बात ही बात है
हर जगह बात है
हवा थक चुकी है
बात ही बात से,
बूँदों को बार बरसना पड रहा है
ताकि उसकी तरफ भी कोई देखे,
लेकिन लोगों को बात से फुरसत नहीं है।
बात को बात से लडाया जा रहा है
बात किसी को नहीं देख पा रही है
कौन उसका है,और कौन पराया है
बात लोगों से नाराज है।
बात ही बात से।
लोगों के दिमाग़ पर छाई है बात
बात लोगों से तंग है
लोग बातों से तंग हैं
ये वर्तमान में जीने के…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 1, 2014 at 11:30pm — 9 Comments
शराब की खाली बोतल के बगल में लेटी है
सरसों के तेल की खाली बोतल
दो सौ मिलीलीटर आयतन वाली
शीतल पेय की खाली बोतल के ऊपर लेटी है
पानी की एक लीटर की खाली बोतल
दो मिनट में बनने वाले नूडल्स के ढेर सारे खाली पैकेट बिखरे पड़े हैं
उनके बीच बीच में से झाँक रहे हैं सब्जियों और फलों के छिलके
डर से काँपते हुए चाकलेट और टाफ़ियों के तुड़े मुड़े रैपर
हवा के झोंके के सहारे भागकर
कचरे से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 1, 2014 at 11:03pm — 4 Comments
तरही गजल- 2122 2122 212
आग में तप कर सही होने लगी।
प्यार में मशहूर भी होने लगी।।
जब कभी यादों के मौसम में मिली,
राज की बातें तभी होने लगी।
तुम बहारों से हॅंसीं हस्ती हुर्इं,
आँंख में घुलकर नमी होने लगी।
उम्र से लम्बी सभी राहें कठिन,
पास ही मंजिल खुशी होने लगी।
तुम नजर भी क्या मिलाओगी अभी,
शाम सी मुश्किल घड़ी होने लगी।
चॉंदनी अब चांद से मिलती नहीं,
खौफ हैं बादल…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 1, 2014 at 6:53pm — 6 Comments
हाय! अकेलापन क्यों?
बोझिल सा लगता है
अकेलापन तो स्वर्णिम क्षण है
अपने आप को जानने का पल है
क्यों मानव इससे घबराए?
यह तो सबका बल है।
अकेलापन शक्ति देता है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments
26)
अपने मन का भेद छिपाए।
मेरे मन में सेंध लगाए।
रखता मुझ पर नज़र निरंतर।
क्या सखी साजन?
ना सखि, ईश्वर!
27)
हरजाई दिल तोड़ गया है।
मुझे बे खता छोड़ गया है।
नहीं भूल पाता उसको मन।
क्या सखि साजन?
ना सखि बचपन!
28)
जब से उससे प्रीत लगाई।
थामे रहता सदा कलाई।
क्षण भर ढीला करे न बंधन।
क्या सखि साजन?
ना सखि, कंगन!
29)
जब भी देना चाहूँ प्यार।
बेदर्दी कर देता…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 1, 2014 at 11:30am — 22 Comments
एक मासूम कली
भंवरे के स्पर्श से
खिल उठी
मुस्काई
हर्षाई
लिया पुष्प सा रूप
एक दिन
भंवरा उसका खो गया
पुष्प का हाल बुरा हो गया
उदास बेचैन पुष्प को चाहिए था
थोड़ा प्यार
थोड़ा दुलार
थोड़ी हंसी
थोड़ी हमदर्दी
जो ना मिल पाई
फिर एक दिन
आया एक भंवरा
जो उसके आसपास मंडराता
उसे तराने सुनाता
उसे खिलखिलाना सिखाता
पुष्प हुआ पुनर्जीवित
उसके प्यार से
दुलार से
पर
चिंतित…
Added by Sarita Bhatia on March 1, 2014 at 9:30am — 16 Comments
Added by Anurag Anubhav on March 1, 2014 at 12:20am — 19 Comments
2122 2122 212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
(बहरे रमल मुसद्दस महजूफ)
वृत्ति जग की क्लिष्ट सी होने लगी
सोच सारी लिजलिजी होने लगी
भीड़ है पर सब अकेले दिख रहे
भावनाओं में कमी होने लगी
चाहना में बजबजाती देह भर
व्यंजना यूँ प्रेम की होने लगी
धर्म के जब मायने बदले गए
नीति सारी आसुरी होने लगी
सूखती…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 28, 2014 at 10:31pm — 54 Comments
१. लगे अंग तो तन महकाए,
जी भर देखूं जी में आये,
कभी कभी पर चुभाये शूल,
का सखी साजन ? ना सखी फूल.
