मै पागल मेरा मनवा पागल
मै पागल मेरा मनवा पागल, ढूँढे इंसाँ गली - गली ।
आज फरिश्ता भी गर कोई
इस धरती पर आ जाए
इंसाँ को इंसाँ से लड़ते-
देख देख वह शरमाए ।
बेटी को बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली
मै पागल मेरा मनवा पागल, ढूँढे इंसाँ गली - गली ।
दूध दही की नदियां थी तब-
उनमें गंदा पानी बहता
द्वारे – द्वारे, नगरी – नगरी,
विषधर यहाँ पला करता ।
कान्हा आकर…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 22, 2014 at 10:30am — 12 Comments
आज बता दे दीप -शिखा प्रिय
मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?
दीप तले है नित अँधियारा
फिर भी तू अँधियारा हरता
पल -पल तू, धुआँ रूप में
हर पल, खुद की व्यथा उगलता
देख रही हूँ ज्योति तेरी,में
तेरा व्याकुल ह्रदय मचलता
पर कालिमा हरने में ही
दीप तेरा यह जीवन जलता
मानवता को रोशन कर के भी
मैं उजयारा कर पाऊँ कैसे ?
उढ़कर आता जब परवाना
आलिंगन करने तुझको
आखिर वह,जल ही…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 21, 2014 at 10:00pm — 3 Comments
( 1 )
दो पुष्प खिले
हर्षित हृदय
लीं बलैयां
( 2 )
धीरे धीरे
बढ़ चले राह
पकड़ी बचपन डगर
( 3 )
मार्ग दुर्गम
वे थामे अंगुली
आशित जीवन
( 4 )
हुये बड़े
बीता बचपन
डाले गलबहियाँ
( 5 )
संस्कार भरे
करते मान सम्मान
न कभी अपमान
( 6 )
जीवन बदला
खुशियाँ…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 21, 2014 at 9:15pm — 5 Comments
आज सुबह से ही ठहरा हुआ है,
कुहरा भरा वक्त.
न जाने क्यों,
बीते पल को
याद करता.
डायरी के पलटते पन्ने सा,
कुछ अपूर्ण पंक्तियाँ,
कुछ अधूरे ख्वाब,
गवाक्ष से झांकता पीपल,
कुछ ज्यादा ही सघन लग रहा है.
नहीं उड़े है विहग कुल
भोजन की तलाश में.
कर रहे वहीँ कलरव,
मानो देखना चाहते हैं,
सिद्धार्थ को बुद्ध बनते हुए.
बुने हुए स्वेटर से
पकड़कर ऊन का एक छोर
खींच रहा हूँ,
बना रहा हूँ स्वेटर को
वापस ऊन का गोला.
बादल उतर आया…
Added by Neeraj Neer on February 21, 2014 at 8:16pm — 12 Comments
सामने से गुज़र रही है
भीड़
हाथों में हैं झंडे
केसरिया
हरे
शोर बढ़ता जा रहा है
झंडे
हथियार बन गए हैं
जमीन लाल हो रही है
यह अजीब बात है
झंडे चाहे जिस रंग के हों
जमीन लाल ही होती है
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on February 21, 2014 at 8:00pm — 12 Comments
6.
जीवन मेरा रोशन करता
सूरज जैसे तम को हरता
उस बिन धड़के मेरा जिया
क्या सखि साजन ? ना सखि दीया
7.
चले संग वो धड़कन जैसे
उस बिन कटे बताऊँ कैसे
रखे हिसाब हर पल हर कड़ी
क्या सखि साजन ? नहीं सखि घड़ी
8.
पलकें मीचूं सपने लाता
कोमलता से फिर सहलाता
छोड़े ना वो पूरी रतिया
क्या सखि साजन? ना सखि तकिया
9..
