हर नुक्कड़, चौराहे पर गणतन्त्र कराहता है
“किन्तु परंतु के भँवर में घुमंतू समाज”
‘’वसुधैव कुटुंबकम’’ मूलमंत्र की प्राप्ति की पहली सीढ़ी शिक्षा ही है जिसको हासिल कर कोई भी देश अपने अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। हमने अपने महापुरुषों के बलिदान से आज़ादी का सपना पूरा कर लिया, उस आज़ादी का सूरज निकले अरसा बीत चुका, ढंग से जीने का मौका अधिकार भी मिला, दुनिया के साथ अपना देश भी…
ContinueAdded by DR. HIRDESH CHAUDHARY on January 26, 2014 at 11:00pm — 9 Comments
तुम कोमल कमसिन लता नवीन और विजन में खड़ा विटप मैं ।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
वात झूमती चलती जब भी, मौन मेरा भी वाणी पाता ।
लेकिन इसका लाभ कहो क्या, कौन विजन में गुनने आता ।
भाग में मेरे लिखा दिवाकर, तरस तनिक जो कभी न खाता ।
तूफानों से हुआ जो नाता, गिरने का भय डँसता जाता ।
निभर्य स्नेहिल जीवन जी लूँगा, मुझसे यदि नाता जोड़ो ।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
मेरे सूने जीवन की…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2014 at 8:46pm — 19 Comments
हमेशा खुशमिजाज रहने वाली माँ को आज गंभीर मुद्रा में देखकर मैनें कारण जानना चाहा तो वो बोली- बेटा तुम भाइयों में सबसे बड़े हो इसलिय तुमसे एक बात करना चाहती हूँ| हाँ-हाँ बोलो माँ मैनें उत्सुकता पूर्वक जानना चाहा|माँ ने दबी आवाज़ में कहना प्रारंभ किया-बेटा तुम्हारा अपना मकान लखनऊ में और बीच वाले का वाराणसी मे बना गया है किंतु तुम्हारा तीसरा भाई जो सबसे छोटा है उसका न तो अपना मकान है और न वो बनवा पायगा कियोंकि वो कम किढ़ा लिखा होंने के कारण अछी नौकरी न पा सका|तो क्या हुआ माँ ये आप और बाबूजी का…
ContinueAdded by NEERAJ KHARE on January 26, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
एक आंधी सी उठे है अन्दर
एक बिजली सी कड़क जाती है
एक झोंका भिगा गया तन-मन
इस बियाबां में यूँ ही तनहा मैं
कब से रह ताक रहा हूँ उसकी...
वो जो बौछार से टकराते हुए
एक छतरी का आसरा लेकर
इक मसीहा सा बन के आता है
मुझको भींगने से बचाता है...
हाँ...ये सच है बारहा उसने
मेरे दुःख की घडी में मुझको
राहतें दीं हैं....चाहतें दीं हैं....
और हर बार आदतन उसको
सुख के लम्हों में भूल जाता हूँ
वो मुझे दुवाओं में…
Added by anwar suhail on January 26, 2014 at 6:30pm — 5 Comments
221 2122 221 2122
शब्दों में पत्थरों को भर मारने की आदत
यूँ बेवजह तुम्हे ठोकर मारने की आदत
हमने मुहब्बतों में झेले सितम हज़ारों
दीवार पे हमें है सर मारने की आदत
ईमानो हक की बातें हैं करते आज वे ही
जिनको है भीड़ में छुप कर मारने की आदत
हालात दर्द को पैहम यूँ बढ़ाये उसपे
ऐ हुक्मराँ तेरी नश्तर मारने की आदत
उड़ना जिन्हे है वो उड़ ही जाते हैं परिन्दे
उनको नही ज़मीं पे पर मारने की…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2014 at 3:30pm — 26 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 26, 2014 at 2:48pm — 8 Comments
अनकही सी अनसुनी सी इक ज़ुरूरी बात थी ।
कह के भी कह ना सके कोई अधूरी बात थी ।
बोलने कि हद पे था प्यार का शैलाब पर ,
ना बोलने की ज़िद पे भी इक गुरुरी बात थी ।
कोशिशें तो की बहुत इज़हारे उल्फत की मगर ,
लफ़्ज़ों में ना आ सकी दिल की पूरी बात थी ।
एकटक देखा उन्हें तो देखता ही रह गया ,
चाँद से चेहरे पे उनके कोहिनूरी बात थी ।
प्यार की खामोशियों में रंग भरने के लिए ,
उन लबों की लालियों में एक सिन्दूरी बात थी…
Added by Neeraj Nishchal on January 26, 2014 at 2:30pm — 7 Comments
परिचित अपरिचय
गीले भाव, भीगे गाल, स्वप्न रूआँसे
विवेकी-अविवेकी कोषों में बसे
सूक्षमातिसूक्षम खयाल मेरे
रातों तिलमिलाते, क्यूँ ?
