For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122       2122       212 

फाइलातुन   फाइलातुन   फाइलुन

(बहरे रमल मुसद्दस महजूफ)

वृत्ति जग की क्लिष्ट सी होने लगी

सोच सारी लिजलिजी होने लगी

भीड़ है पर सब अकेले दिख रहे 
भावनाओं में कमी होने लगी

चाहना में बजबजाती देह भर 
व्यंजना यूँ प्रेम की होने लगी

धर्म के जब मायने बदले गए 
नीति सारी आसुरी होने लगी

सूखती संवेदना घर-घर दिखे 
चेतना भी ठूँठ सी होने लगी

 

ढूँढ अब लाएँ कहाँ से हम किरण

रात सारी मावसी होने लगी

      -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1342

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2014 at 6:48pm

आदरणीया माहेश्वरी जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Maheshwari Kaneri on March 28, 2014 at 1:11pm

भीड़ है पर सब अकेले दिख रहे 
भावनाओं में कमी होने लगी ......बहुत सुन्दर..

Comment by बृजेश नीरज on March 26, 2014 at 7:44pm

आदरणीय भुवन जी आपका बहुत आभार!

Comment by भुवन निस्तेज on March 25, 2014 at 11:44pm

भीड़ है पर सब अकेले दिख रहे 
भावनाओं में कमी होने लगी

बेहतरीन विचार आदरणीय...

बधाई स्वीकार करें 

Comment by बृजेश नीरज on March 25, 2014 at 9:19pm

आदरणीय मुकेश जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 25, 2014 at 9:02am

आदरणीय बृजेश जी. बहुत खूबसूरत ख़यालों का समावेश किया है आपने इस ग़ज़ल में. हिन्दी के शब्दों का सुंदर प्ययोग किया है आपने और हिन्दी ग़ज़ल को ऊँचाइया प्रदान की हैं..अच्छा लगा पढ़कर.. बहुत मुबारकबाद

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 9:39am

आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 2:04am

इस ग़ज़ल ने आपके सतत प्रयासों की हामीभरी है. हृदय से बधाई.

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on March 22, 2014 at 10:10pm

आदरणीया शशि जी, आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by shashi purwar on March 22, 2014 at 9:57pm

वाह वाह बहुत खूब आज के परिपेक्ष को दर्शाती हुई सुन्दर गजल हेतु हार्दिक बधाई बृजेश जी।  सभी  शेर बहुत अच्छे लगे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service