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मगर अहसास पैदा हो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222



समझ   लूँ  मैं गुनाहों को भला अतवार1 से कैसे

मगर पूछूँ  तरीका  भी   किसी  अबरार2 से कैसे

**

सभी की थी दुआएं तो जला जब भी यहाँ  दीपक

मिटाया पर गया ना तब  बता अनवार3 से कैसे

**

हमेशा  बोलता  था  तू  नहीं  रिश्ता  रहा   कोई

गले लगती बता कमसिन किसी अगियार4 से कैसे

**

जुटा पाया न मैं साहस अना5 की बात कहने को

उलझ वो  भी  गई  पूछे किसी अफगार6 से कैसे

**

सदा लेते जनम वो तो गलत को ठीक करने…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2014 at 7:00am — 7 Comments

बस यूँ ही ……डर ……

बचपन से डरता रहा

दिल में डर बसता रहा 

बहुत अच्छा हुआ जो

मै नहीं हुआ निडर 

माँ हमेशा कहती थी 

चार लोग देखेंगे तो

क्या कहेंगे 

उन चार लोगो का डर 

पिता कि मार का डर 

अपने पैरों पर खड़े ना हो पाने का डर 

खड़े हुए तो दौड़ ना पाने का डर 

दौड़े  तो गिर जाने का डर 

जवान हुए तो पहचान खोने का डर 

मोहब्ब्त में नाकाम होने का डर 

जब हुई तो उसमे खोने का डर 

गृहस्थी ना चला पाने का डर 

बच्चो को ना पढ़ा…

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Added by pawan amba on February 25, 2014 at 7:00am — 3 Comments

कह-मुकरियाँ (१२ से १८) - कल्पना मिश्रा बाजपेई

12-)

तोल-मोल कर जब ये बोले ।

दिल के तालों को ये खोले ।

कभी ना होती इसे थकान,

क्या सखी साजन ?

ना सखि जुवान !

13-)

भारत माँ का सच्चा लाल ।

लंबा कद और ऊँचा भाल ।

इस पर बनते लाखों गान,

क्या सखि साजन ?

ना सखि जवान !

14-)

सर्दी गर्मी या हो बरसात।

हर दम रहता है तैनात ।

कभी ना करता आले बाले ,

क्या सखि छाते ?

ना सखि ताले!

15-)

गर्मी में मिलता ना…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 11:00pm — 10 Comments

मोहक वसंत

वसंत

 

बीता कटु शीत शिशिर 

मोहक  वसंत आया

 

पुष्प खिले वृन्तो पर

मुस्काये हर डाली

मादक महक चहुँ दिशा

भरमाये मन आली

तरुण हुई धूप खिली

शीत का अंत आया

बीता कटु शीत शिशिर 

मोहक  वसंत आया

 

प्रिया की सांसों सी

मद भरा ऊषा अनिल  

अंग अंग उमंग रस

जग लगे मधुर स्वप्निल

कुहूक  बोले कोयल

कवि नवल छंद गाया

बीता कटु शीत शिशिर 

मोहक  वसंत आया…

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Added by Neeraj Neer on February 24, 2014 at 10:39pm — 8 Comments

ग़ज़ल : परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं

परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं

 

फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं

जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं

 

परिंदों की नज़र से एक पल गर देख लो दुनिया

न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है

 

फ़लक पर सब बराबर हैं यहाँ नाज़ुक परिंदे भी

लड़ें गर सामने से तो विमानों को गिराते हैं

 

जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंक्षी…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 24, 2014 at 10:15pm — 21 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सात दोहे –'' रिश्ते ''

सात दोहे – '' रिश्ते ''

*******    ******

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:30pm — 46 Comments

बेटी से खुशनुमा है --नज़्म -सलीम रज़ा

बेटी
बेटी से  खुशनुमा  है  ये  संसार  दोस्तो
रौशन इसी से सारा  है घर-बार  दोस्तो 
.........
बेटी  कही पे माँ  कही  बहना  के  रूप में …
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Added by SALIM RAZA REWA on February 24, 2014 at 9:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल - आज दिल उनका होने वाला है - इमरान ख़ान

********************************

आज दिल उनका होने वाला है

********************************



बहरे खफीफ मुसद्दस मखबून

फ़ायलातुन मुफाएलुन फालुन

2122 1212 22



होश लगता है खोने वाला है,

आज दिल उनका होने वाला है.



हर ख़ुशी जागने लगी दिल की,

ग़म थका है तो सोने वाला है.