गुँथे खयालों से तुम्हारे
अभी बिंधे तुमसे, अभी उलझे मुझमें
सूर्य की किरणों का उल्लास बटोरती
अकेले-अकेले में अपने से सहजतम
तुम भी तो बातें करती नहीं थकती थीं
खयालों की धारा-गति अनचीन्ही
सोच-सोच कर मुझको पगली-सी हँसती ..
आँचल की लहरीली सलवटें शरमा…
ContinueAdded by vijay nikore on January 26, 2014 at 11:30am — 12 Comments
मिली हमें स्वतन्त्रता, अनंत शीश दान से।
निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।
प्रतीक रंग केसरी, जुनून, जोश, क्रांति का,
दिखा रहा सुमार्ग है, सफ़ेद विश्व शांति का।
रुको न चक्र बोलता, सिखा रहा हमें…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on January 26, 2014 at 9:42am — 8 Comments
"ऐ मीनरी !! जा जरा पानी तो ले के आ , उफ़ गर्मी भी कितनी हो रही हैं अभी ब्लाक में एक मीटिंग में जाना हैं बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत हैं आज वहां "
"इत्ती देर लगे क्या पानी लाने में !! एक तो भगवान् ने मेरी किस्मत में तीन तीन छोरिया लिख दी " ऊपर से सारा दिन किताबो में घुसी रहती है यह नही की घर का कम काज सीखे कलक्टर बनके सर पे नाचने के सपने देख रही ! " राना जी झल्लाते हुए जोर से चिल्लाये और पत्नी डर के मारे पानी का गिलास लिए उनके सामने पल्लू मुह में दबाये आन खड़ी हुयी .. क्या हैं यह !!! हैं !!…
Added by Priyanka singh on January 25, 2014 at 10:19pm — 34 Comments
Added by shubhra sharma on January 25, 2014 at 5:23pm — 8 Comments
हो गये जो निछावर वतन के लिए ,
याद करने की उनको घड़ी आ गयी ।
आज का दिन मनायें उन्हीं के लिए ,
कहने गणतंत्र कि नव सदी आ गयी ।
ये वीरों की धरती हमारा वतन ।
आकाश भी जिसको करता नमन ।
गाँधी नेहरू की जीवन कहानी है ये ।
नेता जी की तो सारी जवानी है ये ।
ऐसे आज़ाद भारत के वासी हैं हम ,
बात मन में यही फक्र की आ गयी ।
लाल हो जिनके कपड़े कफ़न हो गये ।
जो हिमालय कि हिम में दफ़न हो गये ।
मर के भी दुश्मनों को न बढ़ने…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on January 25, 2014 at 3:30pm — 16 Comments
शाख पर लगा
अलौकिक सौंदर्य पर इतराता
वसुधा को मुंह चिढ़ाता
मुसकुराता इठलाता
मस्त बयार मे कुलांचे भरता
गर्वीला पुष्प !..........
सहसा !!!
कपि अनुकंपा से
धराशायी हुआ
कण कण बिखरा
अस्तित्व ढूँढता
उसी धरा पर
भटकता यहाँ से वहाँ
उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ...
बेचारा पुष्प !!!
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:30am — 21 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२
जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई
एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई
रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई
खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई
देव मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 24, 2014 at 9:55pm — 34 Comments
बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ
.
झील के पानी में गिर के चाँद मैला हो गया।
स्वाद मीठी नींद का कड़वा-कसैला हो गया॥
.
दो घड़ी भी चैन से मैं साँस ले पाता नहीं,
यूँ तुम्हारी याद का मौसम विषैला हो गया।
.
सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,
आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।
.
