For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सखि री ! फागुन के दिन आए

सखि री ! फागुन के दिन आए

 

तृषित रूपसी ठगि – ठगि जाए

कलरव  से   गूँजे   अमराई

प्रिय जाने किस  देश  पड़े ?

हर पल , हर क्षण काटे तनहाई ।

सूना – सूना  दिन लागे , साजन  की याद  सताये

सखि री ! फागुन के दिन आए ।

फूली सरसों और पगडंडी –

आज  दिखे सुनसान रे !

करवट लेते रात गुज़र गयी ,

ऐसे  हुयी  विहान  रे !

ऐसे मे कोयलिया रह – रह , हिय  की  आग बढ़ाए

सखि री ! फागुन के दिन आए !

अबकी फागुन कैसे बीते ?

सोच – सोच अलसाए नैना

पिछली बातें याद आ रही –

बड़ी हुयी बिरहन की रैना !

नस – नस मे सिहरन जागे सखि ! बैरन नींद ना आए

सखि री ! फागुन के दिन आए !

 

.

     ------ मौलिक और अप्रकाशित ------

Views: 550

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 12:10am

भाई बृजेशजी के सुझावों पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है, आदरणीय. सर्वोपरि, किसी रचनाकार को रचना का उद्येश्य और लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिये. वैसे, आपका सतत प्रयास श्लाघनीय है. व्याकरण के हिसाब से भी सचेत रहने की आवश्कता है.

सादर

Comment by Meena Pathak on March 2, 2014 at 1:54pm
Bahut sundar rachna .. Saadar Badhai
Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 1:53pm

भावपूर्ण रचना! प्रथम इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

आज आपकी इस रचना के कुछ बिंदुओं पर चर्चा करना चाहता हूँ. इन बिन्दुओं पर आपकी और सुधीजनों की प्रतिक्रिया वांछित है.

मेरे विचार से किसी भी रचना के लिए भाषा का चयन बहुत सावधानी से करना चाहिए. इस रचना के कथ्य के अनुरूप आपने जिस तरह की भाषा का चयन किया है, वह उचित है. लेकिन रचना की शुरुआत में ‘ठगि-ठगि’ जैसा शब्द पूरी रचना की भाषा से मुझे मेल खाता नहीं लगता. यदि इसे ‘ठग-ठग’ ही रहने दिया जाता तो क्या फर्क पड़ता?

//प्रिय जाने किस देश पड़े ?// ‘पड़े’ शब्द का प्रयोग यहाँ उचित नहीं है. ‘पड़े’ के माध्यम से जिस भाव को व्यक्त करने कि कोशिश हुई है उस भाव की व्यंजना नहीं हो पा रही है. मुझे लगता है कि यह शब्द ‘निर्जीव’ वस्तुओं के लिये प्रयुक्त होता है.

//फूली सरसों और पगडंडी –

आज  दिखे सुनसान रे!//.............यह कैसा combination है? क्या सरसों और पगडण्डी दोनों सूनसान दिख रही हैं? सही शब्द ‘सूनसान’ होता है. मेरे विचार से आप कहना चाहते थे कि //सरसों फूली पर पगडण्डी सूनसान रे//

अपने जिस प्रवाह में रचना शुरू की, वह आगे जाकर बिखर गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने रचना को पूरा समय नहीं दिया, ऐसा मुझे लगता है.

ये मेरे निजी विचार हैं, इनसे किसी अन्य का सहमत होना आवश्यक नहीं.

सादर!

 

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 1:53am

फाल्गुन में प्रिय के  विरह को बहुत सुंदर भाव मिले रचना में, हार्दिक बधाई आदरणीय ब्रह्मचारी जी

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:14pm

सुंदर रचना , आदरणीय ब्रांहचारी  जी बधाई । 

Comment by Sarita Bhatia on February 26, 2014 at 9:52am

बहुत खूब आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service