कल जो जारो कतार था मंज़र,

हँस रहा देखो रोने वाला है.



रूह ये धूल से भरी मेरी,

आज आकर वो धोने वाला है.



दिल की बंज़र पड़ी ज़मीनों पर,…

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Added by इमरान खान on February 24, 2014 at 9:00pm — 5 Comments

राह के कांटें हुए बलवान भी

"राह  के  कांटें  हुए  बलवान  भी"

आप की खातिर है हाजिर जान भी।

हाथ  का  पंजा  हुआ  हैरान  भी।।



कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,

आज कल भौंरे करें पहचान भी।



अब चुनावी दौर का मंजर यहां,

बढ़ रही है रैलियों की शान भी।



भुखमरी-बेकारी सिर चढ़ बोलती,

हर किसी रैली में जन वरदान भी।



खो गर्इ है शान-शौकत-आबरू,

बो रहे हैं लोभ-साजिश-धान भी।



अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर,

गिरगिटों के रंग में…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 9:00pm — 13 Comments

दान की लिखता कथा

दान की लिखता कथा

धर्म रेखा

खींच कर

जाति बंधन से बॅधें,

प्रेम सा 

उपकार करते

साधना 

सत्कार से।

उपहास होता कर्म का

अति…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 7:59pm — 6 Comments

कह-मुकरियाँ - कल्पना मिश्रा बाजपेई

1-)

छू जाता  है तन को मेरे। 

कह जाता  है मन को मेरे ।

उसको हरदम है कुछ कहना,

क्या सखि साजन ?

ना सखि नैना !

2-)

छूते है तन मन को मेरे ।

बिन बोले ही मेरे तेरे ।

मिल जाते हम सब के संग,

क्या सखि साजन ?

ना सखि रंग !

3-)

दिल को मेरे छू जाती है ।

भावनाओं को सहलातीं है ।

इन की नहीं है कोई म्यादे ,

क्या फरियादें ?

ना सखि यादें !

4-)

टिकट…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 7:30pm — 7 Comments

कह मुकरियाँ -- अन्नपूर्णा बाजपेई

प्रथम प्रयास 

***************

(1)

रखती उसको हिये लगाये 

सबके मन पर वो छा जाये 

उसकी सूरत दिल मे उतरी 

क्या सखि साजन ? न सखि मुंदरी 

(2)  

उसके नाम से ही डरूँ मै 

होती शाम छिपती फिरूँ मै 

आए जब चैन न पाऊँ क्षन भर 

क्या सखि साजन ? ना सखि मच्छर 

(3)

बालक बूढ़े सबको भाये 

बिना उसके चैन नहि पाये 

सुंदर सूरत सुनहरी चाम 

क्या सखि साजन  ? ना सखी…

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Added by annapurna bajpai on February 24, 2014 at 2:30pm — 16 Comments

हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है

मिजाज मेरे शहर का रंगीन बडा है ।

हर मौसम यहाँ का बेहतरीन बडा है ।।

आंखो मे सुरमा मुहँ मे पान रचा है ।

हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है ।1।

शोखिया अदाये वो इठलाती जबानी ।

यहाँ हुस्नो शबाब नाजनीन बडा है ।2।

है झील का किनारा वो लहरो की मस्ती ।

हर नजारा यहाँ दिल नशीन बडा है ।3।

हरसू है बस प्यार मोहब्बत की बाते ।

नफरत  यहाँ जुर्म संगीन बडा है ।4।  

हो इक शहर ऐसा भी इस जहाँ मे कही…

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Added by बसंत नेमा on February 24, 2014 at 12:30pm — 6 Comments

कह मुकरियाँ [11 से 18] सरिता भाटिया

11.

दोस्ती मेरी सदा निभाए

न्यारी न्यारी बात बताए

बताए हरदम सही जवाब

क्या सखि साजन ? ना सखि किताब

12.

तुझ बिन जगत यह कड़की धूप

तेरे संग खिलता है रूप

कैसा तूने किया करिश्मा

क्या सखि साजन ? ना सखि चश्मा

13.

ज्यों चलूँ वो साथ ही हो ले

अंग संग खाए हिचकोले

मधुर सुरों से ह्रदय छले छलिया 

क्या सखि साजन ? ना पायलिया

14.

