भी तुम अपने लब पर मुस्कान लिखो…
ContinueAdded by Arun Sri on January 21, 2014 at 11:00am — 32 Comments
2122 2122 2122
फिर हुई जीने की इच्छा आज मन में
फिर बुलाया आज कोई है सपन में
फड़फड़ाने फिर लगा कोई परों को
फिर उड़ेगा वो किसी नीले गगन में
फिर से पीड़ा मीठी सी कुछ हो रही है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:30pm — 31 Comments
दिलों को जो सुहाते हैं /
दिलों पे जाँ लुटाते हैं /
निगाहों से क़त्ल करके
मुझे कातिल बनाते हैं /
दिलों के हैं अजब रिश्ते
सदा अपने निभाते हैं /
यूँ पल पल मर रही हूँ मैं
मुझे जिन्दा बताते हैं /
सभी अपने तुम्हारे बिन
मुझे जीना सिखाते हैं /
सुना है ऐसे में अपने
भी दामन छोड़ जाते हैं /
.....................................
..मौलिक व् अप्रकाशित....
Added by Sarita Bhatia on January 20, 2014 at 5:30pm — 20 Comments
मुहब्बतों के पैगाम .....
ये मुहब्बत भी
अजब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने और समझाने में
कब हो जाती हैं सांसें चोरी
खबर ही नहीं होती
बरसों नहीं आती नींद
उनके इक बार मुस्कुराने में
डूबे रहते हैं पहरों
इक दूसरे के ख्यालों में
जाने गुज़र जाती शब् कैसे
इक दूसरे से बतियाने में
शब् जाती है तो
सहर आ जाती है
सहर क्या आती है…
Added by Sushil Sarna on January 20, 2014 at 1:00pm — 17 Comments
आज
तुम्हारा प्यार
बना रहा साथ मेरे
साये की तरह
चलता रहा साथ
जहां-जहां मैं गई ।
देता रहा दिलासा
अकेले उदास मन को
जैसे तुम देते थे
मेरे कंधे पर प्यार से थपकी
उसी तरह का दुलार
आज फिर महसूस किया मैंने
जब सांझ की उतरती
गहरी उदासी ने
घेर लिया मन को मेरे ।
तुम ही नहीं
तुम्हारा प्यार भी जानता था
कि सांझ,
मुझे उदास कर देती है ?
शायद इसीलिए,
साये की…
ContinueAdded by mohinichordia on January 20, 2014 at 9:00am — 10 Comments
छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या
ख़ुद से कर देगा बदगुमान भी क्या
कोई ठहरेगा मेह्रबान भी क्या
है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या
मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
काट ली जायेगी ज़बान भी क्या
धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को
लूट लेंगे ये सायबान भी क्या
इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या
अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये…
Added by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 12:30am — 26 Comments
मन शाम के बहानों से उदास
सोच के सागर किनारें
गुज़रते लम्हों के
सफ्हें बदलता रहा
कब आँखे थक कर
बैठ गयी ख़बर नहीं
ज़ेहन में एक तस्वीर
उभर आयी
शांत चेहरे पर
झीनी सी मुस्कराहट
होठों की नमी उड़ी थी कहीं
पर आँखे शरारती
जैसे कह रही थी मुझे
''अच्छा तो तुम अब ऐसे याद करोगी''
आँखे खुल गयी चौंक कर
कुछ नहीं था, कोई नहीं था
बस वो ख्याल था और
बहुत देर तक साथ रहा
आज…
ContinueAdded by Priyanka singh on January 19, 2014 at 4:36pm — 19 Comments
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