तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
दिल का दर्द हम तो अब किसे दिखायेगे
कभी प्यार से मिला करती मुझसे वो तो
हवा में अपना आंचल लहराती वो तो
बन गये जो सपने वह किसे बतायेगे
दर्द दिल का हम तो अब किसे दिखायेगे
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
रोज सपने में मेरे वो तो आती थी
बंद ओठो से हमको गीत सुनाती थी
यादो को उसके कैसे हम भुलायेगें
दर्द दिल का हम तो अब किसे दिखायेगें
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
वेवफाई का जो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on February 20, 2014 at 8:44pm — 4 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
झूठ में कोई दम नहीं होता
सत्य लेकिन हजम नहीं होता
अश्क बहना ही कम नहीं होता
दर्द, माँ की कसम नहीं होता
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता
दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं
उनके दिल में रहम नहीं होता
शे’र में बात अपनी कह देते
आपका सर कलम नहीं होता
*अदम = शून्य, अदम गोंडवी
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 20, 2014 at 8:37pm — 16 Comments
"भई वाह, तुम्हारे हरे भरे केक्टस देख कर तो मज़ा ही आ गया."
"बहुत बहुत शुक्रिया."
"लेकिन पिछले महीने तक तो ये मुरझाए और बेजान से लग रहे थे"
"बेजान क्या, बस मरने ही वाले थे."
"तो क्या जादू कर दिया इन पर ?"
"घर के पिछवाड़े जो बड़ा सा पेड़ था वो पूरी धूप रोक लेता था, उसे कटवाकर दफा किया, तब कहीं जाकर बेचारे केक्टस हरे हुए."
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by योगराज प्रभाकर on February 20, 2014 at 12:00pm — 40 Comments
झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,
कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |
मीठा लगता झूठ है, सनी चासनी बात
पोल खुले से पूर्व ही, दे जाता आघात |
जैसी जिसकी भावना, वैसा बने स्वभाव
मन में जैसी कामना, मुखरित होते भाव |
जितनी सात्विक भावना, तन में वैसी लोच
पारदर्शी भाव बिना, विकसित हो ना सोच |
हिंसा की ही सोच में, प्रतिहिंसा के भाव,
सत्य अहिंसा भाव का, सात्विक पड़े प्रभाव |
(मौलिक व्…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2014 at 9:30am — 8 Comments
प्रथम प्रयास कह मुकरियाँ पर आप सब सुधीजनों के मार्गदर्शन की अभिलाषी हूँ ...
1.
लीला सखिओं संग रचाता
मन का हर कोना महकाता
भागे आगे पीछे दैया
क्यों सखि साजन ? ना कन्हैया
2.
जिसको हमने स्वयं बनाया
मान और सम्मान दिलाया
उसको हमारी ही दरकार
क्यों सखि साजन ? नहीं सरकार
3.
बच्चे बूढ़े सबको भाए
नाच दिखाए खूब हँसाए
सबके दिल का बना विजेता
क्यों सखि साजन ? ना अभिनेता
4.
उसके बिना चैन ना आए
पाकर उसको मन…
Added by Sarita Bhatia on February 20, 2014 at 9:30am — 7 Comments
इस विधा में प्रथम प्रयास है -- ( १- ४ )
सुबह सवेरे रोज जगाये
नयी ताजगी लेकर आये
दिन ढलते, ढलता रंग रूप
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि धूप
साथ तुम्हारा सबसे प्यारा
दिल चाहे फिर मिलू दुबारा
हर पल बूझू , यही पहेली
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली
रोज ,रात -दिन चलती जाती
रुक गयी तो मुझे डराती
झटपट चलती है ,खड़ी - खड़ी
क्या सखि साजन ?
ना काल घडी
धन की गागर छलकी…
ContinueAdded by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:00am — 15 Comments
तसव्वुरात
रुँधा हुआ अब अजनबी-सा रिश्ता कि जैसे
फ़कीर की पुरानी मटमैली चादर में
जगह-जगह पर सूराख ...
हमारी कल ही की करी हुई बातें
आज -- चिटके हुए गिलास
के बिखरे हुए टुकड़ों-सी ...
कुछ भी तो नहीं रहा बाकी
ठहराने के लिए
पार्क के बैंच को अब
अपना बनाने के लिए
फिर क्यूँ फ़कत सुनते ही नाम
मैं तुम्हारा ... तुम मेरा ...