आँख में मोती नहीं बस वासना की धूल है,
प्यार देखो किस क़दर मैला-कुचैला हो गया।
.
हर किसी को सादगी के नाम से नफ़रत हुई,
कल जिसे कहते थे मजनूँ,आज लैला हो गया।…
Added by Ravi Prakash on January 24, 2014 at 5:00pm — 16 Comments
बड़ी मुश्किल से कुछ 'अपने' मिले हमको ज़माने में
कहीं उनको न खो दूँ ख्वाहिशें अपनी जुटाने में /
बने जो नाम के अपने हैं उनसे दूरियाँ अच्छी
मिलेगा क्या भला नजदीकियां उनसे बढ़ाने में/
उजाले छोड़े हैं तेरे लिए रहना सदा रोशन
अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में /
हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे
रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में /
दिलों को तोड़ते हैं जो विदा कर यार को ऐसे
जो थामे धडकनें तेरी न डर…
Added by Sarita Bhatia on January 24, 2014 at 3:30pm — 9 Comments
सच कहता है शख्स वो ,भले बोलता कम है
बहुत सोचता है , भले वो लब खोलता कम है
कितनी भी हावी सियासत हो गयी हो आज भी
वो वादे निभाता तो नहीं , मगर तोड़ता कम है
कहीं जज़बात के रस्ते में कोई दुश्वारियां न हों
वो ख़त भी रखता है , तो लिफाफा मोड़ता कम है
मशीनी हो गयी है , रफ़्तार-ए -ज़िन्दगी , अब
आदमी हाँफता ज़िआदा , मगर दौड़ता कम है
फुटपाथों पे वो नंगे ज़िस्म सो रहा है , "अजय"
चीथड़े पहनता तो है वो , मगर ओढ़ता कम…
Added by ajay sharma on January 23, 2014 at 11:30pm — 5 Comments
जमाना बेताब है मुश्किलें पैदा करने को,
मेरी अनकही बातों पर ऐतबार न कर.
बढ़ते रहे दरमियाँ दिलों के बीच,
चाहत ये जमाने की कामयाब न कर.
एक लकीर है हमारे और उसके बीच,
डर है गुम होने का, उसे पार न कर.
कल का सूरज किसने देखा है,
आ भर ले बाहों में इन्कार न कर.
यक़ीनन ढला ज़िस्म फौलाद के सांचें में,
पर दिल है शीशे का, तू वार न कर.
शक अपनों पर, परायों के खातिर,
यकीं नहीं है तो फिर प्यार न…
ContinueAdded by अनिल कुमार 'अलीन' on January 23, 2014 at 11:30pm — 12 Comments
बर्फ की ये चादरी सफ़ेद ओढ़कर
पर्वतों की चोटियाँ बनी हैं रानियाँ
पत्ती पत्ती ठंड से ठिठुरने लगी,
फूल फूल देखिये हैं काँपते यहाँ ।
काँपती दिशाएँ भी हैं आज ठंड से,
बह रही हवा यहाँ बड़े घमंड से ।
बादलों से घिरा घिरा व्योम यूं लगे,
भरा भरा कपास से हो जैसे आसमाँ।। पर्वतों की .....
धरती भी गीत शीत के गा रही,
दिशा दिशा भी मंद मंद मुस्कुरा रही।
झरनों में बर्फ का संगीत बज उठा,
और हवा गा रही है अब रूबाईयाँ॥ पर्वतों की .....…
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on January 23, 2014 at 9:30pm — 5 Comments
याद है मुझे
उसका वो पागलपन
लिखता मेरे लिए प्रेम कवितायेँ
जिनमें होते मेरे लिए कई प्रेम सवाल
उसमें ही छुपी होती उसकी बेपनाह ख़ुशी
क्योंकि जानता न था वो मेरे जवाब
वो उसकी आजाद दुनिया थी
जिसमें नहीं था किसी का दखल
उसके दिल के दरवाजे पर खड़ी रहती मैं
उस पार से उससे बतियाती
उसका पा न सकना मुझे
मेरा खिलखिला कर हँसना
और टाल देना उसका प्रेम अनुरोध
देता उसको दर्द असहनीय
जैसा आसमान में कोई तारा टूटता
और अन्दर टूट जाते उसके ख़्वाब…
Added by Sarita Bhatia on January 23, 2014 at 6:11pm — 4 Comments
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