नया रूप ले रात को आता
दिन चढ़ते वैरी छुप जाता
छिपता जाने कौनसी मांद
क्या सखि साजन ? ना सखि चाँद…
Added by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 7:35pm — 15 Comments
आज मजलूम को सताओगे
बददुआ सात जन्म पाओगे
बह्र ग़ालिब की खूब लिख डालो
दिले-ग़ालिब कहाँ से लाओगे
खुद को भगवान मान बैठेगा
हद से ज्यादा जो सिर झुकाओगे
आज साहब बने हो रैली…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on February 21, 2014 at 7:02pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
कौन चुपके आ रहा है आज मेरे मौन में
गीत कोई गा रहा है आज मेरे मौन में
वाक़िया जिसकी वज़ह से दूरियाँ बढ़ने लगीं
बस वही समझा रहा है ,आज मेरे मौन में
ख़्वाब कोई अब पुराना टूट जाने के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 21, 2014 at 6:30pm — 20 Comments
मन बौराया
कंगना खनका
मन बौराया
ऐसा लगता फागुन आया ।
रूप चंपयी
पीत बसन
फैली खुशबू
ऐसा लगता
यंही कंही है चन्दन वन ।
पागल मन
उद्वेलित करने
अरे कौन चुपके से आया ?
पनघट पर
छम छम कैसा यह !
कौन वहाँ रह – रह बल खाता ?
मृगनयनी वह परीलोक की
या है वह –
सोलहवां सावन !
मन का संयम
टूटा जाये
देख देख यौवन गदराया ।
कंगना खनका
मन…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 21, 2014 at 6:22pm — 16 Comments
क़दमों में दे बहकी थिरकन
महकी नम सी चंचल सिहरन
बाँहों भर ले, रच कर साजिश
क्या सखि साजन? न सखि बारिश
हर पल उसने साथ निभाया
संग चले बन कर हम साया
रंग रसिक नें उमर लजाई
क्या सखि साजन? न सखि डाई
चाहे मीठे चाहे खारे
राज़ पता हैं उसको सारे
खोल न डाले राज़, हाय री !
क्या सखि साजन? न सखि डायरी
उसने सारे बंध…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 6:00pm — 44 Comments
2122 2122 2122 212
एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है
दिल जलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है
उनके क़दमों के नहीं नामों निशा भी अब कहीं
ख्वाब में पर क़दमों की आहट को सुनना आम है
जुगनुओं की रोशनी से हर चमन आबाद था
रोशनी क्या आज तो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2014 at 1:02pm — 9 Comments
1-विवशता
मुश्किल वक्त मैं उसकी मदद नहीं कर पाया
पता है क्यों?
वह डरे व् फसे जानवर की तरह खूँखार हो गया था//
२-लौट आया
मैं वहाँ से लौट तो आया
लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//
३-विवादित विचार
उनका सम्बन्ध इसलिए टूटा
क्यूंकि वे
विवादित विचारों तक ही सिमटे रहे//
४-अकेलापन
बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 21, 2014 at 1:00pm — 13 Comments
कुछ तो मजबूरी की हद रही होगी ,
या निर्लज्जता की इंतेहा रही होगी ,
वो सम्भावित प्रधान मंत्री के पिता थे,
उनकी पत्नी ने प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति
बनाये और अपनी उंगलियों पर नचाये होंगे ,
कुछ तो हुआ होगा की 11 साल तक
कई असहाय राष्ट्रपतियों के ज़मीर को…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on February 21, 2014 at 8:17am — 4 Comments
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
दिल का दर्द हम तो अब किसे दिखायेगे
कभी प्यार से मिला करती मुझसे वो तो
हवा में अपना आंचल लहराती वो तो
बन गये जो सपने वह किसे बतायेगे
दर्द दिल का हम तो अब किसे दिखायेगे
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
रोज सपने में मेरे वो तो आती थी
बंद ओठो से हमको गीत सुनाती थी
यादो को उसके कैसे हम भुलायेगें
दर्द दिल का हम तो अब किसे दिखायेगें
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
वेवफाई का जो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on February 20, 2014 at 8:44pm — 4 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
झूठ में कोई दम नहीं होता
सत्य लेकिन हजम नहीं होता
अश्क बहना ही कम नहीं होता
दर्द, माँ की कसम नहीं होता
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता
दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं
उनके दिल में रहम नहीं होता
शे’र में बात अपनी कह देते
आपका सर कलम नहीं होता
*अदम = शून्य, अदम गोंडवी
-------
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 20, 2014 at 8:37pm — 16 Comments
"भई वाह, तुम्हारे हरे भरे केक्टस देख कर तो मज़ा ही आ गया."