उलझे मेरे लट सुलझाता

न बोलूँ तो खीझ है जाता

रूप दिखाता रंग बिरंगा

क्या सखि…

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Added by Sarita Bhatia on February 24, 2014 at 9:56am — 6 Comments

माँ तूने मुझे अभिमन्युं क्यूँ बनाया

सुनी थी वीरों कि कहानियाँ 

मुश्किलों से भरी बीती जिनकी जवानियाँ

संस्कारों कि दीवारों से घिरता रहा

लड़ता रहा और उलझता रहा

जय पराजय में पिसता रहा

कष्टो के तीरों से छलनी हुआ तन

हालातों के कांटो से घायल हुआ मन

पर मन ने चुनी हर चुभन

बस इन सबने मेरा साहस बढ़ाया

जब खुली आँख,मै दूर था निकल आया

साथ था तो बस केवल अपना साया

मन ने फिर वही सवाल दोहराया

माँ तूने मुझे अभिमन्यु क्यूँ बनाया

अब मानता हूँ कि तुम्हारा…

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Added by pawan amba on February 23, 2014 at 3:00pm — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
उसने भुलाया हो न हो (ग़ज़ल) "राज"

२१२२  २१२२  २१२२  २१२

बारहा सजदा करेंगे खुश खुदाया हो न हो

इस अकीदत का कभी एजाज़ पाया हो न हो

 

जान रख दें उस ख़ुदा के सामने तेरे लिए  

सर किसी के सामने हमने झुकाया हो न हो

 

सींचते उसकी जड़ों को आज भी हम प्यार से

वक़्त हमने छाँव में उसकी बिताया हो न हो

 

याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल

हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो

 

काश जलकर  हम उजाला कर सकें उसके लिए  

दीप उसने आज घर अपने…

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Added by rajesh kumari on February 22, 2014 at 7:30pm — 16 Comments

कह मुकरियाँ (17 से 25)

17)

जी करता है उड़कर जाऊँ।

कुछ पल उसके संग बिताऊँ।

दूर बहुत ही है  उसका घर,

क्या सखि, साजन?

ना सखि, अम्बर!

18)

रातों को जब नींद न आए।

खिड़की खोल, सखी वो आए।

बाग बाग हो जाता मनवा,

क्या सखि प्रियतम?

ना री, पुरवा!

19)

उसको प्यार बहुत करती हूँ।

मगर पास जाते डरती हूँ।

दूर खड़ी देखूँ जी भरकर,

क्या सखि, प्रियतम?

ना सखि सागर!

20)

जब भी मेरा मन भर आए।

आँसू पोंछे…

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Added by कल्पना रामानी on February 22, 2014 at 7:00pm — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बेटी भी औलाद है- दोहे

पढ़े लिखे कुछ लोग भी, दे हैरत में डाल।

बेटी भी औलाद है, फिर क्यूँ करे बवाल।।

 

इतनी छोटी बात भी, समझे ना इंसान।

बेटी जन्में पुत्र को, रखते कुछ तो मान।।

 

बेटी मेरा खून है, बेटी मेरी जान।

बेटी से ये सृष्टि है, बेटी से इंसान।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2014 at 5:30pm — 14 Comments

जो मुस्का दो खिल जाये मन

जो मुस्का दो खिल जाये मन 

---------------------------------

खिला खिला सा चेहरा  तेरा

जैसे लाल गुलाब

मादक गंध जकड़ मन लेती

जन्नत है आफताब

बल खाती कटि सांप लोटता

हिय! सागर-उन्माद

डूबूं अगर तो पाऊँ मोती

खतरे हैं बेहिसाब

नैन कंटीले भंवर बड़ी है

गहरी झील अथाह

कौन पार पाया मायावी

फंसे मोह के पाश

जुल्फ घनेरे खो जाता मै

बदहवाश वियावान

थाम लो दामन मुझे बचा लो

होके जरा…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 22, 2014 at 4:30pm — 6 Comments

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

एनजीओ खूब बने, करे न सेवा ख़ास 

टैक्स बचे इज्जत बढे,धन की करते आस

धन की करते आस,नहीं कुछ सेवा करते 

फैशन बना विशेष, ओट में पीया करते 

करके बन्दर बाट, खूब लूटकर जीओ

धन अर्जन की प्यास लिए बने एनजीओ |

(२)

लोहा मनवाते रहे, करते वे अभिमान 

गर्व रहा नहीं स्थाई,रखे न इसका भान 

रखे न इसका भान,ज्ञान न चक्षु के खोले 

जीवन का है मोल,सोच समझ के न बोले

कहते है कविराय,  शिल्प में सोहे दोहा  

करते जो सम्मान, मान उसका ही लोहा…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 11:00am — 4 Comments

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