२. गोदी में सर रख कर सोऊँ,
मीठे मीठे ख्वाब में खोऊँ,
अंक में लूँ, लगाऊं छतिया.
का सखी साजन? ना सखी तकिया .
३ उससे डर, हर कोई भागे,
बार बार वह लिख कर माँगे.
कहे देकर फिर करो रिलैक्स.
का सखी साजन? ना सखी टैक्स ..
४. गाँठ खुले तो इत उत डोले,
जिधर हवा उधर ही हो…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 28, 2014 at 8:00pm — 31 Comments
सरस्वती वंदना (उल्लाला छंद पर आधारित )
हे माँ श्वेता शारदे , विद्या का उपहार दे
श्रद्धानत हूँ प्यार दे , मति नभ को विस्तार दे
तू विद्या की खान है ,जीवन का अभिमान है
भाषा का सम्मान है ,ज्योतिर्मय वरदान है
नव शब्दों को रूप दे ,सदा ज्ञान की धूप दे
हे माँ श्वेता शारदे ,विद्या का उपहार दे
कमलं पुष्प विराजती ,धवलं वस्त्रं शोभती
वीणा कर में साजती ,धुन आलौकिक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 28, 2014 at 3:54pm — 13 Comments
मुक्तक
फकत मेरे सिवा तुमको किसी पर प्यार ना आए,
मेरे गीतों में तेरे बिन कोई अशआर ना आए,
मिलन होता रहे तब तक कि जब तक चांद तारे हैं
मोहब्बत के कलैंडर में कभी इतवार ना आए।।
-------------------------------------------
तुम्हारे साथ…
ContinueAdded by atul kushwah on February 27, 2014 at 11:00pm — 22 Comments
मैं आज चिड़ी सी उड़ती फिरती हूँ,
खुद चढ़ अंबर का व्यास नापती हूँ ,
कर दिया किसी ने झन-झन मेरे पर को,
मैं आँखों के दो दीप लिए फिरती हूँ ।
मैं प्रेम-सुधा रस पान किया करती हूँ ,
मैं कभी ना खुद का ध्यान किया करती हूँ ,
जग जाकर पूछे उनसे जो अपनी कहते ,
मैं अपने दिल का गीत सुना करती हूँ ,
मैं सुर- बाला सा, उन्माद लिए फिरती हूँ ,
मैं नए -नए उपहार लिए फिरती हूँ ,
यह मंगलदाई, संसार ना मुझ को भाता ,
मैं खुद की…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 27, 2014 at 7:00pm — 4 Comments
Added by Poonam Shukla on February 27, 2014 at 12:05pm — 9 Comments
उत्सव भारत देश के ,करें सभी हम गर्व
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी , महाशिवरात्रि पर्व /
फाल्गुन में शिवरात का होता पर्व विशेष
रंगों भरी फुहार से मिटाओ गिले द्वेष /
मध्यरात अवतरित हो धरा रूप सारंग
गले में सर्प हार औ रमे भस्म से अंग/
रूद्र रूप को देख के भर लो ह्रदय उमंग
शिव शक्ति का मिलनदिवस मनाओ प्रेम संग /
सदा ही मिले आपको शिव का आशीर्वाद
शिव के नित उपवास से मिले दुआ प्रसाद /
धतूरे बेलपत्र से, करना कर्म विशेष…
Added by Sarita Bhatia on February 26, 2014 at 7:34pm — 14 Comments
चाँदी के रथ पे सवार लिए जीवन नवल
चिर प्रीतम संग चंद्रिका आयी धवल ..............