कि जैसे सीनों पर हमारे किसी ने
मार…
ContinueAdded by vijay nikore on February 19, 2014 at 11:30am — 20 Comments
(11)
थक जाऊँ तो पास बुलाए।
नर्म छुअन से तन सहलाए।
मिले सुखद, अहसास सलोना।
क्या सखि साजन?
नहीं, बिछौना!
12)…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 10:30am — 16 Comments
वो मुझे याद है, उसने भुला दिया मुझको
आज की रात फिर उसने रुला दिया मुझको,
ये बताओ कि आजकल हो किसके साथ सनम
किसी को ना मिले, जैसा सिला दिया मुझको।
रुह तो मर गई लेकिन, शरीर जिंदा है
जहर वो कौन सा तुमने पिला दिया मुझको।
हमने उस शख्स को बरसों से नहीं देखा था
उसी की याद ने उससे मिला दिया मुझको।
वो तो कहती थी, उसके दिल का शहंशाह है अतुल
है करम उसको ये, शायर बना दिया मुझको।।
…
Added by atul kushwah on February 18, 2014 at 10:30pm — 3 Comments
दिलों में रंजिशें ना हों यहाँ ऐसा जहाँ इक हो
जो छत हो आसमां सारा यहाँ ऐसा मकाँ इक हो /
नया हर जो सवेरा हो मिले सुख शांति हर घर में
मिटे ना वक्त के हाथों जो ऐसा आशियाँ इक हो /
बुराई लोभ भ्रष्टाचार धोखा दूर हो कोसों
हो केवल प्यार हर घर में बसेरा अब वहाँ इक हो /
मिले केवल सुकूं अब और हो मुस्कान होठों पर
घुली मिश्री हो बातों में यहाँ ऐसी जुबाँ इक हो /
निशानी अब हसीं यादों की लम्हा लम्हा मुस्काये
हों चर्चे कुल जहां…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on February 18, 2014 at 3:44pm — 19 Comments
यक्ष प्रश्न
सास बहू के बिगड़ते सम्बन्धों पर बहुत ही प्रभावशाली जोशपूर्ण भाषण देने के बाद अब राधा देवी मीडिया वालों के सवालों के उत्तर दे रही थी.
"मैडम ! लोग बेटी और बहू में अंतर क्यों करते हैं?"
"यह लोगों की नादानी ही नहीं बल्कि घोर पाप है। जो लड़की अपना मायका छोड़ कर ससुराल घर आई हो उसको तो सोने मे तौल कर रखना चाहिए।"
"लेकिन मैडम, हम ने सुना है कि आपकी अपनी बहू से नहीं बनती और आपने उसे घर से निकाल दिया है और बेटे को भी नहीं मिलने देती है ।…
Added by annapurna bajpai on February 18, 2014 at 2:00pm — 15 Comments
दोहे
1) नारी है सुता ,दारा धारे रूप अनेक ।
बंधन बांधे नेह का धीरज धर्म विवेक ॥
2) ये नारी है सृजक नहि अबला कमजोर ।
रोम रोम ममता भरी सह पीड़ा घनघोर ॥
3) महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष ।
जीव जन्तु भटके सभी ऐसे महल विशेष ॥
4) माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥
5) सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान ।
सब मिल शुचिता…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 18, 2014 at 1:00pm — 15 Comments
ग़ज़ल –
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
है गांवों में भी विद्यालय जहां अक्सर नहीं आते |
कभी बच्चे नहीं आते कभी टीचर नहीं आते |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 18, 2014 at 12:30pm — 14 Comments
इस कविता के पूर्व थोड़ी सी प्रस्तावना मैं आवश्यक समझता हूँ. झारखंड के चाईबासा में सारंडा का जंगल एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ) का जंगल है , बहुत घना . यहाँ पलाश के वृक्ष से जब पुष्प धरती पर गिरते हैं तो पूरी धरती सुन्दर लाल कालीन सी लगती है . इस सारंडा में लौह अयस्क का बहुत बड़ा भण्डार है , जिसका दोहन येन केन प्राकारेण करने की चेष्टा की जा रही है .. इसी सन्दर्भ में है मेरी यह कविता :
सारंडा के घने जंगलों में
जहाँ सूरज भी आता है
शरमाते हुए,
सखुआ वृक्ष के घने…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 18, 2014 at 9:21am — 13 Comments