"बहुत बहुत शुक्रिया."
"लेकिन पिछले महीने तक तो ये मुरझाए और बेजान से लग रहे थे"
"बेजान क्या, बस मरने ही वाले थे."
"तो क्या जादू कर दिया इन पर ?"
"घर के पिछवाड़े जो बड़ा सा पेड़ था वो पूरी धूप रोक लेता था, उसे कटवाकर दफा किया, तब कहीं जाकर बेचारे केक्टस हरे हुए."
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by योगराज प्रभाकर on February 20, 2014 at 12:00pm — 40 Comments
झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,
कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |
मीठा लगता झूठ है, सनी चासनी बात
पोल खुले से पूर्व ही, दे जाता आघात |
जैसी जिसकी भावना, वैसा बने स्वभाव
मन में जैसी कामना, मुखरित होते भाव |
जितनी सात्विक भावना, तन में वैसी लोच
पारदर्शी भाव बिना, विकसित हो ना सोच |
हिंसा की ही सोच में, प्रतिहिंसा के भाव,
सत्य अहिंसा भाव का, सात्विक पड़े प्रभाव |
(मौलिक व्…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2014 at 9:30am — 8 Comments
प्रथम प्रयास कह मुकरियाँ पर आप सब सुधीजनों के मार्गदर्शन की अभिलाषी हूँ ...
1.
लीला सखिओं संग रचाता
मन का हर कोना महकाता
भागे आगे पीछे दैया
क्यों सखि साजन ? ना कन्हैया
2.
जिसको हमने स्वयं बनाया
मान और सम्मान दिलाया
उसको हमारी ही दरकार
क्यों सखि साजन ? नहीं सरकार
3.
बच्चे बूढ़े सबको भाए
नाच दिखाए खूब हँसाए
सबके दिल का बना विजेता
क्यों सखि साजन ? ना अभिनेता
4.
उसके बिना चैन ना आए
पाकर उसको मन…
Added by Sarita Bhatia on February 20, 2014 at 9:30am — 7 Comments
इस विधा में प्रथम प्रयास है -- ( १- ४ )
सुबह सवेरे रोज जगाये
नयी ताजगी लेकर आये
दिन ढलते, ढलता रंग रूप
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि धूप
साथ तुम्हारा सबसे प्यारा
दिल चाहे फिर मिलू दुबारा
हर पल बूझू , यही पहेली
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली
रोज ,रात -दिन चलती जाती
रुक गयी तो मुझे डराती
झटपट चलती है ,खड़ी - खड़ी
क्या सखि साजन ?
ना काल घडी
धन की गागर छलकी…
ContinueAdded by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:00am — 15 Comments
तसव्वुरात
रुँधा हुआ अब अजनबी-सा रिश्ता कि जैसे
फ़कीर की पुरानी मटमैली चादर में
जगह-जगह पर सूराख ...
हमारी कल ही की करी हुई बातें
आज -- चिटके हुए गिलास
के बिखरे हुए टुकड़ों-सी ...
कुछ भी तो नहीं रहा बाकी
ठहराने के लिए
पार्क के बैंच को अब
अपना बनाने के लिए
फिर क्यूँ फ़कत सुनते ही नाम
मैं तुम्हारा ... तुम मेरा ...
कि जैसे सीनों पर हमारे किसी ने
मार…
ContinueAdded by vijay nikore on February 19, 2014 at 11:30am — 20 Comments
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