प्रिय सखी निशा संग
भरती किलकारियाँ
गगन से धरा तक
करती अठखेलियाँ
रूप किशोरी सी चंद्रिका आयी धवल .........
शशि प्रियतम संग
चमचम सितारों वाली
श्याम चुनरिया ओढ़े
धीरे धीरे दबे पाँव
प्रिय सुंदरी सी चंद्रिका आयी धवल ................
दुग्ध अभिसिंचित हये
सभी तरुवर तड़ाग
मुसकुराती…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 26, 2014 at 4:30pm — 9 Comments
बिटिया ना अपनी हुई कैसा रहा विधान
राजा हो या रंक की बिटिया सभी समान /
बिटिया सभी समान रहेंगी सदा बेगानी
छोड़ेगी वो गेह रीत पड़ेगी निभानी
चाहे गेह अमीर या रही गरीब की कुटिया
सरिता कहती मान पराई होती बिटिया//…
Added by Sarita Bhatia on February 26, 2014 at 10:27am — 3 Comments
बचपन का गाँव
नीम की छांव
छोटा सा कोना
कच्चा सा आँगन
बहुत याद आता है ।
गाँव के मेले
ढेरों झमेले
दोनें में चाट
बर्फ को गोला
बहुत याद आता है ।
बचपन की सखियाँ
डिब्बे में गुड़ियाँ
छोटा सा गुड्डा
उन से बतयाना
बहुत याद आता है ।
सावन के झूले
हाथों में मेंहदी
काँच की चूड़ी
निवौली की पायल
बहुत याद आते है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 25, 2014 at 8:51pm — 5 Comments
सखि री ! फागुन के दिन आए
तृषित रूपसी ठगि – ठगि जाए
कलरव से गूँजे अमराई
प्रिय जाने किस देश पड़े ?
हर पल , हर क्षण काटे तनहाई ।
सूना – सूना दिन लागे , साजन की याद सताये
सखि री ! फागुन के दिन आए ।
फूली सरसों और पगडंडी –
आज दिखे सुनसान रे !
करवट लेते रात गुज़र गयी ,
ऐसे हुयी विहान रे !
ऐसे मे कोयलिया रह – रह , हिय की आग बढ़ाए
सखि री ! फागुन के दिन आए…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 25, 2014 at 8:00pm — 6 Comments
कुछ कम रोशन है रोशनी तुम बिन
बरसात कम है गीली तुम बिन
हवाओं में खुश्बू नहीं है तुम बिन
चाँद की कम है चाँदनी तुम बिन
सूरज करे ना उजाला तुम बिन
घर बन गया मकान है तुम बिन
भंवरे नही हैं गुनगुनाते तुम बिन
थम सा गया है वक्त तुम बिन
पर मेरी हर ख्वाहिश है तुम से
पर अब भी हर सांस में बसे हो तुम
हर धड़कन में आवाज़ है तुम्हारी
हर पल जैसे छू जाते हो दिल को
हर आहट में अहसास है तुम्हारा
पीछे से…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on February 25, 2014 at 4:00pm — 6 Comments
जब सब कुछ था
मेरे पास
जो
जीने के लिए काफी था
तुम्हारा प्यार,
तुम्हारा साथ,
तुम्हारा समय
तुम्हारा विश्वास
हमारा साहस
यही सब
मेरी बहुमूल्य पूंजी थी
वो
उड़ान भरते
सुनहरे सपने
जो
हम दोनों ने कभी देखे थे
दुनिया
अपने कदमों में थी
तो किसकी लगी नज़र ?
जो छूटा ...
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा साथ
क्यों रुकीं
वो सांसें
वो जिन्दगी
टूटीं उम्मीदें
टूटे सपने
और
साथ ही
टूट…
Added by Sarita Bhatia on February 25, 2014 at 3:03pm — 21 Comments
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