1222/1222/1222/1222
अरे नादान ये मय है जिगर को ये जला ही दे
मेरे इस दर्दे दिल के वास्ते कोई दवा ही दे
कभी जब खींच ले जाये समंदर साथ अपने तो
गुज़रती मौज कश्ती को किनारे पर लगा ही दे
तेरी आँखों में मेरे दर्द की तासीर है शायद (तासीर= असर)
उदासी भी तेरी इस बात की पैहम गवाही दे (पैहम= लगातार)
इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही
तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे
बचूँगा कब…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 7:30am — 19 Comments
2122 2122 2122 212
**
बचपने में चाँद को रोटी समझना भूल थी
कमसिनी में एक कमसिन से लिपटना भूल थी
**
तात ने डाटा किताबें पढ़, मुहब्बत में न पड़
तात से इस बात पर मेरा झगड़ना भूल थी
**
कोख में जब मात ने पाला न माना कुछ उसे
इक कली के द्वार पर माथा रगड़ना भूल थी
**
मिट गया वो, पात ने कर ली हवा से प्रीत जब
बेखुदी में डाल से उसका बिछड़ना भूल थी
**
लूटता इज्जत भ्रमर नित दोष उसको कौन…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2014 at 7:30am — 11 Comments
पत्नी जिस बस से आ रही थीं, उसे घर के पास से ही होकर गुजरना था. रात का समय था. हल्की ठण्ड थी. मैंने हाफ़ स्वेटर पहना और टहलता हुआ उस मोड़ तक पहुँच गया, जहाँ पत्नी को उतरना था. बस के वहाँ पहुँचने में अभी कुछ समय शेष था. ठंडी हवा शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी इसलिए उससे बचने की खातिर मैं फुटपाथ के किनारे बनी दुकान के चबूतरे पर जा बैठा.
कुछ लोग वहीँ जमीन पर सो रहे थे. पास का व्यक्ति चादर ओढे, अभी जग रहा था.
मैंने उत्सुकता वश पूछा 'भैया, यहीं रोज सोते हो?’
'हाँ', वह…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 18, 2014 at 12:00am — 14 Comments
कह मुकरियां
1.
श्याम रंग तुम्हरो लुभाये ।
रखू नैन मे तुझे छुपाये ।
नयनन पर छाये जस बादल ।
क्या सखि साजन ? ना सखि काजल ।
2.
मेरे सिर पर हाथ पसारे
प्रेम दिखा वह बाल सवारे ।
कभी करे ना वह तो पंगा ।
क्या सखि साजन ? ना सखि कंघा
3.
उनके वादे सारे झूठे ।
बोल बोले वह कितने मिठे ।
इसी बल पर बनते विजेता ।
क्या सखि साजन ? ना सखि नेता ।।
4.
बाहर से सदा रूखा दिखता ।
भीतर मुलायम हृदय रखता ।।
ईश्वर भी…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 17, 2014 at 9:28pm — 11 Comments
2122 2122 212 ( पूरा )
इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख
बाग मे पानी के फौव्वारे भी देख
सिर्फ सूखे तू शज़र देखा न कर
हो रहे पत्ते हरे सारे भी देख
तू अमा में चाँद खातिर , ज़िद न कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 6:00pm — 32 Comments
इशारों से दिल का, जलाना तेरा
अजब! हुस्नवाले, बहाना तेरा /१
हमें क्या फ़िकर, ग़र जमाना कहे
दीवाना- दीवाना, दीवाना तेरा /२
हुआ जब से रिश्ता, हयाई बढ़ी
यूँ साड़ी पहन के, लजाना तेरा /३
अभी तो जवां हूँ, है गुंजाइशें
जिगर पे उठा लूँ, निशाना तेरा /४
न नासाज कर दे, कहीं आपको
सनम सर्दियों में, नहाना तेरा /५
बड़प्पन कहीं से, दिखे तो कहूँ
सुना तो, बड़ा है घराना तेरा /६
ये तेवर, ये अंदाज़, आसां नहीं
ग़ज़ल, 'सारथी'…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on February 17, 2014 at 5:00pm — 11 Comments
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3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
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